यदि मैं प्रधानमंत्री होता पर निबंध If I Were A Prime Minister Essay in Hindi
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यदि मैं प्रधानमंत्री होता पर निबंध
यदि मैं प्रधानमंत्री होता 800 Words
यदि मैं प्रधान मंत्री होता-अरे। यह मैं क्या सोचने लगा। प्रधान मंत्री बन पाना खाला जी का घर है क्या ? प्रधान मंत्री-ओह ! कितना बड़ा, कितना भारी शब्द है यह, जिसे सुनते ही एक ओर तो कई तरह के दायित्वों का अहसास कर उनके निरन्तर पड़े रहने वाले बोझ के कारण मस्तक अपने-आप ही झुकने लगता है; जबकि दूसरी ओर स्वयं ही एक अनजाने गर्व से उठ कर तनने भी लगता है। भारत जैसे महान् लोकतंत्र का प्रधान मंत्री बनना वास्तव में बहुत बड़े गर्व और गौरव की बात है, इस तथ्य से भला कौन इन्कार कर सकता है। प्रधान मंत्री बनने के लिए लम्बे और व्यापक जीवन-अनुभवों का, राजनीतिक कार्यों और गतिविधियों का प्रत्यक्ष अनुभव रहना बहुत ही आवश्यक हुआ करता है। प्रधान मंत्री बनने के लिए जनकार्यों और सेवाओं की पृष्ठभूमि रहना भी जरूरी है और इस प्रकार के व्यक्ति का अपना-जीवन भी त्याग-तपस्या का आदर्श उदाहरण होना चाहिए। एक और महत्त्वपूर्ण बात भी जरूरी है। वह यह कि आज के युग में छोटे-बड़े प्रत्येक देश और उसके प्रधान मंत्री को कई तरह के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय दबावों, कूटनीतियों के प्रहारों को झेलते हुए कार्य करना पड़ता है। अतः प्रधान-मंत्री बनने के लिए व्यक्ति को चुस्त-चालाक, कूटनीति-प्रवण और दबाव एवं प्रहार सह सकने योग्य मोटी चमड़ी वाला होना भी बहुत आवश्यक माना जाता है। निश्चय ही मेरे पास ये सारी योग्यताएँ और ढिठाइयाँ नहीं हैं, फिर भी अक्सर मेरे मन-मस्तिष्क को यह बात मथती रहा करती है, रह-रहकर गूंज-गूंज उठा करती है कि यदि मैं प्रधान मंत्री होता, तो?
यदि मैं प्रधान मंत्री होता, तो सब से पहले स्वतंत्र भारत के नागरिकों के लिए, विशेष कर नई पीढ़ियों के लिए, पूरी सख्ती और निष्ठुरता से काम लेकर एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा एवं उपायों पर बल देता। छोटी-बड़ी विकास-योजनाएँ आरम्भ करने से पहले यदि हमारे अभी तक के प्रधान मंत्री राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देते और उसके बाद विकास-योजनाएँ चालू करते, तो वास्तव में उनका लाभ आम आदमी तक भी पहुँच पाता। आज हमारी योजनाएँ एवं सभी सरकारी-अर्द्धसरकारी विभाग आकण्ठ निठल्लेपन और भ्रष्टाचार में डूब कर रह गए हैं, एक राष्ट्रीय चरित्र होने पर इस प्रकार की सम्भावनाएँ स्वतः ही समाप्त हो जातीं। इस कारण यदि मैं प्रधान मंत्री होता तो प्राथमिक आधार पर यही कार्य करता।
आज स्वतंत्र भारत में जो संविधान लागू है, उसमें बुनियादी कमी यह है कि वह देश का अल्पसख्यक, बहुसंख्यक, अनुसूचित जाति, जन-जाति आदि के खानों में बाँटने वाला तो है, उसने हरेक के लिए कानून विधान भी अलग-अलग बना रखे हैं जबकि नारा समता और समानता का लगाया जाता है। यदि मैं प्रधान मंत्री होता तो संविधान में रह गई इस तरह की कमियों को दूर करवा सभी के लिए एक शब्द ‘भारतीय’ और समान संविधान-कानून लागू करवाता ताकि विलगता की सूचक सारी बातें स्वतः ही खत्म हो जाएँ। भारत केवल भारतीयों का रह जाए न कि अल्प-संख्यक, बहुसंख्यक आदि का।
यदि मैं प्रधान मंत्री होता तो सभी तरह की निर्माण-विकास योजनाएँ इस तरह से लागू करवाता कि वे राष्ट्रीय संसाधनों से ही पूरी हो सकें। उनके लिए विदेशी धन एवं सहायता का मोहताज रह कर राष्ट्र की आन-बान को गिरवी न रखना पड़ता। दबावों में आ कर इस तरह की आर्थिक नीतियाँ या अन्य योजनाएँ लागू न करने देना कि जो राष्ट्रीय स्वाभिमान के विपरीत तो पड़ती ही हैं, निकट भविष्य में कई प्रकार की आर्थिक एवं सांस्कृतिक हानियाँ भी पहुँचाने वाली हैं।
हर स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी एक राष्ट्रभाषा, अपनी एक राष्ट्रीय-सांस्कृतिक हितों को सामने रख कर बनाई गई शिक्षा-नीति हुआ करती है। बड़े खेद एवं दुःख से कहना-मानना पड़ता है कि स्वतंत्रता प्राप्त किए आधी शती बीत जाने पर भी भारत इन दो महत्त्वपूर्ण कार्यों को सही परिप्रेक्ष्य में महत्त्व नहीं दे पाया। यदि मैं प्रधान मंत्री होता तो ऐसी शिक्षा-नीति तो तत्परता से बनवाने का प्रयास करता ही, राष्ट्र-भाषा की समस्या भी प्राथमिक स्तर पर हल करने, अपनी एक राष्ट्र भाषा घोषित करने का प्रयास करता। यदि मैं प्रधान मंत्री होता, तो भ्रष्टाचार का राष्ट्रीयकरण कभी न होने देता। किसी भी व्यक्ति का भ्रष्टाचार सामने आने पर उस की सभी तरह की चल-अचल सम्पत्ति को तो छीन कर राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करता ही, चीन तथा अन्य कई देशों की तरह भ्रष्ट कार्य करने वाले लोगों के हाथ-पैर कटवा देना, फाँसी पर लटका या गोली से उड़ा देने जैसे हृदयहीन कहे-माने जाने वाले उपाय करने से भी परहेज नहीं करता। इसी प्रकार तरह-तरह के अलगाववादी तत्त्वों को न तो उभरने देता और उभरने पर उनके सिर सख्ती से कुचल डालता। राष्ट्रीय-हितों, एकता और समानता की रक्षा, व्यक्ति के मान-सम्मान की रक्षा और नारी-जाति के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार का दमन मैं हर संभव उपाय से करता-करवाता।
बहुत संभव है कि ऐसा सब करने के कारण मेरे हाथ से प्रधान मंत्री की कुर्सी और मेरे दल की सरकार भी चली जाती; पर मैं वोटों को पाने और कुर्सी बचाने का खेल न खेलता रह, राष्ट्रोत्थान एवं मान-सम्मान की रक्षा के लिए वह सब करता कि जो आम जनता चाहती और जो करना परमावश्यक भी है।