रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध Essay on A Scene at Railway Station in Hindi
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रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध Essay on A Scene at Railway Station in Hindi
रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबंध 700 Words
मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए यातायात के साधनों-संसाधनों को एकत्र किया है। बैलगाड़ी से आरम्भ करके मुनष्य आज रेलगाड़ी और हवाई जहाज के युग तक पहुंच चुका है। हम सभी लोग दिन-प्रतिदिन इन यातायात के संसाधनों का प्रत्यक्ष उपयोग और प्रयोग करते हैं। किन्तु क्या कभी आपने इन यातायात के साधनों पर गम्भीरता और धैर्यपूर्वक सोचने की चेष्टा की है?
क्या कभी आपने उन भव्य स्थलों पर पूरी सचेतता बरतते हुए उन पर विचार किया है? अगर आपने कभी इस प्रकार की कोई चेष्टा की होगी तो आपके लिए यातायात के साधन का अर्थ निश्चित रूप से और ज्यादा गहरा अवश्य हो गया होगा।
अभी कुछ दिन हुए मुझे अचानक मेरे गाँव जाना पड़ा। गाँव से बुलावा अचानक ही आया था। इसके लिए मेरी कोई तैयारी नहीं थी। अत: स्वाभाविक है कि सारी दिन-चर्या बिगड़ गयी। खबर मिलने के एक घंटे के भीतर ही मुझे गाँव की ओर निकलना था। अतः सीट आरक्षित करवाने की कोई भी कोशिश न तो मैनें स्वयं की और न ही इस प्रकार की कोई भी कोशिश सफल हो ही सकती थी। अतः बिना किसी चिन्ता को दिमाग में लाए मैं फटाफट घर से निकल पड़ा। कुछ ही समय बाद मैं दिल्ली के भयानक जाम में फंस गया। मुझे आशंका होने लगी थी कि अगर ये जाम जल्दी ही नहीं खुला, तो हो सकता कि मेरी गाड़ी छूट जाए। मैं मन ही मन भगवान से इस बात के लिए प्रार्थना कर रहा था कि मैं जल्दी से स्टेशन पहुंच जाऊँ और अपनी गाड़ी पकड़ लूँ। किन्तु नियति को तो मानों कुछ और ही मंजूर था।
जिस समय मेरी गाड़ी स्टेशन से छूटने वाली थी उस समय मैं रेलवे स्टेशन के बाहर तक ही पहुंचा था। जल्दी से मैं रेलवे-टिकट खिड़की की ओर दौड़ा किन्तु वहाँ जाम लगा हुआ था। इतने में मैंने गाड़ी के स्टेशन से छूटने की खबर स्पीकर से सुनी और मैं पूरी तरह से हताश हो गया। मेरी थकान अपने चरम पर थी। मैंने एक बार सोचा कि घर वापस चला जाऊँ, पर तभी पूछताछ केन्द्र से पता लगाया कि अब से करीब चार घन्टे बाद एक दूसरी ट्रेन भी है। यह सुनकर मन में कुछ धीरज और संतोष आया। किन्तु बार-बार मन में यह ख्याल आ रहा था कि चार घन्टो तक मैं यहाँ स्टेशन पर क्या करूंगा। तभी मेरा ध्यान रेलवे स्टेशन के भव्य विस्तार की ओर गया। मैने इससे पूर्व इस भव्यता को रेलवे-स्टेशन पर कभी अनुभव नहीं किया था।
कुछ ही देर में रेलवे स्टेशन पर भीड़ छंटती चली गयी। यहाँ-वहाँ कुछ लोग घूमते हुए दिख रहे थे, या फिर कुछ लोग अपने सोने के विस्तर जो साथ में लाए थे उन्हें बिछाकर उन पर लेटकर सो रहे थे। वैसे वह जी भटकाने वाली भीड़ अब वहाँ बिल्कुल भी नहीं थी। लाल रंग के कपड़े पहने कुली भी कभी-कभी दिख जाते थे। वैसे तो वो किसी स्थान पर बैठकर आपस में बातें ही करते हुए ज्यादातर दिखाई पड़ रहे थे। कुछ बच्चे भी ऐसे थे, जो चाय की बड़ी-बड़ी केतलियां लिए चाय बेच रहे थे। उन्हें इस रूप में देखना मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
मैंने अपने जीवन में सदैव इस बात की कामना की है कि कभी भी किसी बालक को मजदूरी-जैसा कर्म नहीं करने दिया जाना चाहिए। किन्तु हमारी सरकारी नीतियों की यह विफलता ही कही जाएगी कि जिन हाथों में कलम होनी चाहिए, वक्त और अभावग्रस्त परिस्थितियों ने उन हाथों में चाय की केतलियां पकड़ा दी हैं। मेरा मन तब और ज्यादा विचलित होने लगा जब मैंने कुछ ऐसे बच्चों को भी देखा जो जूते पॉलिस करने के लिए लोगों के आगे-पीछे चक्कर काट रहे थे।
रेलें आ रही थीं, कुछ वहाँ रूकती थीं और कुछ तो ऐसी थीं कि जो इस भव्य रेलवे स्टेशन पर भी नही रूकती थीं। वहाँ कि व्यवस्था को मैंने गौर से देखा। वहाँ सुविधाओं की बिलकुल भी कमी नही थी किन्तु कभी-कभी मैं यह सोचता हूँ, और आज भी इस स्टेशन पर खड़े होकर सोच ही रहा हूँ कि वो महान दिन, आखिर कब आएगा जब सारी दुनिया में ऐसी ही सम्पन्नता फैल जाएगी।