Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi आदर्श विद्यार्थी पर निबंध

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Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi

hindiinhindi Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi

Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi 300 Words

विचार-बिंदु – • विद्यार्थी के गुण • लगन और परिश्रम • सादा जीवन उच्च विचार • श्रद्धावान और विनयी • अनुशासनप्रिय • स्वस्थ और बहुमुखी • उच्च लक्ष्य।

विद्यार्थी का सबसे आवश्यक गुण है – जिज्ञासा। जिज्ञासा – शुन्य छात्र उस औंधे घड़े के समान होता है जो बरसते जेल में भी खाली रहता है। विद्यार्थी का दूसरा गुण है – परिश्रमी होना। जब जिज्ञासा और परिश्रम साथ-साथ चलते हैं तो विद्यार्थी तेजी से ज्ञान अर्जित करता है। विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह आधुनिक फैशनपरस्ती, फिल्मी दुनिया या अन्य रंगीन आकर्षणों से बचे। ये मायावी आकर्षण उसे चाहते हुए भी पढ़ने नहीं देते। विद्यार्थी को ऐसे मित्रों के साथ संगति करनी चाहिए, जो उसी के समान शिक्षा का उच्च लक्ष्य लेकर चले हों।

संस्कृत की एक सूक्ति का अर्थ है – श्रद्धावान और विनयी को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। जिस छात्र के चित्त में अपने ज्ञानी होने का घमंड भरा रहता है, वह कभी गुरुओं की बात नहीं सुनता। उसकी यह आदत उसकी सबसे बड़ी बाधा है। छात्र के लिए अनुशासनप्रिय होना आवश्यक है। अनुशासन के बल पर ही छात्र अपने व्यस्त समय का सही सदुपयोग कर सकता है। आदर्श छात्र पढ़ाई के साथ-साथ खेल-व्यायाम और अन्य गतिविधियों में भी बराबर रुचि लेता है। वह मानवसेवा, देश-सेवा और समाज-सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर देता है।

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Adarsh Vidyarthi Essay in Hindi 700 Words

विद्यार्थी जीवन को मनुष्य के जीवन की आधारशिला कहा जाता है। इस समय वह जिन गुणों व अवगुणों को अपनाता है, वही आगे चलकर चरित्र का निर्माण करते हैं। अत: विद्यार्थी जीवन सभी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। एक आदर्श विद्यार्थी वह है जो परिश्रम और लगन से अध्ययन करता है तथा सद्गुणों को अपनाकर स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माता-पिता व विद्यालय का नाम ऊँचा करता है। वह अपने पीछे ऐसे उदाहरण छोड़ जाता है जो अन्य विद्यार्थियों के लिए अनुकरणीय बन जाते हैं।

एक आदर्श विद्यार्थी सदैव पुस्तकों को ही अपना सबसे अच्छा मित्र समझता है। वह पूरी लगन और परिश्रम से उन पुस्तकों का अध्ययन करता है जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इन उपयोगी पुस्तकों में उसके विषय की पुस्तकों के अतिरिक्त वे पुस्तकें भी हो सकती हैं जिनमें सामान्य ज्ञान, आधुनिक जगत की नवीनतम जानकारियां तथा अन्य उपयोगी बातें भी होती हैं। एक आदर्श विद्यार्थी सदैव परिश्रम को ही पूरा महत्त्व देता है। वह परिश्रम को ही सफलता की कुंजी मानता है।

आदर्श विद्यार्थी अपने अध्यापक अथवा गुरुजनों का पूर्ण आदर करता है। वह उनके हर आदेश का पालन करता है। अध्यापक उसे जो भी पढ़ने अथवा याद करने के लिए कहते हैं वह उसे ध्यानपूर्वक सुनता है। वह सदैव यह मानकर चलता है कि वह गुरु से ही सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है। गुरुजनों के अतिरिक्त वह अपने माता-पिता की इच्छाओं एवं निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है।

किसी भी विद्यार्थी के लिए पुस्तक ज्ञान आवश्यक है परन्तु मात्र पुस्तकों के अध्ययन से ही सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। अतः एक आदर्श विद्यार्थी पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद व अन्य कार्यकलापों को भी उतना ही महत्त्व देता है। खेल-कूद व व्यायाम आदि भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इनके बिना शरीर में सुचारू रूप से रक्त संचार संभव नहीं है। इसका सीधा संबंध मस्तिष्क के विकास से है। खेलकूद के अतिरिक्त अन्य सांस्कृतिक कार्यकलापों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने से उसमें एक नया उत्साह तथा नई विचारधारा विकसित होती है जो उसके चरित्र व व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है।

विद्यार्थी जीवन को किसी भी मनुष्य के जीवनकाल की आधारशिला कह सकते हैं क्योंकि इस समय वह जो भी गुण अथवा अवगुण आत्मसात् करता है उसी के अनुसार उसके चरित्र का निर्माण होता है। कोई भी विद्यार्थी अनुशासन के महत्त्व को समझे बिना सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। अनुशासन प्रिय विद्यार्थी नियमित विद्यालय जाता है तथा कक्षा में अध्यापक द्वारा कही गई बातों का अनुसरण करता है। वह अपने सभी कार्यों को उचित समय पर करता है। वह जब किसी कार्य को प्रारम्भ करता है तो उसे समाप्त करने की चेष्टा करता है। अनुशासन में रहने वाले विद्यार्थी हमेशा परिश्रमी होते हैं। उनमें टालमटोल की प्रवृत्ति नहीं होती तथा वे आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ते हैं। उनके यही गुण धीरे-धीरे उन्हें सामान्य विद्यार्थी से एक अलग पहचान दिलाते हैं।

अनुशासन केवल विद्यार्थी के लिए ही आवश्यक नहीं है अपितु जीवन के हर क्षेत्र में इसका उपयोग है लेकिन इसका अभ्यास कम उम्र में अधिक सरलता से हो सकता है। अत: कहा जा सकता है कि यदि विद्यार्थी को विद्यार्थी जीवन से ही नियमानुसार चलने की आदत पड़ जाए तो शेष जीवन की राहें सुगम हो जाती हैं। ये विद्यार्थी ही आगे चलकर देश की राहें संभालेंगे, कल इनके कंधों पर ही देश के निर्माण की जिम्मेदारी आएगी। अत: आवश्यक है कि ये कल के सुयोग्य नागरिक बनें और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह धैर्य और साहस के साथ करें।

एक आदर्श विद्यार्थी नैतिकता, सत्य व उच्च आदर्शों पर पूर्ण आस्था रखता है। वह प्रतिस्पर्धा को उचित मानता है परन्तु परस्पर ईर्ष्या व द्वेष भाव से सदैव दूर रहता है। अपने से कमजोर छात्रों की सहायता में वह सदैव आगे रहता है तथा उन्हें भी परिश्रम व लगन से अध्ययन करने हेतु प्रेरित करता है। अपने सहपाठियों के प्रति वह सदैव दोस्ताना संबंध रखता है। इसके अतिरिक्त उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास होता है। वह अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को समझता है तथा अपनी कमियों के प्रति हीन भावना रखने के बजाय उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।

सारांश में वह विद्यार्थी जो कुसंगति से अपने आपको दूर रखते हुए सद्गुणों को निरन्तर अपनाने की चेष्टा करता है तथा गुरुजनों का पूर्ण आदर करते हुए भविष्य की ओर अग्रसर होता है, वही एक आदर्श विद्यार्थी है। उसके वचन और कर्म, दूसरों के साथ उसका व्यवहार, उसकी वाणी हमेशा यथायोग्य होनी चाहिए ताकि जीवन की छोटी-छोटी उलझनें उसका रास्ता न रोक सकें। क्योंकि किसी भी विद्यार्थी का जब लक्ष्य बड़ा होता है तो उसमें एक नवीन उत्साह की भावना संचार होती रहती है।

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