Andhvishwas in Hindi Essay अंधविश्वास पर निबंध
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अँधविश्वास के मूल में सदा अज्ञान रहता है। ज्ञान के प्रकाश के अभाव में मनुष्य अंधविश्वासों का शिकार हो जाता है। इस में सोचने-विचारने और विश्लेषण की शक्ति का अभाव रहता है। अतः वह अँधी मान्यताओं और विश्वासों को मानने लगता है। अंधविश्वासों के कारण न व्यक्ति का विकास होता है और न समाज का। अँधविश्वासी व्यक्ति को वही स्थिति होती है जो एक कुएं के मेंढक की। उसके चारों ओर संकीर्णता और जड़ता के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। वह विकास और ज्ञान से अपरिचित रहता है।
शिक्षा की कमी के कारण व्यक्ति में अंधविश्वास घर कर जाते हैं। वह भाग्यवादी तथा निकम्मा हो जाता है। भाग्य के भरोसे रहने के कारण उस में थोडा भी स्वावलम्बन या आत्मविश्वास नहीं रहता। वह सोचता है कि वह स्वयं अपने जीवन और भाग्य का निर्माता नहीं है। कोई अदृश्य शक्ति ही उसको नियंत्रित कर रही है। अतः उसमें आशा और उत्साह का सर्वथा अभाव रहता है। अंधविश्वास के कारण मनुष्य के चरित्र का पतन हो जाता है। उसमें कुरीतियां, पिछड़ापन, गरीबी, कुप्रथाएं और धर्मांधता आ जाती है। दूसरे लोग बड़ी सरलता से उसका शोषण करते रहते हैं।
शिक्षा के अभाव में समाज कई दोष उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे ही समाज में अंधविश्वासों का साम्राज्य होता है। नरबलि, पशुबलि और अनजान शक्तियों में गहरा विश्वास ऐसे समाज में सामान्यतः पाये जाते हैं। भूतप्रेत, जादू टोने और क्रुद्ध देवताओं में लोगों का विश्वास रहता है और वे तरह-तरह के ऐसे कार्यों में लगे रहते हैं जो हानिकारक होते हैं। पेड़ों, पत्थरों की पूजा, ताबीजों का उपयोग, शगुन विचार, देवी-देवताओं की पूजा, ज्योतिषियों पर निर्भरता, पंडे-पुजारियों पर विश्वास आदि अंधविश्वासी लोगों की सामान्य दुर्बलताएं हैं। वे सदा भयभीत और आतंकित रहते हैं। ऐसे समाज में हर काम को करने से पहले पंडे-पुजारी या तांत्रिकों से सलाह ली जाती है और शगुन पर विचार किया जाता है। कभी किसी स्त्री को डायन या भूतनी कहकर जला दिया जाता है, तो कभी किसी देवी या देवता को प्रसन्न करने के लिए किसी पशु या आदमी की बलि दी जाती है। अंधविश्वासों से ग्रसित लोग सदा भाग्य का रोना रोते रहते हैं। वे हमेशा सब घटनाओं के लिए देवी-देवताओं और अदृश्य शक्तियों को उत्तरदायी मानकर उनकी पूजा-अर्चना में अपना समय, पैसा व शक्ति बरबाद करते रहते हैं।
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी मनुष्य अंधविश्वासों का शिकार है। आज भी उस में वैज्ञानिक सोच, समझ और विश्लेषण का अभाव है। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण या किसी तारे का टूटना उसको भयभीत कर देता है। ग्रहों की किसी विशेष स्थिति में वह भयभीत और आतंकित होकर सर्वनाश की कल्पना और भविष्यवाणी कर देता है। हमारे समाचार-पत्र और पत्र-पत्रिकाएं भविष्य दर्शन के समाचारों से भरे पड़े हैं। हर समाचार-पत्र में ग्रहों की दशा, दिशा तथा स्थिति के आधार पर हर व्यक्ति के भाग्य और भविष्य का दिग्दर्शन कराया जाता है।
प्राय: देखा गया है कि पाठक सबसे पहले ऐसे ही समाचार और स्तम्भ को पढ़ता है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। हमारे पढ़े-लिखे लोगों का यह हाल है, तो अनपढ़ लोगों का क्या हाल होगा? वस्तुतः पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं है। किसी व्यक्ति में जब तक वैज्ञानिक सोच-समझ न हो, उसका किताबी ज्ञान किसी काम नहीं आएगा। वह परिस्थितियों और घटनाओं को उनके सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देख सकता। ऐसा व्यक्ति गलत अनुमान लगाने का आदि होता है और परिणामत: अंधविश्वासों का शिकार भी होता है।
अंधविश्वास एक महामारी की तरह है जो सबको प्रभावित करते हैं। ये सभी देशों और प्रत्येक समाज में पाये जाते हैं। इनके अनेक रूप और प्रकार हैं। यदि कोई बिल्ली रास्ता काट जाए तो जैसे आकाश ही टूट पड़ा और यदि बिल्ली काली हो तो फिर तो जैसे प्रलय ही आ जायेगी। किसी का छींकना भी बड़ा अशुभ माना जाता है। किसी भी काम के शुरु करने में कोई छींक जाए तो समझा जाता है कि काम अधूरा रहेगा और उस कार्य में सफलता नहीं मिलेगी। इसी तरह उल्लू के बोलने, गधे के रेंगने, कुत्ते के रोने, गीदड़ के चिल्लाने आदि को भी बड़ा अपशगुन माना जाता है। इन से मुक्ति पाने के लिए कई तरह के मूर्खतापूर्ण कार्य किये जाते हैं और धन की फिजुलखर्ची की जाती है। इससे पंडे-पुजारियों, तांत्रिकों और धूर्त लोगों की चांदी हो जाती है। समाज में ठगी और कुरीतियां बढ़ती हैं।
ऐसे समाज में असुरक्षा, भय और अज्ञान व अनजान शक्तियों के प्रकोप का भय हमेशा बना रहता है। एक समय था जब चेचक जैसे घातक रोग को देवी-प्रकोप मानकर उसकी पूजा की जाती थी और कोई उपचार नहीं किया जाता था। परिणामत: लोग मर जाते थे या फिर अंधे व अपंग हो जाते थे। जब हम किसी घटना या स्थिति को समझने में असमर्थ रहते हैं, तो हम उसे रहस्यमय समझकर उससे भयभीत हो उठते हैं। इसका तांत्रिक, ज्योतिषी, पुजारी तथा पंडे अनुचित लाभ उठाकर जनता का बहुत शोषण करते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी देशों में तेरह अंक को लेकर बड़ा अंधविश्वास है। इस अंक को बड़ा दुर्भाग्यशाली माना जाता है। तथा इससे बचने के भरसक प्रयास किये जाते हैं।
अंधविश्वासों को दूर करने के लिए पढ़ाई-लिखाई, वैज्ञानिक शिक्षा और ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है। विज्ञान के आधार पर ही स्थितियों का विश्लेषण किया जाना चाहिये। सत्य और तथ्यों के अभाव में अंधविश्वास फलते-फूलते हैं। उन्हें निर्मूल करने के लिए ज्ञान व शिक्षा का प्रसार करना आवश्यक है।
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