Essay on Apna Haath Jagannath अपना हाथ जगन्नाथ पर निबंध
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Apna Haath Jagannath अपना हाथ जगन्नाथ
Apna Haath Jagannath Essay in Hindi 300 Words
यह संसार उनका नहीं जो केवल हाथ-पर हाथ रख कर बैठे रहते हैं। संसार का प्रत्येक काम कर पाने में वही सफल होते हैं जिन्हें अपने हाथों पर, हाथों की उंगलियों की चंचलता, शक्ति और कार्य-क्षमता पर विश्वास होता है। संसार में सफल हुए प्रत्येक व्यक्ति का इतिहास इस बात का गवाह है। अपना हाथ और उस विश्वास वास्तव में आदमी के उद्यम और पुरुषार्थ का प्रतीक है। ऐसा विश्वास लेकर चलने वाला व्यक्ति भाग्य के माथे में भी कील ठोकने में ज़रूर सफल हो जाता है।
आँगन ने नदी बह रही हो और आदमी प्यासा मरे, है ना अचरज की बात। वह नदी की धारा वास्तव में व्यक्ति के अपने हाथों के कार्य करने की शक्ति ही है। इस शक्ति को पहचान कर जगा लेने वाला व्यक्ति कभी भी भाग्य भरोसे बैठ कर असफलता का रोना नहीं रोता और पश्चाताप नहीं करता। वह समय और परिस्थियिों को अपनी इच्छाओं के साँचे और हाथों के ढाँचे में ढाल कर हर प्रकार की सफलता प्राप्त कर लेता है। एक प्रसिद्ध कहावत है कि शेर के समान पुरूषार्थी व्यक्ति को ही लक्ष्मी अपनाया करती है। सब प्रकार के पुरूषार्थ के स्त्रोत और आधार व्यक्ति के अपने हाथ ही हुआ करते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं।
आपने कर्मशील व्यक्तियों, पुरुषार्थियों को देखा होगा। कोई भी प्रश्न आ खड़ा होने पर वे लोग बार-बार अपने हाथों की तरफ ही देखा करते हैं। ऐसा करके मानों वे हाथों की शक्ति को जगाते हैं कि यह काम करके ही दम लेना है। प्रश्न का उत्तर खोजना ही है। ऐसा न करने वालों को ही हाथ मलकर पछताना पड़ता है। सो आप यदि हाथ मल कर पछताना नहीं चाहते, अपने प्रत्येक कार्य में सफलता और सिद्धि चाहते हैं, तो मात्र इस मंत्र को याद रखते हुए परिश्रम पर जुट जाइये कि बस, अपना हाथ जगन्नाथ।
Apna Haath Jagannath Essay in Hindi 800 Words
‘अपना हाथ जगन्नाथ’ एक लोक-प्रसिद्ध कहावत है। इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ यही लिया जाता है कि व्यक्ति अपने हाथ से किए गए कार्यों पर ही विश्वास कर सकता है। उन्हीं के द्वारा परिश्रमपूर्ण कार्य कर के अपने घर-परिवार का लालन-पालन तो ठीक प्रकार से कर ही सकता है, अपने लिए यथासम्भव सफलता के प्रत्येक द्वार, प्रत्येक रास्ते का भी उद्घाटन कर सकता है। अपने हाथों की शक्ति आदमी की सब से विश्वसनीय सहकर्मी, साथी और सहयात्री हआ करती है। जिसे अपने हाथों की शक्ति पर विश्वास रहता है, उसे कभी भूल से भी पराश्रित नहीं बनना पड़ता। दूसरे के हाथों या मुख को जोड़ते रहने की कतई कोई आवश्यकता नहीं रह जाया करती। अतः अपने हाथों पर ही भरोसा करना चाहिए।
जगन्नाथ यानि सारे संसार के स्वामी जिस तरह सभी का पालन किया करते हैं, जिस का अन्य कोई सहारा नहीं रह जाता उसे भी सहारा दिया करते हैं, कभी भी साथ नहीं छोड़ते अपने पर निष्ठा रखने वालों का; ठीक उसी तरह अपने हाथों की कर्मशक्ति के प्रति निष्ठावान व्यक्ति को भी अन्य किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं रह जाया करती। जब बाकी सभी सहारे साथ छोड़ जाया करते हैं, तब जगन्नाथ के समान आगे बढ़ कर अपने हाथ व्यक्ति का एकमात्र विश्वास और सहारा बन जाया करते हैं। ऐसा हो जाने के बाद, ऐसा आत्मविश्वास उत्पन्न कर लेने के अनन्तर उसी प्रकार आदमी को अन्य सहारों की जरूरत नहीं रह जाया करती कि जैसे आत्म जागृति कि बाद एक सत्य-साधक को बाह्य-जागतिक आश्रयों-अनबन्धों की जरूरत नहीं पड़ा करती। उन सभी की क्षणभंगुरता और अविश्वसनीयता आत्म ज्ञान-रूपी दर्पण में स्वयं ही आभासित हो जाया करती है।
अपना हाथ जगन्नाथ इस कहावत पर विचार के इन क्षणों में स्वभावतः जापान के एक कर्मयोगी दार्शनिक का कथन याद आ रहा है। पूरे आत्मविश्वास के साथ वर्षों पहले उसने कहा था-‘हम जापानी अपने हाथों की उँगलियों के सहारे एक दिन सारे संसार को अवश्य जीत लेंगे। उन का यह कथन द्वितीय विश्व युद्ध के पहले सारे विश्व के बाज़ारों को बढ़िया और सस्ते जापानी माल से पाट देने के रूप में तो सत्य प्रमाणित हुआ ही था, द्वितीय युद्ध की ऐटमी विभीषिका में बुरी तरह झुलस कर तहस-नहस हो जाने के बाद भी कुछ ही वर्षों में आज फिर सत्य प्रमाणित हो रहा है। जापानियों की हाथों की कर्मठ उँगलियों के चमत्कार ने आज के सिरमौर दादा अमेरिका को भी आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में कहीं पीछे ढकेल दिया है। आज अपने आर्थिक साम्राज्य के लिए मात्र हाथों के बल पर एक बहुत बड़ी चुनौती बन कर उभर रहे जापान को अमेरिका कई प्रकार की धमकियाँ देने का दुःसाहस करता रहता है। पर उस की कर्मठ उँगलियाँ निर्भय होकर उस अनवरत पीछे धकेल कर ‘अपना हाथ जगन्नाथ इस कहावत को सटीक एवं सच्चरित्र रूप से सार्थक कर रही हैं।
यहीं पर स्वभावतः द्विवेदी युग के श्रेष्ठतम निबन्धकार अध्यापक पूर्ण सिंह के शब्दों में स्वामी रामतीर्थ के कथन का स्मरण भी आ रहा है। जापान-यात्रा कर के और वहाँ की सुख-समृद्धि का रहस्य जान लेने के बाद उन्होंने बडे सुलझे हुए ढंग से कहा था-“जिस देश के हाथों की उँगलियों और चेहरे पर परिश्रम की धल नहीं पड़ा करती, वह देश-जाति कभी भी उन्नति के शिखर नहीं छ सकते।” स्पष्ट है कि सब प्रकार की उन्नति और विकास के शिखर छूने के लिए अपने हाथों की उँगलियों में छिपी शक्ति को जगन्नाथ की अनन्त-असीमित शक्तियों के समान ही बनाने की अनिवार्य आवश्यकता हुआ करती है । व्यक्ति हो या समाज; देश, राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हाथों की शक्ति को पहचाने बिना, जगन्नाथ का-सा सर्वगुण-सम्पन्न स्वरूपाकार एवं अहसास दिए बिना उन्नति कर पाना कतई संभव नहीं। उन्नति तो क्या, एक कदम तक आगे बढ़ पाना संभव नहीं। ऐसी कल्पना ही नहीं की जा सकती। अतः सतर्क एवं सचेष्ट हो कर अपने हाथों और उनकी उँगलियों को जगन्नाथ बनाना जरूरी है।
बनाने वाले ने हाथ दिये ही तरह-तरह के कार्य करने के लिए हैं। इसलिए कि अनवरत कर्म द्वारा संसार-सागर को मथ कर उसमें जो सुख एवं आनन्द-रूपी मोती-माखन छिपा पड़ा है, उसे दोनों हाथ बढ़ा कर अपने लिए समेट लिया जाए। भई, पका-पकाया खाना मिल जाने पर भी तो उसे मुँह में डालने के लिए हाथ हिलाने ही पड़ा करते हैं न। हाथ हिलाए या चलाए बिना कतई कोई भी कार्य कर पाना संभव नहीं। इसलिए हमारे शास्त्रों ने भी सुबह उठने के बाद भगवान् का स्मरण करते हुए सब से पहले अपनी हथेलियाँ देखने की ही बात कही है। ताकि उन्हें देखने के बाद उनकी शक्ति, उनके द्वारा संभव कर्म करने का आनन्दोत्साह जाग उठे। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ कहावत का यही वास्तविक अर्थ एवं अभिप्राय है।
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