Bhagat Singh Essay in Hindi भगत सिंह पर निबंध हिंदी में
|Bhagat Singh Essay in Hindi 350 Words
भगत सिंह पर निबंध
सरदार भगत सिंह एक युवा भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्हें “शहीद भगत सिंह” कहा जाता है। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। | अमर शहीदों में सरदार भगत सिंह का नाम सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का उनका नारा ने युवाओं पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान काफी प्रभाव डाला था।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले में बंगा गांव के एक सिख परिवार में हुआ था। (जो अब पाकिस्तान में है) उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था और माता का नाम विद्यावाती कौर था। उनके दादा अर्जुन सिंह, पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह सभी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे।
1916 में भगत सिंह D.A.V स्कूल में अध्ययन करते हुए लाहौर में कुछ प्रसिद्ध राजनीतिक नेताओं जैसे लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस के संपर्क में आए। उस समय भगत सिंह 9 साल के थे। यहां उनकी राष्ट्रीयता की भावना को काफी बल मिला। स्कूल की पढ़ाई के साथसाथ वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड का भगत सिंह पर गहरा असर हुआ और वे इस ब्रिटिश क्रूरता को सहन नहीं कर सके। भगत सिंह दूसरे दिन वहां जा कर खून से सनी मिट्टी ले आये थे। लाहौर के राष्ट्रीय कॉलेज से अध्ययन छोड़ने के बाद भगत सिंह ने भारत की स्वतंत्रता के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
1929 में भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने मिलकर दिल्ली के केंद्रीय विधान सभा में बम फेका और नारा लगाया :- “इंकलाब जिन्दाबाद, अंग्रेज साम्राज्यवाद का नाश हो”। विस्फोट करने के बाद वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि उन्होंने अपनी भागीदारी कबूलते हुए पुलिस में आत्मसमर्पण कर दिया।
23 मार्च 1931 को भगत सिंह और उनके दो साथियों के साथ राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटकाया गया था। जब भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी, उस समय वे सिर्फ 23 वर्ष के थे। इसके बाद भारत के लोगो ने भगत सिंह को शहीद – ए – आजम का नाम दिया। जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों का बलिदान हंसते-हंसते दे दिया था।
Bhagat Singh Essay in Hindi 700 Words
भगत सिंह पर निबंध
जन्म और परिवार
सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 ई. को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा (जो अभी पाकिस्तान में है) के एक देशभक्त सिक्ख परिवार में हुआ था। इनका पैतृक गाँव खटकड़ कलां है जो भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह तथा माता जी का नाम विद्यावती था।
देशभक्ति और क्रान्ति की भावना उन्हें अपने परिवार से प्राप्त हुई थी। उनकी दादी श्रीमती जय कौर साहसी, निडर और वीर भावनाओं वाली महिला थीं। उन्होंने सारे परिवार में राष्ट्रीयता की भावना भर दी थी। इस दिन उनके पिता नेपाल से वापस आए थे। चाचा अजीत सिंह भी माँडले जेल से छूटकर आए थे। इसलिए उनका नाम ‘भागों वाला’ रखा गया। पारिवारिक वातावरण ने बचपन में ही सरदार भगत सिंह को वीर, निडर, साहसी और देशभक्त बना दिया था।
शिक्षा और बचपन
भगत सिंह ने प्राइमरी शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की। फिर उन्हें लाहौर के डी. ए. वी. स्कूल में दाखिल करवाया गया। बचपन में पिस्तौल चलाना, नकली सेना बनाकर युद्ध करने से किशोरावस्था में ही उनमें देशभक्ति और क्रान्ति के गुण उभर आए। |
आन्दोलनों में भाग
सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ। भगत सिंह पढ़ाई छोड़ काँग्रेस के स्वयं सेवकों में भर्ती हो गए। सन् 1923 में इंटरमीडिएट परीक्षा पास की। सन् 1924 में अकाली दल का जैतों का मोर्चा आरम्भ हुआ। भगत सिंह ने इसमें भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। सन् 1925 में नौजवान भारत सभा की स्थापना हुई। भगत सिंह इसमें जनरल सेक्रेटरी थे और चन्द्रशेखर आजाद कमाण्डर थे।
सेवा की भावना
सरदार भगत सिंह का हृदय कोमल था। जब वे कानपुर में थे तो गंगा की बाढ़ के कारण भीषण संकट आ गया था। उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर बाढ़-पीड़ितों की तनमन से सेवा की। देश को आजाद कराने के लिये भगत सिंह ने महान त्याग किया था। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वैसे उन्हें पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था। उन्हें पंजाबी, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और बांग्ला भाषा भी आती थी। उन्होंने हिन्दी और उर्दू में लेख और गज़लें देशप्रेम के नाटक और गीत लिखे।
साइमन कमीशन तथा सांडरस की मौत
30 अक्तूबर, 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। इसके विरोध का नेतृत्व नौजवान भारत सभा ने अपने हाथ में लिया। जिसमें लाठीचार्ज से लाला जी घायल हो गए। 17 नवम्बर, 1928 को वे परलोक सिधार गए। उन्होंने दिल्ली, कानपुर, पटना, कोलकाता तक बार-बार चक्कर लगाकर देश के क्रान्तिकारी संगठनों की बैठके दिल्ली में की। उन्होंने देश में क्रांति और जागृति की भावना फैला दी। भगत सिंह ने अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला सांडरस की जान लेकर किया।
केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंकना
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंके। उन्होंने इन्कलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाते हुए अपनी गिरफ्तारी दे दी। वे चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। बम फेंक कर वे किसी को मारना नहीं चाहते थे बल्कि वे तो अत्याचारी सरकार का भांडा फोड़ना चाहते थे।
फाँसी की सजा मिलना तथा शहीदी
उन पर लाहौर षड्यन्त्र का मुकद्दमा चला और 17 अक्तूबर, 1930 को उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई । निश्चित दिन से एक दिन पहले 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह को उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। उनकी लाशों के टुकड़े-टुकड़े करके उसी रात फिरोजपुर से ग्यारह किलोमीटर दूर हुसैनीवाला स्थान पर सतलुज नदी के किनारे जला दिये गये।
जागृति संदेश
क्रांतिकारी भगत सिंह की शहीदी ने सारे भारत में क्रांति ला दी। कई नवयुवको ने हँसते-हँसते देश के लिए प्राण त्याग दिए। हमारा देश आजाद हुआ। शहीदों की याद में बना यह स्मारक राष्ट्रीयता और बलिदान का प्रतीक बन गया हैं। उनका बलिदान आज भी हमारे दिल में देश-भक्ति, साहस, निडरता, त्याग और बलिदान की भावना जगा रहा है।
विशेष जानकारी
भगत सिंह के पैतृक गाँव खटकड़ कलां पंजाब में स्थित घर को सरकार द्वारा विरासत के रूप में संभाला गया है। उनके गाँव के मुख्य मार्ग (नवांशहर-बंगा) पर सन् 1981 में अजायबघर का निर्माण किया गया। जिसमें उनके द्वारा प्रयोग किये गये सामान एवं पत्र इत्यादि संरक्षित हैं।
Bhagat Singh Essay in Hindi 1000 Words
भूमिका
पराधीनता की भयानक और काली रात के अन्धकार में भारत का भारत डूबा था। अपनी ही धरती, अपने ही आकाश और अपने ही घरों में भारतवासी परतन्त्र थे, गुलाम थे। विदेशी शासकों की दया और कृपा पर उनका भाग्य निर्भर करता था। अपनी इच्छा और कल्पना, भावना तथा विचार प्रकट करने के लिए भी वे स्वतन्त्र न थे। अपनी प्रगति, न्याय और सम्मान के लिए भी वे पराश्रित थे। अन्याय की इस कालिमामयी रात्रि को चीरकर और स्वतन्त्रता के सूर्य को भारत के भाग्याकाश में उदित करने वाले शहीदों की प्रातः स्मरणीय गाथा में शहीद भगत सिंह का नाम अविस्मरणीय है। अपने बाल्यकाल से ही स्वतन्त्रता के प्रेमी दीवाने बालक ‘भागांवाला’ ने स्वतन्त्रता के अश्वमेघ में अपने जीवन की जो आहुति दी उससे निकलने वाली लपटों की भयावह आग में विदेशी शासन जलकर भस्मीभूत हो गया। ‘भारत मां का लाडला’, ‘भारतीयों का कण्ठाहार’ भगत सिंह बलिदान की अमिट-अमर गाथा का दिव्य नायक है।
जीवन की झलक
सरदार भगत सिंह का परिवार देश भक्तों का परिवार था। आप के पिता सरदार कृष्ण सिंह कांग्रेस पार्टी के गणमान्य सदस्यों में से थे। आप के चाचा अजीत सिंह “पगड़ी सम्भाल जट्टा” लहर के नेता थे और अंग्रेज़ों की लम्बी सजा काट कर आए थे। आप की दादी बचपन से ही वीर पुरुषों की कहानियां सुनाती थी और वीरता की लोरियाँ देती थी। ऐसे वीर और देश भक्त परिवार में पला हुआ सरदार भगत सिंह क्यों न देश भक्त निकलता।
सरदार भगत सिंह का पहला नाम भागांवाला था क्योंकि जिस दिन यह पैदा हुआ उस दिन इनके पिता नेपाल से आए थे और दादी ने कहा था यह लड़का भाग्य शाली है इसी लिए इसका नाम भागांवाला रखा गया और यही बाद में भगत सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सचमुच यह बालक सौभाग्यशाली था देश के लिए भी और परिवार के लिए भी। इस का जन्म सन् 1907 में पंजाब प्रान्त के ज़िला जालन्धर के तहसील बंगा के पास खटकड़ कला में सरदार कृष्ण सिंह के घर हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही पाई। मैट्रिक तक शिक्षा डा. ए. वी. स्कूल से पाई और नेशनल कालेज लाहौर से आप ने बी. ए. पास की। अनेक पत्रों के सम्पादक बने। एक स्कूल में मुख्य अध्यापक भी रहे। नाम बदल-बदल कर भी कई स्थानों पर घूमते रहे। घर वालों ने आप का विवाह करने का विचार किया पर आप घर से यह सोच कर भागे कि शादी देश भक्ति में बाधा पहुंचाएगी इस तरह आप का जीवन देश भक्ति से युक्त रहा।
क्रान्ति के पथ पर
जिस समय शहीद भगत सिंह का जन्म हुआ उस समय कांग्रेस की दो पार्टियां बन चुकी थीं। नरम दल और गरम दल। नरम दल के लोग नियमों द्वारा और विधान द्वारा देश को स्वतन्त्र करवाना चाहते थे। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू इसी दल के सदस्य रहे पर गरम दल वालों का विचार था कि लातों के भूत बातों से नहीं माना करते इस लिए अनुनय विनय से आज़ादी नहीं मिल सकती इस लिए क्रान्ति का पथ अपनाना चाहिए। लोक मान्य तिलक इस दल के नेता थे। बाद में चन्द्र शेखर आज़ाद, बटुकेश्वर दत्त आदि ने इस पथ को अपनाया। सरदार भगत सिंह जी इसी दल के सदस्य बने।
जलियांवाला बाग में जब सन् 1919 में गोली चली उस समय भगत सिंह की आयु 11 वर्ष की थी उसने हज़ारों लोगों को मरते हुए देखा। भगत सिंह ने उस भूमि की मिट्टी को माथे पर लगाया और कसम खाई कि जब तक देश को आज़ाद न करा लूंगा तब तक चैन से न बैठूंगा। 30 अक्तूबर, 1928 को साईमन कमीशन का बहिष्कार किया गया इस सम्बन्ध में बड़ा भारी जलूस लाहौर में निकला। दफा 144 लगी हुई थी पर शहीद होने वाले दफा की कब परवाह करते हैं। लाल लाजपत राय उस जलूस के नेता थे। उन पर लाठियां बरसीं और 17 नवम्बर, 1928 को उन की मृत्यु हो गई। भगतसिंह के हृदय पर इस घटना का गहरा आघात लगा। सरदार भगत सिंह ने सोच लिया कि कोई ऐसा काम किया जाए जिस से बहरे कानों को कुछ सुनाई दे इसलिए उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 को असैम्बली में दो बम्ब फेंके और कुछ पर्चियां फैकीं। भगत सिंह चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।
फांसी की सजा
भगत सिंह पर केस चला। भगत सिंह के साथ सुखदेव और राज गुरु भी थे। 7 अक्तूबर, 1930 को भगत सिंह को फांसी की सजा सुना दी गई। देश में आन्दोलन हुए, हड़ताले हुई, जलसे हुए, जलूस निकले पर अग्रेज़ों के कानों पर जूं तक न रेंगी। आखिर 23 मार्च, सन् 1931 को शाम के समय सरदार भगत सिंह को फांसी दे दी गई। फांसी का फंदा चूमते हुए सरदार भगत सिंह ने कहा, आत्मा अमर है इसे कोई मार नहीं सकता। पैदा होने वाले के लिए मरना और मरने वाले के लिए पैदा होना ज़रूरी है। मैं मर रहा हूं, भगवान् से प्रार्थना है कि मैं फिर इसी देश में जन्म लू और अंग्रेज़ों से संघर्ष करता हुआ देश को आजाद कराऊं और यह कहते हुए भगत सिंह ने फांसी का फंदा चूम लिया।
“सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में है।”
पसंहार
आज हम स्वतन्त्र हैं पर हमें उन देश भक्तों के बलिदान नहीं भूलने चाहिएं। आज हम सब को भाषा, प्रान्त और जातीयता से ऊपर उठना चाहिए। हमारे सामने एक लक्ष्य रहना चाहिए कि हम सब एक ही देश के वासी हैं। यही भगत सिंह जी के सच्ची श्रद्धांजलि होगी और दूसरी बात यह कि हमें इन शहीदों का नाम कभी नहीं भूलना चाहिए इनके कर्तव्य हम में प्रेरणा भरने वाले हैं।
“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।”
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