Bhopal Gas Tragedy in Hindi Essay भोपाल गैस त्रासदी पर निबंध
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Bhopal Gas Tragedy in Hindi
भोपाल गैस त्रासदी
आप सभी लोग अपने आस-पास विकसित और निर्मित होते बड़े-बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों को रोज ही देखते हैं। इनमें जितनी संख्या में कर्मचारी काम करते हैं उससे कहीं ज्यादा संख्या में बड़ी-बड़ी यंत्र चालित मशीनें कार्य करती हैं। इन उद्योगों में अरबों रूपये लगाया जाता है। इनको सरकारी-गैर सरकारी संस्थाए एवं व्यक्ति स्थापित एवं कार्यशील करते हैं। औद्योगिक विकास इन्हीं बड़े-बड़े उद्योगों पर निर्भर करता है। वास्तविकता तो यह है कि आज हम जिस विराट शहरी समाज में निवास करते हैं, जिस आत्याधुनिक समाज में रहते हैं, वह इन्ही औद्योगिक प्रतिष्ठानों का परिणाम कहा जा सकता है।
आज दुनिया का हर छोटा-बड़ा देश स्वयं को अत्याधुनिक रूप से विकसित करना चाहता है। इस दिशा में वह किसी भी मामले में पिछड़ना नहीं चाहता। इस जल्दबाजी में कई बार ऐसा होता है कि हम सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं का ध्यान भी नहीं रख पाते, जिसके हमें भयंकर परिणाम देखने पड़ते हैं और देखने भी पड़े हैं। भोपाल की गैस रिसाव की घटना एक ऐसी ही त्रासद घटना थी। वस्तुत: आधुनिक समाज व्यवस्था का चरित्र ही कुछ ऐसा हो गया है कि अनायास कछ अनहोनी घट जाती है, और हजारों लोगों की जिन्दगी क्षणमात्र में काल कवलित हो जाती है। आधुनिक विकास की यात्रा ऐसी अनेक घटनाओं से भरी हुई रही है। इस विकास यात्रा में कभी प्रत्यक्ष रूप से, तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से सामान्य लोगों की जानों का काल के हाथों नष्ट होना पड़ा है। कभी विकास की लालसा में अन्धा होकर हमने ग्रामीण क्षेत्रों में अनधिकार रूप से प्रवेश किया और वहां का सामाजिक-जीवन इससे नष्ट हो गया।
विश्व की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है और उद्योगों एवं मानव बस्तियों में दूरियां अब प्राय: समाप्त होती जा रही हैं। देश के अनेक शहर आज इस प्रकार की स्थितियों से ग्रस्त हैं। सन् 1984 की भोपाल-गैस त्रासदी जिस यूनियन कार्बाइड (इंडिया) लिमिटेड में हुई थी, वह एक सघन आबादी वाला क्षेत्र था। इस महत्वाकांक्षी प्रोजक्ट से कुछ अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भी संबद्ध थी। यह औद्योगिक संस्थान आरम्भ में बैटरियों का निर्माण करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। किन्तु सन् 1980 के आस-पास इस फैक्टरी में एम आई सी (द्रुष्ट) नामक एक अत्यंत विषाक्त गैस भी निर्मित की जाने लगी थी। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उस उद्योग का अन्तर्राष्ट्रीय महत्व था और इसकी आगामी भूमिका भारतीय विकास के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती थी और हो भी रही थी। किन्तु सरकारी तंत्र और प्रशासकों को इस संदर्भ में पूरी सुरक्षा और एहतियात बांटनी चाहिए थी कि इस उत्पादन से संबंधित भिन्न-भिन्न प्रकार के खतरों को भी समझना चाहिए था और संभावित खतरों से बचाव के पर्याप्त साधनों को उपलब्ध कराना चाहिए था।
किन्तु यह अत्यंत दुखद प्रसंग है कि अति उत्साहित सरकारी प्रशासन ने इस बात को भी भुला दिया कि औद्योगिक-संस्थान जिस स्थान पर स्थापित किया गया है वह क्षेत्र अत्यंत सघन आबादी वाली क्षेत्र हो गया है। इस संदर्भ में सन् 1975 में भी भोपाल के तत्कालीक प्रशासक ने एक विस्तृत रिर्पोट तैयार की थी जिसमें इस उद्योग के संभावित खतरों को उजागर किया गया था और जल्द से जल्द इस कारखाने को वहाँ से हटाने का सझाव भी दिया गया था। किन्तु न केवल उनके सुझावों को नजरअंदाज कर दिया गया बल्कि उस रिर्पोट को भी सरकारी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा।
इसी सरकारी उपेक्षा का परिणाम एक भयानक गैस त्रासदी के रूप में हमारे सामने आया और उसका भयावहता इतनी प्रचण्ड थी कि उसने अपने रिसाव के समय ही मजदूरों की जान ले ली। साथ ही वहां बसने वाली आबादी को भी दरगामी रूप से प्रभावित किया। इस प्रकार इस गैस-काण्ड की चपेट में वहां का वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य भी आ गया। लोगों की जीवन-स्थितियों को इसने बद से बदतर कर दिया।
भोपाल की गैस त्रासदी एक जघन्य घटना थी। इसने व्यापक रूप से मानव-समाज को प्रभावित किया और उन्हें, जो इसकी विषाक्त गैस-एम- आई-सी- (MIC) की चपेट में आ गये, रोगों का घर बना कर छोड़ दिया। एम आई सी (MIC) एक अत्यंत विषाक्त गैस है । उस रात्रि को, जब सारा शहर गहरी नींद में सो रहा था, अचानक इस गैस का रिसाव होने लगा, थोड़ी ही देर में स्थिति काबू से बाहर हो गयी और हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए।
सरकार की तरफ से पीड़ितों के लिए सहायता राशि की घोषणाएं की गयी किन्तु आज तक उनका जीवन पूर्णत: व्यवस्थित नहीं हो सका है। आज जबकि इस घटना को हुए एक लम्बा समय बीत चुका है, फिर भी ऐसा लग रहा है जैसे यह भयानक घटना हाल ही में घटित हुई ।
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