Essay on Bihu Festival in Hindi बिहू पर निबंध
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Bihu Festival in Hindi
रूपरेखा : उत्सवों का देश भारत, देश के विविध पर्व, असम का प्रमुख त्योहार बिहू, पर्व का कृषक जीवन से संबंध, बिहू के प्रमुख प्रकार, बिहू के मनाने का उपक्रम।
भारत पर्वो, उत्सवों और त्योहारों का देश है। समय-समय पर विविध प्रकार के त्योहारों का आगमन देशवासियों में उल्लास और उत्साह का संचार करता है। देश भर में विभिन्न अवसरों पर आयोजित होने वाले इन उत्सवों और पर्यों में हमारी संस्कृति मुखर होती है। बिहू असम राज्य की संस्कृति को मुखर करने वाला एक ऐसा ही प्रमुख त्योहार है।
बिहू का त्योहार मुख्यतः कृषक-जीवन के उल्लास को अभिव्यक्त करता है। असम के कृषकों को बिहू के उल्लास में झूमते हुए देखा जा सकता है। किंतु यह त्योहार केवल कृषकों तक सीमित नहीं है। इस अवसर पर असम प्रदेश के सभी निवासी एक-दूसरे की खुशहाली की कामना करते हुए नाचते-गाते, उत्सव मनाते दिखाई देते हैं। इस त्योहार को सभी धर्मों, संप्रदायों और जातियों के लोग मिलजुल कर मनाते हैं। देश की भावात्मक एकता की सजीव झाँकी बिहू के अवसर पर देखने को मिलती है।
बिहू का पर्व वर्ष में तीन बार मनाया जाता है। वसंत के मौसम में जब असम के किसान अपने खेतों को जोतकर तैयार करते हैं, तब वे जिस पर्व को मनाते हैं उसे ‘बोहाग बिहू’ कहते। हैं। खेतों में रोपाई के पश्चात् जब धान के कोमल अंकुर फूटने लगते हैं, तब शरद ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है। इस मौसम में जो पर्व मनाया जाता है उसे ‘कातिक बिहू’ कहते हैं। माघ मास में जब फ़सल की कटाई का कार्य किया जाता है तब जो पर्व मनाया जाता हैं उसे ‘माघ बिहू’ कहा जाता है।
बिहू के उत्सवों में सबसे पहला ‘बोहाग बिहू’ है। असम में जब तेज़ हवाएँ और वर्षा का आगमन होता है तब किसान खेतों में जुताई के कार्य में उत्साह के साथ जुट जाते हैं। इस अर्थ में ‘बोहाग बिहू’ उत्पादनशीलता का प्रेरक त्योहार है। ‘बोहाग बिहू’ के अवसर पर पहले दिन गाय-बैलों का पूजन होता है। इसे ‘गारू बिहू’ कहते हैं। दूसरे दिन का उत्सव अधिक सामाजिक होता है, जिसे ‘मानुह बिहू’ कहा जाता है। तीसरे दिन पूजा-पाठ की प्रधानता रहती है और इस उत्सव को ‘गोहाई बिहू’ कहते हैं।
‘गारू बिहू’ के पर्व पर गाय-बैलों को नहलाया और सजाया जाता है। कुछ समय के लिए सारे पशुओं को खूँटों से खोलकर मुक्त कर दिया जाता है। ग्वाले लोकगीत गाते हैं। लोग अपने शरीर पर उबटन के रूप में उड़द, हल्दी, नीम आदि का लेप कर स्नान करते हैं। धान की भूसी जलाकर पशुशालाओं को मच्छरों से मुक्त किया जाता है और उनकी लिपाई-पुताई भी की जाती है। इस अवसर पर गो-लक्ष्मी की पूजा भी होती है।
‘मानुह बिहू’ के दिन लोग प्रातःकाल स्नान करके नए-नए वस्त्र पहनते हैं। फिर वे गुरुजनों, इष्ट-मित्रों, अपने से बड़ों को प्रणाम करते हैं तथा बिहू की भेंट अर्पित करते हैं। घर पर बने हुए लाल किनारी के गमछे ‘गामोसा’ भेंट स्वरूप दिए जाते हैं। इस दिन घर के बड़े-बूढ़े लोग ज्योतिषियों के घर पर एकत्र होकर नव वर्ष का पंचांग सुनते हैं। सभी एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं।
‘गोहाई बिहू’ के दिन धार्मिक अनुष्ठान, सामूहिक प्रार्थना आदि का आयोजन होता है। ‘गोहाई बिहू’ का पर्व सात दिन तक मनाया जाता है। अंतिम दिन के पर्वोत्सव को ‘बिदा का बिहू’ कहा जाता है। अंतिम उत्सव गाँव से बाहर जाकर मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रायः हर व्यक्ति किसी-न-किसी बुरी आदत को छोड़ने का व्रत लेता है और गाँव लौटते समय पीछे मुड़कर नहीं देखता। ‘बोहाग बिहू’ के अवसर पर खेलकूद का आयोजन करने की परंपरा है। बिहू गायन, बिह नृत्य का भी व्यापक प्रचलन है।
असम का दूसरा प्रमुख बिहू उत्सव कार्तिक मास में होता है, जिसे ‘कातिक बिहू’ कहते हैं। इस अवसर पर किसानों के पास धनाभाव होता है अतः यह उत्सव अत्यंत सादगी के साथ मनाया जाता है। इसलिए ‘कातिक बिहू’ को ‘कंगाली बिहू’ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व पर तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। तुलसी-चौरे पर और केले के पेड़ों के नीचे दीप जलाए जाते हैं। कृषक खेतों में दीप जलाते हैं, मंत्र पढ़ते हुए धान के पौधों पर वनौषधियों की टहनियाँ फेरते हैं।
तीसरा और सबसे उल्लासमय पर्व ‘माघ बिहू’ है। यह ‘भोगाली बिहू’ के नाम से भी जाना जाता है। यह जाड़ों में फ़सल की कटाई के बाद का त्योहार है। किसान के पास पर्याप्त धन आ जाने के कारण घर पर स्त्रियाँ चावल के पुए, विविध प्रकार की मिठाइयाँ और तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं। पौष मास के अंतिम दिन से यह पर्व प्रारंभ होता है। ‘मेला घर’ और ‘मेजी’ माघ बिहू के दो प्रमुख अंग हैं। ‘मेला घर’ के अंतर्गत ग्रामीण लोग नदी आदि के किनारे खाली खेतों में अस्थायी छोटी कुटिया बनाकर इस उत्सव को मनाते हैं। ‘माघ पूर्णिमा की पूरी रात खाते-पीते, नाचते-गाते, मौज-मस्ती के साथ बिताई जाती है। रात के भोजन में ताज़ी मछली का प्रमुख स्थान होता है।
‘मेजी बिहू’ होलिका-दहन की तरह मनाया जाता है। माघ पूर्णिमा के दूसरे दिन बड़े सवेरे गाँव के मुखिया स्नान आदि के बाद भगवान का स्मरण करते हुए कई दिनों के एकत्र जलावन को जलाते हैं, जिसे ‘मेजी’ कहा जाता है। कुछ देर इस आग को तापकर अधजली लकड़ी को लेकर लोग अपने-अपने घर जाते हैं। अधजली लकड़ी को शुभ मानकर लोग इसे फलदार बागों में डालते हैं। इस अवसर पर मिठाई-वितरण, खान-पान, नृत्य-गान, खेलकूद आदि के आयोजनों की विशेष धूम रहती है।
‘बिहू’ वस्तुतः असम के लोक जीवन की उल्लासपूर्ण अभिव्यक्ति है। इसका खेत-खलिहान से अटूट रिश्ता है। अब शहरी परिवेश में भी इसका महत्त्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। बिहू के विषय में उचित ही लिखा है –
बिहू हमारा पर्व, हमारी खुशहाली है,
खेतों और बगीचों की यह हरियाली है।
यह उल्लास किसानों का, है उमंग असम की,
है बच्चों की हँसी और खुशियाँ हम सबकी।
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