Bird Flu in Hindi बर्ड फ्लू पर निबंध
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बर्ड फ्लू पर निबंध
बर्ड-फ्लू का अर्थ होता है ‘एवियन एन्फलूएंजा’। इसका प्रमुख कारण एक वायरस होता है, जिसे ‘एच 5 एन 1′ कहा जाता है। यह रोग एवं वायरस मूलत: पक्षियों में पाया जाता है। मांसाहारी लोगों को इससे अत्यधिक खतरा होता है; क्योंकि यह रोग और ‘एच 5 एन’ नामक वायरस ऐसे मर्गे-मुर्गियों में अधिक पाये जाने की संभावना होती है, जो दूषित गन्दे पोल्ट्री फार्मों में रहते हैं । यह रोग जिन पक्षियों में सर्वाधिक रूप से अभी तक पाया गया है उनमें मांस के रूप में उपयोग में लाए जाने वाले मुर्गे-मुर्गियां ही प्रमुख हैं। हम सब यही सोचते हैं कि जब यह रोग पक्षियों में पाया जाने वाला रोग है, तब इससे मानव-समाज को खतरा किस प्रकार हो सकता है। किन्तु वैज्ञानिक अनुसन्धानों ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि यह वायरस अपना रूप बदल कर मानव-शरीर में भी दाखिल हो सकता है और उसे भयानक रूप से प्रभावित कर सकता है। क्रोनिकल’ नामक पत्रिका में इस संदर्भ में लिखा गया है-“सामान्यत: इसका विषाणु पक्षियों पर ही प्रभावी होता है। लेकिन एड्स आदि बीमारियों ने यह साबित कर दिया है कि जानवरों और पक्षियों को बनाने वाले वायरस अपना रूप बदलकर मानवों पर भी असर डाल सकते हैं। पशुओं और जानवरों से मनुष्यों में स्थानांतरित होने वाली बीमारियों में यह अपेक्षाकृत यह नयी बीमारी है और यही कारण है कि चिकित्सा विज्ञान अभी इसके लिए कोई प्रतिरोधी उपचार विकसित नहीं कर पाया है।
इस रोग को विश्व स्तर पर अति गंभीरता के साथ लिया गया है। इसके प्रतिरोध का कार्यक्रम विकसित करने के लिए विश्व का प्रत्येक देश अपने स्तर पर किसी न किसी रूप से सक्रिय बना हुआ है। किंतु निकट भविष्य में इसके प्रतिरोधी औषधि आदि के सामने आने की उम्मीद कम ही दिखलायी पड़ रही है। ‘बर्ड-फ्लू’ नामक यह रोग, सर्वप्रथम थाईलैण्ड के मुर्गों में दिखलायी पड़ा था। 2004 में, बैंकाक में संपन्न हुई तीन-दिवसीय बैठक में थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार किया, साथ ही इस बात के लिए दुःख भी प्रकट किया कि जानकारी होने पर भी उसके उचित प्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं की गयी। यह रोग सन् 2004 के दौरान अत्यंत विकराल रूप लेकर उभरा। चीन में मनाए जाने वाले पर्व ‘थेंक्स बगिविंग’ से इसका प्रसार अत्यधिक व्यापक रूप से हुआ। इस पर्व में मुर्गे का मांस खाना परम्परा से अनिवार्य माना जाता है। इसी के चलते 2004 में भारी संख्या में मर्गे थाईलैंड से मंगवाये गए, जिससे चीन में भी ‘बर्ड फ्लू’ फैला और उसने चीनियों को प्रभावित किया। इसके बाद यह कम्बोडिया, ताईवान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, वियतनाम, लाओस, जापान आदि देशों में भी फैल गया। इससे तात्कालीक बचाव के लिए हजारों की संख्या में मुर्गे-मुर्गियां जलाकर मारी गयीं। किन्तु यह कार्य पूर्णत: प्रभावशाली नहीं हो सका और सन 2004 का वर्ष व्यापक रूप से ‘बर्ड-फ्लू’ से आतंकित वर्ष रहा।
इस रोग को भारत में फैलने रोकने के लिए भारत सरकार की ओर से अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। सरकार ने इसके ऊपर निगरानी रखने के लिए एक आठ सदस्यीय समिति भी बनाई थी। इसी के साथ देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में पूरी तरह से रेड अलर्ट घोषित कर दिया था। सरकारी तौर पर यह आदेश दे दिये गए थे कि अगर किसी भी पोल्ट्री फार्म में किसी मुर्गे की मौत बीमारी की अवस्था में होती है तो तुरंत उस फॉर्म की सभी मुर्गियों को मार दिया जाय। इसी के साथ सरकार ने अनेक और भी प्रतिरोधी गतिविधियों को अपनाया। आने वाले यात्री जो कि अन्य देश से भारत में आते थे, उनकी पूरी जांच एवं स्क्रीनिंग की तैयारियाँ की । गई और इसे अनिवार्य बना दिया गया।
अभी हाल में भी बर्ड-फ्लू की बात देश-भर में आग की तरह फैल गयी थी। सरकार तुरंत हरकत में आयी और उसने संभावित क्षेत्रों की तुरंत पहचान कर उपयुक्त निर्देश जारी किये। इसमें मुर्गियों को मारने का भी आदेश दिया गया।
आज हम जिस समय और समाज में रह रहे है वह भूमण्डलीकरण का समय है। आज रोगों के फैलने की तीव्रता अत्यधिक हो गयी है। अत: वैश्विक स्तर पर इस प्रकार के रोगों के लिए क्रियात्मक रणनीतियों का निर्माण करना चाहिए, ताकि व्यापक मानव समाज को रोगों की मार से बचाया जा सके।
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