Chhayavad in Hindi Essay छायावाद पर निबंध
|Read an essay on Chhayavad in Hindi for society. What you need to know about Chhayavad in Hindi. Essay on Chhayavad in Hindi will help you know all the information in Hindi. छायावाद पर निबंध।
Chhayavad in Hindi
छायावादः एक शक्ति काव्य
हिन्दी साहित्य में सन् 1918 के आस-पास एक नये प्रकार की रचनात्मकता और सृजनात्मक प्रवृत्ति उभरने लगी थी। यह साहित्यिक प्रवृत्ति अनेक मायनों में प्रमुख और विशिष्ट थी। उसी समय के एक प्रबुद्ध हिन्दी आलोचक, श्री मुकुट धर पांडेय ने लिखा है: “छायावाद के कवि वस्तुओं को असाधारण दृष्टि से देखते हैं। उनकी रचना की सम्पूर्ण विशेषताएं उनकी इस दृष्टि पर ही अवलंबित रहती हैं। वह क्षण-भर में बिजली की तरह वस्तु को स्पर्श करती हुई निकल जाती है। अस्थिरता और क्षीणता के साथ उसमें एक तरह की विचित्र उन्मादकता और अंतरंगता होती है, जिसके कारण वस्तु उसके प्रकृत रूप में नहीं किन्तु एक अन्य रूप में दीख पड़ती है। उसके इस अन्य रूप का संबंध कवि के अंतर्जगत से रहता है। यह अंतरंग दृष्टि ही छायावाद की विभिन्न प्रकाशन रीति का मूल है। इनकी कवितादेवी की आँखें सदैव उपर की ओर उठी रहती है, मर्त्यलोक से उसका बहुत कम संबंध रहता हैं। वह बुद्धि और ज्ञान की सामर्थ्य-सीमा का अतिक्रमण करके मन प्राण के अतीत लोक में ही विचरण करती रहती है।”
किन्तु छायावाद की यह विशेषता, एक मात्र विशेषता नहीं है। इसी के साथ छायावाद की अन्य दूसरी विशेषता, उसमें निहित राष्ट्रीयता और देश-प्रेम की प्रगाढ़ भावना भी है। उसमें देश के प्रति गहरी उत्कंठा व्याप्त है। छायावादी साहित्य ने उपनिवेशवादी तथा साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार का प्रबल विरोध किया। छायावादी साहित्यकारों ने अंग्रेजी सभ्यता का भारतीय समाज पर बढ़ता दबाव और उसके दूषित प्रभाव को अपने साहित्य के माध्यम से अत्यधिक गहराई और स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त और रेखांकित किया। ‘कामायनी, एक पुनर्विचार’ नामक अपनी पुस्तक में मुक्तिबोध ने ‘जयशंकर प्रसाद’ के संदर्भ में ठीक ही लिखा है कि “इस बात का श्रेय प्रसाद जी को देना ही है कि उन्होंने आधुनिक वास्तविकता के जीवन-तथ्यों को उभारा, और उन्हें इतने सशक्त रूप में प्रस्तुत किया कि वे बरबस हमारा ध्यान उन सच्चाइयों की तरफ खींच लेते हैं, जो आज हमारे समाज की दारुण वर्तमान और वास्तविकता है।” इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि छायावादी साहित्य को रचने वाला प्रत्येक कवि अपनी सामाजिक-ऐतिहासिक भूमिका को बखूबी निभाता और समझता है तथा इतिहास-बोध के पवित्र धर्म का पालन करते हुए, वह अपने ही साहित्य को एक संघर्ष का साधन बनाते हैं। साहित्य के प्रति इतनी सचेतता और कर्तव्यपरायणता अन्य किसी आन्दोलन में कम ही देखने को मिलती है। पाश्चात्य पूंजीवादी सभ्यता और संस्कृति की सटीक अवहेलना करते हुए जयशंकर प्रसाद ने एक स्थान पर लिखा है:
तुमने योग क्षेम से अधिक संचयवाला,
लोभ सिखाकर इस विचार संकट में डाला।
हम संवेदनशील हो च ले यही मिला सुख,
कष्ट समझने लगे बनाकर निज कृत्रिम सुख।
इसी के साथ,
प्रकृत शक्ति तुमने यंत्रों से सबकी छीनी
शोषण गा जीवनी बना दी झर्झर झीनी।
इसी तरह निराला का काव्य भी प्रकृति, सौंदर्य और प्रेम की पवित्र भावानात्मक छवियों के साथ-साथ भारतीय समाज की पराधीनता के गहरे दबाबपूर्ण चेतना से भरा हुआ है। साथ ही इस पराधीनता से मुक्ति की चेतना भी उन्हीं में से सबसे ज्यादा प्रगाढ़ और व्यापक है। वस्तुत: निराला ने मुक्ति को अत्यधिक व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है। उन्होंने एक स्थान पर स्वयं लिखा है –
“मनुष्य कीऋ मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्य की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है, और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना। जहाँ मुक्ति रहती है, वहाँ बंधन नहीं रहते। न मनुष्यों में न कविता में।”
सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा आदि ने भी व्यापक रूप से भारतीय समाज का चित्रण करते हुए उसमें नवीन भावनात्मक, विचारात्मक क्रांति का संचार करने का प्रयास किया है।
इस दृष्टि से छायावाद को निश्चित रूप से एक शक्ति-काव्य की संज्ञा दी जानी चाहिए। उसने भारतीय जनमानस को निरन्तर आन्दोलित करने का अद्भुत कार्य किया।
Related links
Essay on Importance of Books in Hindi
Essay on Modern Means of Entertainment in Hindi
Essay on Progressivism in Hindi
Essay on Socialism And Gandhianism in Hindi
Thank you for reading. Don’t forget to give us your feedback.
अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे।