Conditional Access System (CAS) कंडीशनल एक्सेस सिस्टम
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Conditional Access System
कैश अर्थात कंडीशनल एक्सेस सिस्टम
‘कंडीशनल एक्सेस सिस्टम’ अर्थात् कैश को व्यापक स्तरों पर प्रसारित-प्रचारित एवं लागू किए जाने का कार्य आजकल पूरे जोर-शोर के साथ किया जा रहा है। यह एक ऐसी प्रणाली है जो ‘केबल-उद्योग’ को जहाँ एक ओर नया और प्रभावशाली रूप प्रदान करेगा, वहीं इस उद्योग में पारदर्शिता लाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभायेगा। चाणक्य पत्रिका में इसके महत्व को रेखाकित करते हुए लिखा गया है- “भारतीय केबल-उद्योग को पारदर्शी बनाने के लिए केन्द्र सरकार ने कंडीशनल एक्सेस सिस्टम (कैस) 1 सितम्बर, 2003 से लागू करने की घोषणा की हैं। कंडीशनल एक्सेस सिस्टम, टेलविजन दर्शकों को अपनी पसंद का चैनल चुनने और बेकार चैनलों को छोड़ने की सुविधा देने वाला प्रक्रिया है।” दर्शकों अथवा केवल उपभोक्ताओं की सुविधा और उनकी आवश्यकता-अनावश्यकता को महत्व देने वाला यह पहला सिस्टम है। इसे आज के समय और समाज की अनिवार्यता मानना चाहिए।
आज, हान्नाँकि कैंस को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है, किन्तु इसके महत्व को लेकर किसी भी प्रकार का संशय अथवा भ्रांति अव शेप नहीं रहा है। किन्तु, फिर भी एक लम्बे समय तक इस प्रकार की भ्रांति का दौर बना रहा था। चाणक्य पत्रिका ने इसका उल्लेख करते हुए एक स्थान पर लिखा है-“इसे लेकर एक ओर सरकार और चैनल प्रसारकों (ब्राड मास्टरों) के बीच द्वंद्व चल रहा था, वहीं दूसरी ओर, उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई थी। कारण था कि केंद्र सरकार अलग-अलग पे-चैनलों की दरें घोषित करने में असफल रही है। इस विवाद को समाप्त करने के लिए केन्द्र सराकर इस संबंध में अब दोहरी प्रणाली लागू करने पर विचार कर रही है। अर्थात् जो लोग सेट टॉप बाक्स नहीं लगायेंगे वे भी पे: चैनल पूर्ववत देखते रहेंगे।”
इस भ्रम की स्थिति से उबरने के लिए सरकार की ओर से काफी स्वस्थ प्रयास किये गए। वस्तुत: जिस सिस्टम को कंडीशनल एक्सेस सिस्टम के नाम से जाना जाता है, वह भूमण्डलीकरण अथवा उदारवादी युग की एक महान उपलब्धि ही कही जानी चाहिए। इस प्रणाली का एक अति-महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इस सिस्टम अथवा प्रणाली के माध्यम से एक टी-वी दर्शक को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हो जाती है। वह अपनी पसंद के और नापसंद के कार्यक्रमों अथवा चैनलों का चुनाव सहजता से कर पाता है।
इसी के साथ इस प्रणाली का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि इसने केबल आपरेटरों और प्रसारणकताओं की मनमानी को नियंत्रित करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को सुनिश्चत किया है। चाणक्य पत्रिका ने इसके महत्व को इस प्रकार रेखांकित किया है: “यह एक और टी-वी दर्शकों को पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करती है तो दूसरी ओर केबल आपरटरो एव प्रसरनकर्ताओ की मनमानी से मुक्ति दिलाती है। इस व्यवस्था के द्वारा टी-वी दर्शक पहले के मुकाबले बहुत कम फीस चुकाकर अपनी पसंद के चैनल देख पाएँगें। मुफ्त चैनलों की संख्या और इनकी दर प्रसारणकर्ताओं एवं केबल आपरेटरों ने सराकर के साथ मिलकर तय की है। इसमें दर्शकों को यह सुविधा होगी कि किसी खास कंपनी के सारे पे-चैनलों को लेने की बाध्यता इनके ऊपर नहीं होगी।”
इस सिस्टम की रूपरेखा स्पष्ट करना आवश्यक है। वस्तुत: यह सिस्टम एक सेट टॉप पर आधारित है। प्रत्येक टी-वी उपभोक्ता को इसकी व्यवस्था स्वयं करनी होती है। इसकी कीमत करीब 3000 हजार रूपये तय की गयी है इस समय बाजार में दो प्रकार के सेट टॉप उपलब्ध हैं, एक एनालॉग सेट टाप और दूसरा डिजिटल सेट टॉप। डिजिटल सेट टॉप । की क्षमता करीब 300 चैनलों को प्रसारित करने की है। एनालॉग मात्र 120 चैनलों को प्रसारित करने की क्षमता रखता है।
अन्त में यहीं कहा जा सकता है कि इस सिस्टम को अनिवार्यतः लागू होना चाहिए, ताकि दर्शकों को अपनी रूचि के अनुसार कार्यक्रमों को देखने की स्वतंत्रता प्राप्त हो सके और संचार की विश्वसनीयता भी स्पष्ट हो सके।
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