Dhyan Chand Essay in Hindi
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Dhyan Chand Essay in Hindi
भूमिका
हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है क्योंकि हॉकी के खेल ने सन् 1928-1956 तक के स्वर्ण काल में इसने भारत को छह ओलम्पिक स्वर्ण पदक दिलायें हैं। विश्व में भारत का सिर ऊँचा किया था। इस विजय में श्री ध्यानचंद जी ने मुख्य भूमिका निभाई इस कारण इन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है।
इतिहास
भारत में यह खेल अंग्रेज शासन-काल में प्रचलित हुआ। फ़ौजियों और पुलिस अधिकारियों ने इसमें विशेष रुचि ली। अब तो इस खेल का इतना अधिक विस्तार हो चुका है कि विश्व के सारे देश इसे खेलते हैं। सूबेदार मेजर बाला तिवारी ने भारत में हॉकी के खेल की नींव रखी, तो ध्यानचंद तथा के.डी.सिंह बाबू नामक दो दिग्गज खिलाड़ियों ने हॉकी में भारत की सर्वश्रेष्ठता का झंडा फहराया।
जन्म एवं परिवार
ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद के राजपूत परिवार में हुआ था। बाद में अपने फ़ौजी पिता, भाई रूप सिंह के साथ वे झाँसी नगर में आ बसे।
17 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद फौज में आए। वे ब्राह्मण रेजीमेंट में सिपाही के रूप में तैनात हुए। अपनी ड्यूटी के बाद ये चाँदनी रात का इंतजार करते थे ताकि उसकी रोशनी में ये मैदान को देख सकें। यहाँ सूबेदार मेजर बाला तिवारी ने उन्हें खेलते देखा और उनकी प्रतिभा को पहचाना। फिर तो इनके लिए अवसर और सफलता के द्वार खुल गए। ध्यानचंद श्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में चमक उठे।
हॉकी का जादूगर
सन् 1926 में उन्हें सेना की टीम में शामिल कर न्यूजीलैंड के दौरे पर भेजा गया। भारतीय टोली के सदस्य के रूप में उन्होंने एमस्टरडम में सम्पन्न प्रतियोगिता में अपने हॉकी के जादू दिखाए। लोग ऐसा भी शक जताने लगे कि उनकी हॉकी में चुम्बक लगी है जिसके कारण गेंद उनकी हॉकी से ही चिपकी रहती है और वे गोल पर गोल दाग देते हैं। किन्तु छड़ी बदलने पर भी हॉकी के जादूगर के जादू में कोई कमी न आई । ध्यानचंद की खेल-ऊँचाइयों को देखकर उन्हें लॉस एंजिल्स और बर्लिन ओलम्पिक प्रतियोगिता में टीम का कप्तान बनाया गया। ध्यानचंद की खेल प्रतिभा को देखकर हिटलर ने उनकी टीम में आने के लिए बड़े पद की पेशकश भी की। परन्तु उन्होंने इन्कार कर दिया। सन् 1934 में दिल्ली में पहली बार होने वाले पश्चिमी एशियाई देशों के खेल में भी वे राष्ट्रीय हॉकी टीम के नायक रहे। उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय कैरियर में 400 से अधिक गोल किए। सन् 1948 में इन्होंने अन्तिम हॉकी मैच खेला।
सम्मान
आजादी के बाद स्वाधीन भारत की सरकार ने उन्हें यथोचित मान-सम्मान दिया। सन् 1956 में आपको “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया।
उपसंहार
3 दिसंबर 1979 ई० को 74 वर्ष की आयु में ये संसार से विदा ले गये। महान खेल-पुरुष दादा ध्यानचंद की स्मृति में इनकी जन्म तिथि को हर वर्ष “खेल-दिवस” के रूप में मनाते हैं। निरन्तर कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में अग्रणी रहा। जिसमें ध्यानचंद जी के विशेष योगदान के लिए हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे।
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