Biography of Dhyan Chand in Hindi ध्यानचंद का जीवन परिचय

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Bio of Dhyan Chand in Hindi Language

हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है और ध्यानचंद उसकी पहचान। वे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में हॉकी के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। ओलंपिक खेलों में भारत को तीन स्वर्ण पदक दिलाकर उन्होंने न केवल अपना, बल्कि भारत का नाम भी खेलों की दुनिया में अमर कर दिया। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग में हुआ। उनके पिता फौज में सूबेदार और हॉकी खिलाड़ी थे। जब ध्यानचंद 14 साल के थे, तब एक दिन वे अपने पिता के साथ हॉकी का मैच देखने गए। खेल में एक टीम 2 गोल से हार रही थी। ध्यानचंद ने अपने पिता से उस टीम की ओर से खेलने की जिद्द की। जब उन्हें इसकी इजाजत मिल गई, तब उन्होंने हारती हुई टीम की ओर से 4 गोल किए। 16 साल की उम्र में उन्हें अपने पिता की तरह फौज में नौकरी दे दी गई। एक बार जब उनकी टीम 2 गोल से हार रही थी, तब मैच के अंतिम चार मिनट में उन्होंने 3 गोल कर अपनी टीम को जिता दिया। यह झेलम में पंजाब इंफेंट्री का फाइनल मैच था। इस मैच के बाद ध्यानचंद के चर्चे होने लगे।

1926 में उन्हें न्यूजीलैंड दौरे पर जा रही हॉकी टीम के लिए चुना गया। पूरी प्रतियोगिता में भारत ने 192 गोल किए, जिनमें से 100 ध्यानचंद के नाम रहे। 1928 में उन्होंने एम्सटर्डम में हुए ओलंपिक खेलों में भाग लिया और नीदरलैंड के खिलाफ फाइनल मैच में 3 में से 2 गोल किए। मैच भारत के नाम रहा और उसे स्वर्ण पदक मिला। 4 साल बाद लॉस एंजिल्स, ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने अमेरिकी टीम को हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। यहाँ भी 23 में से 8 गोल ध्यानचंद के नाम रहे। टीम की यह जीत 2003 तक एक रिकॉर्ड जीत रही। जीत का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। इस लिहाज़ से 1932 के बर्लिन ओलंपिक्स का आखिरी मैच बहुत दिलचस्प रहा। भारतीय टीम शानदार खेल दिखा फाइनल तक पहुँच चुकी थी। यहाँ भारत का मुकाबला जर्मनी से होना था। मध्यांतर तक भारतीय टीम केवल 1 गोल कर पाई थी। जीत की उम्मीद टूटने लगी थी, लेकिन मध्यांतर के बाद ध्यानचंद ने अपने जूते उतारे और बाकी का मैच नंगे पैर खेलना तय किया। भारतीय टीम एक बार फिर 8-1 से जीत गई और स्वर्ण पदक एक बार फिर भारत की झोली में आया। 1956 में भारत सरकार ने ध्यानचंद को पद्मभूषण से नवाजा | उनके आखिरी दिन तंगहाली में अस्पताल में लिवर के कैंसर से लड़ते हुए बीते। 3 दिसंबर, 1979 को उनका निधन हो गया। हालाँकि उनकी मृत्यु के बाद देश का ध्यान उनकी ओर गया। भारत सरकार ने उनकी याद में एक डाक टिकट जारी किया और दिल्ली में उनके नाम से एक स्टेडियम बनाया गया। 29 अगस्त को उनके जन्मदिन पर हम राष्ट्रीय खेल दिवस मनाते हैं।

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