What is Diabetes in Hindi मधुमेह क्या है?
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Diabetes in Hindi
Essay on Diabetes in Hindi 700 Words
आधुनिक जगत में भी लोगों के मस्तिष्क में डायबिटीज को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। इस बीमारी को लेकर अधिकांश लोगों का मत अभी भी 80 दशक पुराना है।
दिल्ली में डायबिटीज के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि अब वे डायबिटीज के बारे में नयी जानकारी देंगे। यह निश्चित रूप से एक अच्छी खबर है। अन्यथा डायबिटीज का नाम आते ही लोग कहने लगते हैं कि एक बार अगर डायबिटीज हो जाए तो, वह कभी ठीक नहीं होती। जबकि सच यह है कि इन दिनों वैज्ञानिकों ने डायबिटीज को ठीक करने के लिए मुहिम छेड़ रखी है। बीटा सैल ट्रांसप्लांट, पैन्क्रियाज ट्रांसप्लांट उस जीन की खोज है जो डायबिटीज के लिए जिम्मेदार हैं । यह रोग न हो सके, इसके लिए टीका विकसित करना यानी अपने ही पैंक्रियाज में पाये जाने वाले बीटा सैल्स का रिजनरेशन आदि न जाने कितनी प्रक्रियाएं हैं, जिन पर वैज्ञानिक रात-दिन लगे हैं। मगर किसी लेख या किसी डॉक्टरी सलाह में प्राय: इन जानकारियों का अभाव रहता है।
यह तो ठीक है कि डायबिटीज, खासतौर से प्रथम श्रेणी के रोगियों के लिए इंसुलिन संजीवनी की तरह रहा है, लेकिन यह सच है कि 80 वर्षों में यह भी मान लिया गया कि बस इंसुलिन है तो इस रोग पर अधिक ध्यान देने की जरूरत ही जैसे नहीं है । एक तरफ एलोपैथी का इस रोग के प्रति यह रवैया है, तो दूसरी ओर हर दिन अखबारों में डायबिटीज को ठीक करने के ऐसे विज्ञापनों की भरमार देख सकते हैं, जो मात्र मेथी, करेला, जामुन, विजयसार तथा अन्य जड़ी-बूटियों के मेल से बनायी गयी दवा से इस रोग को ठीक करने का दावा करते. हैं। इन दवाओं की गुणवत्ता की क्या पहचान है, यह किसी को पता नहीं है।
एक बात और भी है कि प्रथम श्रेणी डायबिटीज और द्वितीय श्रेणी डायबिटीज के इलाज में जमीन-आसमान का अंतर है। प्रथम श्रेणी डायबिटीज में रोगी की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को उसका अपना ही इम्यून सिस्टम मार डालता है। इसलिए रोगियों को इंसुलिन लेना जरूरी होता है। जबकि द्वितीय श्रेणी डायबिटीज में इंसुलिन बनता तो है, मगर वह सही स्थान पर नहीं पहुँचता। अथवा इतना कम बनता है कि शरीर की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता। इसलिए रोगी को गोलियों और परहेज से ही ठीक किया जाता है। वैज्ञानिकों ने ‘अल्जीमर’ रोग को तृतीय श्रेणी डायबीटीज कहा है। बताया जाता है कि शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण ही अल्जीमर रोग होता है।
आखिर इंसुलिन की जरूरत शरीर को क्यों है? जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर कोशिकाओं से बना है। इन कोशिकाओं को जीवित रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। हमारे शरीर को भोजन से ऊर्जा मिलती है । इस ऊर्जा को कोशिकाओं तक पहुंचाने का काम इंसुलिन करता है। दवा बनाने वाली कम्पनियों ने इंसुलिन के क्षेत्र में तरह-तरह से विकास किये हैं। पहले तो इंसुलिन सूअर और गाय से प्राप्त किया जाता था, अब तो डीएनए से बने इंसुलिन के साथ लांग एक्टिंग और फास्ट एक्टिंग इंसुलिन भी उपलब्ध हैं। इसे लेने के लिए सुई की जगह पेन उपलब्ध हैं। ‘एक्सब्यूरा’ नामक इनहेलर इंसुलिन आने वाला है, जिसके बाद से सुई या पेन से इंसुलिन लेने की जरूरत खत्म हो जायेगी। किरण शा मजूमदार की कम्पनी ओरल इंसुलिन विकसित कर रही है, जिसे गोली की तरह खाया जा सकेगा। लेकिन इससे लाखों रोगियों की जरूरत को पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए स्टेम कोशिका तकनीक से इस कमी को दूर करने की बात की जा रही है। वैज्ञानिक रात-दिन इस खोज में जुटे हैं कि इन रोगियों को इन दवाओं की जरूरत ही न रहे। वैज्ञानिकों ने प्रतिरोधक प्रणाली में अवरोध पैदा करने वाली कोशिकाओं का भी पता लगा लिया है। इन्हें नाम दिया गया है – टी सैल्स। यदि इन टी सैल्स को ठीक किया जाए और शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली को इस बात के लिए तैयार कर दिया जाए, तो यह समस्या अपने आप दूर हो सकती है। अमेरिका के डायबिटीज सेंटर या जो सलीन डायबिटीज सेंटर के अलावा दुनियाभर में इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। भारत में भी कई अस्पतालों में काम हो रहा है।
वैज्ञानिकों के मत के आधार पर देखें, तो पता चलता है कि वह दिन दूर नहीं जब डायबिटीज फ्लू की तरह हुआ करेगी और फ्लू की तरह ठीक भी हो जाया करेगी। आज की वैज्ञानिक प्रगति को देखते हुए इस बात में संदेह भी नहीं किया जा सकता।