Eid Essay in Hindi ईद के त्यौहार पर निबंध
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Eid Essay in Hindi 300 Words
कहते हैं कि सबसे ज्यादा त्योहार अगर किसी देश में मनाए जाते हैं, तो वह भारत है। हम न केवल बहुत-से त्योहार मनाते हैं, बल्कि बेसब्री से उनका इंतजार भी करते हैं। ऐसा ही एक त्योहार है, ईद। वैसे बच्चों को तो इसका कुछ ज्यादा ही इंतजार रहता है। इस दिन उन्हें ईदी जो मिलती है। मेले में दोस्तों के साथ घूमना, अपनी पसंद की चीजें खरीदना और मीठी-मीठी खूब सारी सेवइयाँ खाना भला किसे अच्छा नहीं लगेगा! इस दिन बच्चे बड़ों को सलाम करते हैं, ईद मुबारक कहते हैं और बदले में बड़े उन्हें कुछ पैसे देते हैं, जिसे ईदी कहते हैं।
इसलिए बच्चे तो इस मुबारक मौके का रमजान का महीना शुरू होने से पहले ही इंतजार करने लगते हैं। साल में दो बार ईद मनाई जाती है। इनमें से पहली ईद-उल-फितर है। रमजान के महीने में 30 दिन तक रोजे रखे जाते हैं। ईद के साथ यह महीना खत्म होता है और 30 दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाया जाता है। इस दिन अल्लाह का शुक्रिया अदा किया जाता है कि उन्होंने महीने-भर रोजा या उपवास रखने की शक्ति दी। सब लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को ईद मुबारक कहकर तोहफे देते हैं। इस दिन सुबह मस्जिद जाकर प्रार्थना की जाती है, लेकिन उससे पहले गरीबों को कुछ दान देना ज़रूरी होता है, जिसे जकात कहा जाता है।
ईद-उल-फितर की तरह ही ईद-उल-जुहा भी खूब खुशी और खास प्रार्थनाओं का त्योहार है। इसे कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इसे बकरीद भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस दिन भी सब एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद और तोहफे देते हैं।
Eid Essay in Hindi 500 Words
ईद का त्योहार मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार है । यह त्यौहार हमारे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है । इसे सभी धर्मों के लोग मिल-जुल कर मनाते हैं । हर वर्ष में दो ईदें मनाई जाती हैं । इन में एक को ‘ईद-उल-फितर’ और दूसरी को ‘ईद-उल-जुहा’ कहते हैं । र्हद-उल फितर इस्लामी महींनों में पहली तारीख को मनाई जाती है । इस ईद को ‘मीठी ईद’ भी कहते है ।
इस्लाम धर्म में रमज़ान महीने का विशेष महत्व है । रमजान का चाँद देखकर रोज़े शुरू किये जाते हैं । दिन चढ़ने से पहले भाव फ़ज्र (Fajar) के अज़ान (नमाज़) से पहले तक खाना खाया जाता है, जिसको सहरी कहते हैं । फिर दिन भर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया जाता । शाम ढलते समय मग्रिब ( Magrib ) की अज़ान (नमाज़) सुनते ही रोज़े खोले जाते हैं जिसको इफ़्तार ( Iftar ) कहते हैं । ये रोज़े करीब 29-30 दिन तक चलते हैं । इसी महीने में इस्लाम धर्म के अनुसार
पैगम्बर मुहम्मद साहिब को कुरान शरीफ़ प्राप्त हुआ था । आखिरी रोज़े की शाम को शाही इमाम के द्वारा ईद के चाँद को देखकर ईद का ऐलान किया जाता है । उस दिन को अरफ़ा कहते हैं ।
ईद की सुबह लोग नहा-धोकर नये-नये कपड़े पहनकर ईदगाह में ईद नमाज़ अदा करने जाते है । ईद को नमाज़ बड़े उत्साह के साथ पढ़ी जाती है । लोग खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं और हाथ उठाकर दुआएं माँगते है । इसके बाद लोग एक-दूसरे के गले मिलकर ‘ईद मुबारक’ कहते हैं । ईदगाह के बहार मेला लगा होता है । बाजारों में बडी रौनक होती है । दुकाने खूब सजी होती हैं । बच्चे-बड़े सब मेले से खरीदारी करते, झूले झूलते और लुतफ उठाते है । शाम को सब मस्ती करते हुए घरों को लौट जाते हैं।
बच्चे को ईद के दिन घर के बड़े बुजुर्ग ईदी देते हैं इसलिए बच्चों में विशेष उत्साह होता है । इस दिन हर घर में स्वादिष्ट पकवान और सेवइयाँ बनती हैं । इन्हें सब स्वयं खाते और आपस में भी बाँटते हैं ।
रोजे के दिनों में बुरी आदतों जैसे सिगरेट पीना, तम्बाकू खाना आदि का त्याग किया जता है । निन्दा, चुगली और झूठ बोलने से परहेज किया जाता है ।
ईद उल फ़ितर के बद दूसरी ईद, ईद उल जुहा अर्थात बकरीद दो महीने दस दिन बाद आती है । यह ईद हज़रत इब्राहिम अल्लाह इस्लाम ( A.S ) और इनके बेटे की याद में मनाई जाती है । इस ईद पर भी ईद नमाज़ अदा की जाती है । इसी दिन हज पूरा हुआ माना जाता है । इसलिए इस दिन कुर्बानी दी जाती है । कुर्बानी का हिस्सा आपस में बाँटकर खाया जाता है । दोनों ईंदों मीठी ईद और बकरीद के दिनों में इस्लाम घर्मं के अंगों कलमा, नमाज़, ज़कात, रोजा तथा हज करना इत्यादि का विशेष महत्व माना जाता है । ऐसी भी मान्यता है कि इन दिनों में की गई नेकियों का दस गुणा फल प्राप्त होता है । ईद-ए-मिलाद का भी इस्लाम धर्म में खास स्थान है ।
Eid Essay in Hindi 600 Words
ईद रूपरेखा : ईद-उल-फ़ितर और ईदुज्जुहा का संक्षिप्त परिचय, रमज़ान और ईद, ईद और भाईचारा, मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का दृश्य, उपसंहार।
ईद-उल-फ़ितर मुसलमानों का महत्त्वपूर्ण त्योहार है। सभी लोग महीनों से इसकी प्रतीक्षा करते हैं। गरीब-अमीर सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस त्योहार पर नए कपड़े बनवाते हैं और नए कपड़े पहनकर ही ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिद में जाते हैं। घर-घर में स्वादिष्ट मीठी सिवइयाँ बनती हैं। इन्हें वे स्वयं भी खाते हैं और इष्ट मित्रों और संबंधियों को भी खिलाते हैं।
ईद-उल-फ़ितर का त्योहार रमज़ान के महीने के बाद आता है। उनतीसवें रमज़ान से ही चाँद कब होगा’, ‘चाँद कब होगा’ की आवाज़े चारों ओर से सुनाई देने लगती हैं। जिस संध्या को शुक्ल पक्ष का पहला चाँद दिखाई पड़ता है, उसके अगले दिन ‘ईद-उल-फ़ितर’ का त्योहार मनाया जाता है। कभी-कभी चंद्रोदय के समय पश्चिमी आकाश में बादल छा जाने के कारण चाँद दिखाई नहीं देता। परंतु तभी प्रायः ढोल पर डंके की चोट पड़ने की आवाज़ सुनाई देती है और बताया जाता है कि मस्जिद के इमाम से खबर आ गई है कि चाँद दिखाई दे गया। अतः रमज़ान का महीना समाप्त हुआ, कल ईद है। सभी लोगों के चेहरे पर एक नई चमक आ जाती है।
कहते हैं कि रमज़ान के इस पवित्र महीने में पैगंबर मुहम्मद साहब को कुरान का इलहाम हुआ था। रोज़े के दिनों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाने-पीने की इजाज़त नहीं है। सूर्यास्त के बाद ही कुछ खा-पीकर रोज़ा खोला जाता है। | ईद-उल-फ़ितर के दो महीने दस दिन के बाद ईदुज्जुह. का त्योहार मनाया जाता है। यह कुरबानी का पर्व है। माना जाता है कि इस दिन इब्राहिम ने अपने बेटे को अल्लाह के नाम पर कुरबान करने का फैसला किया था। जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की गरदन पर छुरी रखी, अल्लाह ने बेटे की गरदन के स्थान पर दुंबा (एक प्रकार का बकरा) रख दिया। कुरबानी दुबे की हुई। अब बकरे की कुरबानी की प्रथा है तभी से ईदुज्जुहा का पर्व मनाया जाने लगा।
ईद भाईचारे का त्योहार है। ईद की नमाज़ के बाद ईद-मिलन कार्यक्रम ईदगाह से ही आरंभ हो जाता है। लोग आपस में गले मिलते हैं और एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं। यह क्रम दिन भर चलता रहता है। बिना किसी भेद-भाव के लोग प्रेम से एक दूसरे से गले मिलते हैं और अपने घर आने वालों को सिवइयाँ खिलाते हैं। ईद और होली जैसे पर्व हमारे देश में रहने वाले विभिन्न धर्मावलंबियों के लिए एकता और मिलन के अवसर प्रदान करते हैं। ईद के दिन सभी एक दूसरे से प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं। कहीं-कहीं सार्वजनिक रूप से भी ईद-मिलन का आयोजन किया जाता है।
ईदगाहों पर सामूहिक नमाज़ पढ़ी जाती है। यह दृश्य बड़ा मनोहारी होता है। दूर-दूर तक सफ़द टोपी पहने हुए पंक्तिबद्ध सिर खुदा की इबादत में झुक जाते हैं। नमाज़ संपन्न होने पर सब एक दूसरे से गले मिलते हैं और शुभकामनाएँ देते-लेते हैं।
ईद के दिन ईदगाह के आस-पास मेले भी लगते हैं। बच्चों के लिए वे विशेष रूप से आकर्षण के केंद्र होते हैं। इन मेलों में दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें लगाते हैं जिनमें तरह-तरह की आकर्षक चीज़ और घर-गृहस्थी का सामान मिलता है। बच्चों के साथ-साथ बड़े भी मेलों का आनंद उठाते हैं।
सभी भारतीय पर्व चाहे ईद हो या होली, बैसाखी हो या क्रिसमस, पूरे समाज के लिए हर्षोल्लास के अवसर होते हैं, अपने जीवन में इनसे एक नई चेतना, एक नई स्फूर्ति आ जाती है। इन अवसरों पर लोग अपने जीवन की कठिनाइयों और भागदौड़ से मुक्त होकर हर्ष और उल्लास में डूब जाते हैं। ईद भी खुशी का ऐसा ही त्योहार है। इसमें महीने भर भूख-प्यास को सह लेने की खुशी, कुरान के धरती पर प्रकट होने की खुशी और खुशी में साझेदारी की खुशी स्वाभाविक रूप से होती है।
Essay on Eid in Hindi
ईद इस्लाम धर्म का पवित्र पर्व है। ईद एकता, प्रेम और भाईचारे की भावना का प्रतीक है। मुस्लिम समुदाय इस त्योहार को सबसे अधिक महत्व देते हैं। मुस्लिम भाई इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इंद का त्योहार चन्द्रमा के उदय होने पर ही निर्भर करता है। यह त्योहार प्रसन्नता और पारस्परिक मधुर मिलन के भाव को प्रकट करता है। इस दिन समस्त मुस्लिम समुदाय हर्पित और प्रसन्नचित रहता है।
‘ईद-उल-फितर’ का संबंध इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘कुरान’ की उत्पत्ति से हैं। इस्लाम धर्म को मानने वाले ईद के पावन पर्व पर कुरान शरीफ की वर्षगांठ मनाते हैं। इस्लाम धर्म का प्रवर्तक मोहम्मद साहब को माना जाता है। मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई। में अरब देश में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने से इनका पालन-पोषण इनके चाचा अबू तालिब ने किया था। इनकी बेगम का नाम बेगम खदीबा था। विवाह के बाद 40 वर्ष की आयु में इन्होंने लौकिक आकर्षणों का त्याग करके ‘बृबत’ की प्राप्ति की। मोहम्मद साहब ने अपने महान कार्यों द्वारा मुस्लिम समुदाय का पथ-प्रदर्शन किया। ‘कुरान’ इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है।
ईद का उत्सव मनाने से पहले सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय 40 दिनों की साधना करता है। इन 40 दिनों की साधना को रमजान कहा जाता है। इन दिनों में सभी मुस्लिम 24 घंटों में पाँच बार नमाज पढ़ते हैं और दिन में एक बार भोजन करते हैं। यह समय अधिकांशतः रोजे या उपवास में ही बीतता है। लोग नियमपूर्वक मस्जिद में जाकर नमाज अदा करते हैं। 40 दिन की कठोर साधना के बाद ईद का पवित्र त्योहार आता है।
ईद का त्योहार वर्ष में दो बार मनाया जाता है एक ‘ईद-उल-फितर’ जिसे ‘मीठी ईद’ भी कहते हैं और एक ‘ईद-उल-जुहा’ जिसे ‘बकरीद’ भी कहा जाता है। ईद का त्योहार चाँद के दिखाई देने पर मनाया जाता है। ईद का यह चाँद विशेष महीने में विशेष दिन ही दिखाई देता है। जब ईद का चाँद दिखाई दे जाता है, उसके अगले ही दिन ईद का त्योहार मनाया जाता है। ‘ईद-उल-फितर’ का दिन, शाकाहारी ढंग से मनाया जाता है। इस दिन सिवईयाँ, मिठाईयाँ आदि खिलाने की परम्परा है। लेकिन ‘ईद-उल-जुहा’ को माँसाहारी ढंग से मनाया जाता है। इस दिन बकरे को हलाल करके इसे शिरनी या प्रसाद के रूप में बांट कर खिलाने की परम्परा है।
ईद खुशियों का त्योहार है। इस दिन देश के सभी कार्यालय, स्कूल आदि बंद होते हैं। ईद के दिन सभी मुसलमान भाई सुबह-सुबह तैयार होकर मस्जिद में जाते हैं और नमाज अदा करते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को ‘ईद-मुबारक’ कहते हैं । इस शुभ अवसर पर बड़े, बच्चे को ‘ईदी’ देते हैं। ईद के दिन दिये जाने वाले जेबखर्च को ‘ईदी’ कहा जाता है। घर का हर बड़ा सदस्य छोटे सदस्यों को ईदी देता है। ईद के दिन घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते। हैं। घर में आए हुए मेहमानों का आदर-सत्कार किया जाता हैं। इस प्रकार समस्त मुस्लिम समुदाय हर्षोल्लास के साथ इस त्योहार को मनाता है।
जिस प्रकार हिंदू समाज में दीपावली का विशेष महत्व है, उसी प्रकार मुस्लिम समाज में ईद त्योहार का विशेष महत्व है। ईद का त्योहार विशेष सामाजिक महत्व का है। समग्र मुस्लिम समाज में यह त्योहार नवजीवन का संचार करता है । इस त्योहार से इस्लामिक जीवन-पद्धति एवं संस्कृति का अद्भुत परिचय मिलता है। यह त्योहार हमें प्रसन्नता, समानता, भाई-चारे व निस्वार्थ मेल-मिलाप का संदेश देता है। इस त्योहार से लोगों में सद्भावना पैदा होती है। लोग पारम्परिक वैमनस्य को भूलकर प्यार में एक-दूमर के गले मिलते हैं। मनुष्यों के आपस में भ्रातृभाव और निर्मलता का प्रचार होता है। इस प्रकार ईद का पर्व सुख और शांति का संदेश देता है।
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