Essay on Beggary in Hindi
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Essay on Beggary in Hindi 200 Words
भिखारी समस्या – विचार-बिंदु – • भारत में भिखारी-समस्या • भिखारी बनने के कारण • मुक्ति के उपाय
भिखारी-समस्या मानवता पर अभिशाप है। यह समाज का कोढ़ है। दुर्भाग्य से भारत में लाखों भिखारी हैं। कुछ बच्चे जन्मजात भिखारी होते हैं। कुछ अपहरण करके लाए गए होते हैं। उन्हें भी बचपन से इस धंधे में डाल दिया जाता है। कुछ अपराधियों के गैंग भिखारी-समस्या को बढ़ाने में लगे हुए हैं। वे बच्चों का अपहरण करके, उनके अगभंग करके उनसे भीख मँगवाते हैं। कुछ भिखारी गरीबी और भुखमरी के कारण हाथ पसारना सीखते हैं। भारत जैसे गरीब और सघन जनसंख्या वाले देश में इसका पूर्ण समाधान करना कठिन है। जिन भिखारियों ने भीख को अपना व्यवसाय बना रखा है, उन्हें सख्ती करके रोका जा सकता है। जो गैंग भीख को व्यवसाय की तरह चलाते हैं, उन्हें कठोरता से कुचला जा सकता है।
जन्मजात तथा जबरदस्ती भिखारी बने लोगों का मामला कुछ पेचीदा है। ये निर्लज्ज और ढीठ हो चुके होते हैं। इन पर कोई सीख या सख्ती काम नहीं करती। यदि इन्हें भिक्षा छोड़ने के लिए तैयार भी कर लिया जाए तो इनके योग्य कोई स्थायी काम उपलब्ध नहीं है। अतः भिखारी समस्या को सुलझाने से पहले उनके लिए आजीविका के साधन हूँढ़ना आवश्यक है।
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Essay on Beggary in Hindi 500 Words
‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ की भावना भारतीय संस्कति का मूल रही है। इसी परोपकार तथा दान की भावना ने समाज के कुछ आलसी वर्गों को आत्मसम्मानहीन बना दिया है। वे दूसरों की उत्कृष्ट भावनाओं का लाभ उठाते हुए भिक्षा को अपनी आजीविका बनाए हुए हैं। उनके आलस्य ने न केवल उनके जीवन को अभिशापग्रस्त बना दिया है। अपितु यह राष्ट्र के लिए भी एक कलंक बन गया है।
हम देश के किसी भी भाग में चले जाएँ, भिखारियों की तादाद में उत्तरोत्तर वृधि ही दिखाई पड़ती है। पर्यटन स्थलों, धार्मिक स्थलों तथा दर्शनीय स्थानों पर ये भारी संख्या में मौजूद होते हैं। इनमें से अधिकांश का समस्त परिवार भिक्षावृत्ति से जुड़ा है तथा वे निरंतर अनेक वर्षों से सड़कों, चौराहों, गलियों, मंदिरों तथा मसजिदों आदि स्थानों पर भीख माँगकर अपना जीवन चलाते चले जा रहे हैं।
भारत जैसे प्रगतिशील देश के लिए भिक्षावृत्ति एक कुप्रवृत्ति है जो राष्ट्रीय विकास में बाधक है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आत्माभिमानहीन इन भिक्षुकों की मुख्य समस्या काम न करने की है। समय के साथ-साथ यह उनका व्यवसाय बन गया है। वे इसे और प्रभावशाली बनाने के लिए अनेक घृणित रीतियाँ अपनाते हैं। जन सामान्य में करुणा की भावना उत्पन्न करने हेतु अंग भंग कर लेते हैं और बालकों से भी भीख मँगवाते हैं। इस प्रकार की कुत्सित भावना समस्त राष्ट्रीय चिंतन के क्षेत्र में बाधक सिद्ध होती है।
भिक्षावृत्ति का मूल कारण देश की आर्थिक व सामाजिक स्थितियाँ भी हैं। कुछ लोग असहाय होने के कारण भीख माँगने लगते हैं तो कुछ धर्म की आड़ में भगवा वस्त्र धारण कर यह कार्य करते हैं। अच्छे हृष्ट-पुष्ट नवयुवक भी काम न कर भिक्षा को जीविका बना लेते हैं। इस वृत्ति पर किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इनका भीख माँगना मजबूरी नहीं अपितु आमदनी का सरल माध्यम है। इस प्रवृत्ति ने सशक्त व्यवसाय का रूप भी धारण कर लिया है। अधिकांश भिक्षुकों को अपने इस काम के प्रति कोई ग्लानि या घृणा का भाव नहीं है।
भिक्षावृत्ति की समस्या बहुआयामी है। बड़े शहरों में इस वृत्ति में लीन लोगों ने अपने संगठन बना लिए हैं। भिक्षा की आड़ में उनमें से काफ़ी लोग अन्य अनैतिक तथा असामाजिक गतिविधियों में भी लीन हैं। ऐसी अनेक घटनाएँ घटित हो चुकी हैं जिनमें चोरी तथा तस्करी के घृणित कामों में भिखारियों का हाथ था।
भिक्षावृत्ति की बढ़ती तेज़ी को देखकर कहा जा सकता है कि यह कुप्रवृत्ति समाज की उन्नति के मार्ग में बाधक है। कामचोरी तथा अकर्मण्यता की भावना को पोषित करनेवाली इस प्रवृत्ति को रोकने हेतु भिक्षावृत्ति का सरकारी तौर पर निषेध किया जाना आवश्यक है। रुग्ण तथा विकलांग लोगों को सामाजिक संरक्षण प्रदान कर व्यवसायों में लगा देना चाहिए। इन लोगों को आश्रय देकर ही कल्याणकारी उन्नतिशील देश की कल्पना की जा सकती है। दूसरी ओर, शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ लोगों के भीख माँगने को रोका जाना भी अत्यंत आवश्यक है।
भिक्षकों की अधिकाधिक संख्या से देश की आर्थिक स्थिति को तो नुकसान पहुँचता ही है, साथ ही स्वाभिमानहीन ये लोग विदेशियों के सम्मुख भी देश का मस्तक नीचा करते हैं। गुलामी के असंख्य वर्षों ने देशवासियों के स्वाभिमान को काफ़ी ठेस पहँचाई थी। भिक्षुकों की बढ़ती जनसंख्या तथा निस्संकोच हाथ फैलाने की प्रवृत्ति से देश की लत को आज भी बहुत नुकसान हो रहा है।
भिक्षावृत्ति के उन्मूलन के लिए भी देशव्यापी योजनाओं का निर्माण होना आवश्यक है। परोपकारवश इन भिक्षुकों की आजीविका चलानेवाले भारतीय समाज जब तक इन्हें पोषित करता रहेगा तब तक यह भिक्षुक वर्ग यूँ ही विकसित व पुष्ट होता रहेगा। समाज में जागरण लाने की भी आवश्यकता है कि भीख देकर अपना अगला जन्म सुधारने के लिए उनका यह जन्म बिगाडना कहाँ का धर्म है। परोपकारी वर्ग को चाहिए कि वे इस भिक्षुक समाज को नैतिक शिक्षा दे, उनकी शिक्षा व रोजगार का प्रबंध करें ताकि वे सभ्य नागरिक बन देश की तरक्की में हाथ बटाए, न कि समाज पर एक बोझ बन अपनी कुप्रवृत्तियों से उसे दूषित व कलंकित करें।
आरंभ में भिक्षकों के आवास की व्यवस्था व रोजगार का प्रबंध किया जाना आवश्यक है। भिक्षा का सामाजिक अपराध ही समझा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आलस्य तथा कामचोरी की भावना ऐसे लोगों को पुनः भीख माँगने को प्रेरित करेगी। सामाजिक संस्थाओं को इस दिशा में काफ़ी योगदान हो सकता है। सरकार व समाज दोनों तरफ़ से समवेत प्रयासों द्वारा ही इस कुप्रवृत्ति का समूल नाश संभव है।
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