Essay on Bhartiya Nari in Hindi भारतीय नारी पर निबंध Indian Women Essay in Hindi
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- Essay on Bhartiya Nari in Hindi – भारतीय नारी पर निबंध
- Essay on Modern Indian Woman in Hindi – आधुनिक भारतीय नारी पर निबंध
भारतीय नारी पर निबंध Essay on Bhartiya Nari in Hindi
Essay on Bhartiya Nari in Hindi 700 Words
भारत में प्राचीन काल से नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जैसा कि श्लोक में कहा भी गया है ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने नारी को देवी, मां, सहचरी, सखी और प्राण कहकर श्रद्धा के सुकोमल सुमन अर्पित किए हैं। किसी भी पुण्य कार्य को बिना नारी के कर पाना संभव नहीं होता है। नारी को नर से पहले स्थान दिया गया है। लेकिन वर्तमान समय में भारतीय समाज में उसका आदर्श और यथार्थ क्या है? आइए इसकी गहराई में पहुँचने का प्रयास करें।
महाभारत काल में द्रौपदी के साथ जो व्यवहार किया गया वह आगे के वर्षों में भी जारी रहा है। जोरू अथात नारी का क्लेश का कारण माना जता रहा है। नारियों के कारण युद्ध हुए, घर-परिवार नष्ट हुए, इस प्रकार की बातें हमेशा से होती आई हैं। मध्यकाल में भारत पर विदेशी आक्रमण हुए, जिसक परिणामस्वरूप नारियों की सुरक्षा के लिए उन्हें पूर्णतया पर्दे के पीछे सरका दिया गया। प्राचीन काल में जो नारी वनों में घूमती-फिरती रहती थी तथा तपस्या करती थी वह मध्यकाल में पूर्णतया भोग्या बन गई। रीतिकाल में नारी की छवि रसीली, छबीली, मदिरा सी बन गई।
इसके बाद आया ब्रिटिश शासन और उसके साथ-साथ आधनिक काल और अंग्रेजी शिक्षा साहित्य के अध्ययन और पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के साथ हुए संपर्कों ने नारी जाति को खुले व्यवहार के लिए बाध्य कर दिया। ब्रिटिशशासन काल में सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवाविवाह आदि कुरीतियों को खत्म किया गया तथा नारी को कुछ सम्मानजनक दर्जा प्रदान किया गया। उसे पिता-पति संपत्ति में हिस्सेदारी भी दी गई। साथ ही साथ, उसे नौकरी करने तथा अन्य व्यवसाय अपनाने की छूट दी गई।
स्वतंत्रता आंदोलन में नारी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नारी पर से पाबंदी स्वतंत्रता आंदोलन के समय हटा ली गई। स्वतंत्र भारत में इसी सब वजह से आज वह चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक सब कुछ रही और आगे भी रह सकती है। आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहाँ नारी ने अपनी प्रबल कर्मठता का परिचय न दिया हो। आज समाज का हर वर्ग और प्राय: व्यक्ति नारी स्वतंत्रता और समानता का समर्थन करता है। लेकिन प्रशन यह है कि संविधान में नारी को जो स्वतंत्रता या समानता प्राप्त है; क्या भारतीय समाज में वास्तव में उसे वही स्थिति प्राप्त हो गई है? इसका उत्तर दे पाना बहुत ही कठिन है; क्योंकि भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान ही रहा है तथा नारी को भोग्या के रूप में ही देखा जाता रहा है। आज भी स्थिति पूरी तरह से बदली नहीं है। शहरों में भले ही नारी आज हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम किए हुए है लेकिन गाँवों में स्थिति एकदम अलग है। वहां नारी केवल कठपुतली ही बनी हुई है। उदाहरण के लिए राजनीतिक चुनाव में नारी को आरक्षण की कुछ सीटें मिली हुई हैं। लेकिन उसमें नारी केवल खड़ी होती है, उसका नाम होता है, बाकी की सारी प्रक्रिया पुरुष ही सम्पन्न करता है। आज पुरुष अपने आपको भले ही बहुत आधुनिक सिद्ध करना चाहता है, लेकिन वह मध्ययुगीन मानसिकता से उबर नहीं पाया है। आज वह कदम-कदम पर नारी को प्रश्नभरी दृष्टि से ही देखता है तथा उसे केवल भोग्या मात्र मान कर व्यवहार करता है। आज वह पुरुप की तृष्णाओं की आग में जल रही है। अन्य कई मामलों में भी उसे जलाया जाता है। ऐसे में सफलता और स्वतंत्रता कैसी?
आज भी नारी जीवन का आदर्श यही है कि – आंचल में है दूध और आंखों में पानी। जब तक पुरुष समाज की मानसिकता में बुनियादी तौर पर परिवर्तन नहीं आ जाता, तब तक नारी की स्थिति में कोई स्थायी परिवर्तन नहीं हो सकता।
लेकिन फिर भी अगर हम पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालें तो देखेंगे नारी ने हर क्षेत्र में तरक्की की है। प्रशासन के क्षेत्र में आइ. पी. एस. अधिकारी किरण बेदी का नाम कौन नहीं जानता है; जिन्होने भारतीय नारी के सामने ऐसा यथार्थ आदर्श रखा है जो आगे के वर्षों में भी नारी को प्रेरणा देता रहेगा। वहीं खेल-कूद के क्षेत्र में कर्णम मल्लेश्वरी द्वारा पदक जीता जाना नारी को प्रेरित करने के लिए काफी है। सानिया मिर्जा भी एक जीता जागता उदाहरण हैं । आशा है, भारतीय नारी इन सबसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ती रहेगी। तमाम सामाजिक कठिनाइयों को पार करती हुई अपने लिए सम्मानजनक स्थिति प्राप्त करेगी तथा भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान बनायेगी।
आधुनिक भारतीय नारी पर निबंध Essay on Modern Indian Woman in Hindi 800 Words
पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति ने यों तो भारतीय जीवन और समाज के किसी भी अंग को अछूता नहीं रहने दिया; पर लगता है कि भारतीय नारी-समाज, उसका प्रत्येक अंग उससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। इसी कारण वह आज सर्वाधिक प्रताड़ित एवं प्रपीड़ित भी है। पाश्चात्य नारी समाज और उसकी सभ्यता-संस्कृति, पाश्चात्य शिक्षा और रीति नीतियों के प्रभाव से आज की नारी ने स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली है; पर सखेद स्वीकार करना पड़ता है कि उसने न तो स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ ही समझा है और न अनुशासन ही सीखा है। फलस्वरूप वह मक्खन की उस टिकिया के समान हो गई है कि जो तनिक गर्मी बढ़ने से पिघल और सर्दी बढ़ने से जम जाया करती है। या फिर इत्र की उस शीशी की-सी हो गई है कि जो लगातार बन्द रहने से भीतर-ही-भीतर सड़ कर बदबूदार हो जाया करती है और ज़रा-सी खुली रह जाने पर उड़ कर खाली हो जाती है। दोनों स्थितियाँ अच्छी नहीं कही जा सकतीं।
शिक्षा, स्वावलम्बन, आर्थिक स्वतंत्रता, घर से बाहर निकल कर जीवन-समाज को नेतृत्व दे पाने की क्षमता, घर की चार-दीवारी और चूल्हे-चौके तक ही अपने को सीमित न रख जीवन के किसी भी उद्योग-धंधे या, व्यवसाय में अपनी दक्षता का परिचय देना जैसी अनेक बातें भारतीय नारी ने पश्चिम से सीखी हैं। उन सभी बातों को शुभ परिणामदायक कहा जा सकता है। इस से भारतीय नारी के जीवन में नया आत्मविश्वास जागा है। उसे नये क्षितिजों के उद्घाटन करने में काफ़ी सफलता प्राप्त हुई है। यह भी पश्चिम का ही प्रभाव है कि आज भारतीय नारी घूँघट के भीतर सिकुडी छुई मुई बनी रहने वाली नहीं रह गई, न ही वह कल की तरह पुरुषों को देख कर लज्जा से सिकुड़ कुमड़े की बेल-सी ही बनी रह गई हैं। आज वह धड़ल्ले से हर विषय पर, हर किसी के साथ बातचीत कर सकती है। वह पुरुषों की तरह एवरेस्ट की चोटी पर तो अपने पाँव रख ही आई है, चन्द्रलोक की यात्रा भी कर आई है। इन सभी बातों को भारतीय नारी-जीवन के लिए अच्छा एवं सुखद कहा जा सकता है।
इन अच्छाइयों के साथ-साथ भारतीय नारी ने पश्चिम से कुछ ऐसी बातें भी सीखीं या ऐसे प्रभाव भी ग्रहण किए हैं, जिन्हें भारतीय सभ्यता-संस्कृति की दृष्टि से उचित एवं अच्छा नहीं माना या कहा जा सकता। उस तरह के पाश्चात्य प्रभावों ने नारी को एक प्रकार का चलता-फिरता मॉडल इश्तिहार या पोस्टर या फिर उपभोक्ता सामग्री बना कर रख दिया है। परम्परागत शब्दों में कहा जाए, तो एक बार फिर वह भोग्या मात्र बन कर रह गई है। एक शब्द में पश्चिम से आए उस प्रभाव को ‘फैशन’ कहा जा सकता है। फैशन में अंधी आज की नारी ने आज अपना अंग-प्रत्यंग तक सभी कुछ उधाड़ कर रख दिया है। इस सीमा तक वह उघड़ने लगी है कि उस का सौन्दर्य भदेस, सुकुमारता माँस का लजीज टुकड़ा और तन-बदन नग्न होकर अश्लीलता का प्रतिरूप-सा प्रतीत होता है। वह किसी भी तरह से अपने उपयोग करने देने के लिए तैयार हो जाती है कि जब उसे कड़क नोटों की खड़क या चमकीले सिक्कों की खनक सुन पड़ती है। आधुनिक भाषा में जिस ‘मॉडल’ एवं ‘मॉडलिंग’ कहा जाता है, अपने मॉडर्न होने का सबूत देने के लिए उसके नाम पर वह खुली सड़क पर अर्द्ध नग्न अवस्था में नाचने, किसी भी पुरुष की बाँहों में समा जाने, जाँघिए के खले और सिगरेट-शराब के साथ भी अपने पोज़ देने को तैयार हो जाती है कि जिन का सेवन वह अपने जीवन में शायद ही कभी करती हो। तात्पर्य यह है कि आर्थिक स्वतंत्रता के नाम पर पाश्चात्य प्रभावित नारी चड्डी-चोली तक उतारती हुई दिखाई दे रही है।
पाश्चात्य प्रभावित नारी-समाज में एक अन्य शब्द य वाक्य प्रचलित है। वह है-व्यक्तित्व या आकर्षक व्यक्तित्व। इस के साथ एक अन्य शब्द जुड़ जाता है-‘प्रदर्शन’, यानि जब बनाने वाले ने आकर्षक व्यक्तित्व या सौन्दर्य-यौवन प्रदान किया ही है, तो उसके दिखाने या प्रदर्शन करने में हर्ज ही क्या है। जो स्वाभाविक वस्तु है, यदि उसे प्रदर्शित कर ही दिया जाता है, तो उससे उसका अपना या किसी का क्या बन-बिगड़ जाता हैं फिल्मी नायिकाओं के बनावटी जीवन से सीखे गए इस प्रकार माँसल एवं माँसाहारी जुमले जब हम आम नारियों के मुख से भी सुनते हैं, तो सोचने को विवश हो जाना पड़ता है कि आधुनिकता के नाम पर भारतीय नारी आखिर अपने पेटी कोट से किस सीमा तक बाहर जाएगी। इस प्रकार की बातों और लक्षणों को तो शुभ नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार की बातों में न तो वास्तव में किसी प्रकार का व्यक्तित्व है, न विकास है और न सौन्दर्य ही है।
इस प्रकार कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि अभी तक तो भारतीय नारी न तो पूर्णतया पाश्चात्य ही बन पाई है और न अपने भारतीय स्वरूपाकार को ही निखार पाई है। वह एक ऐसे दोराहे पर पहुँच चुकी है, जहाँ से आगे किधर अच्छा या बुरा है; वह न तो अभी तक समझ पा रही है और न निर्णय ही कर पा रही है । भविष्य को ही वास्तविक निर्णायक बनना है।
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