भारतीय चुनाव पर निबंध Essay on Election in Hindi
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Essay on Election in Hindi चुनाव पर निबंध
Essay on Election in Hindi 100 Words
चुनाव शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है चुन और नाव जिसका अर्थ होता है योग्य व्यक्ति का चयन करना। वैसे तो चुनाव का इतिहास काफी पुराना है लेकिन वर्तमान समय में यह मानव विकास का एक अहम हिस्सा है। चुनाव को किसी भी लोकतंत्र का आधार स्तंभ माना जाता है। किसी भी स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए एक निश्चित अंतराल के बाद चुनाव प्रक्रिया का होना काफी आवश्यक होता है क्योंकि ऐसा ना होने पर वर्तमान राजनेताओं और देश की बागडोर संभालने वाले व्यक्तियों में ऐसी भावना उत्पन्न हो जाती है कि उन्हें उनके पद से कोई नही हटा सकता।
Essay on Election in Hindi 150 Words
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। भारत देश की सरकार लोगो के द्रारा और लोगो के लिए होती है। लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। भारत में मुख्य रूप से दो तरह के चुनाव अतिमहत्वपूर्ण है: लोकसभा तथा विधानसभा।
आमतौर पर प्रत्येक पांच साल के अंतराल पर चुनाव होता है। देश का कोई भी व्यक्ति जो 18 वर्ष या इससे अधिक का हो, वो अपने पसंदीदा उमीदवार को अपना वोट दे सकता है। भारत के चनाव आयोण द्रारा चुनाव आयोजित किया जाता है। ये संस्था स्वतंत्र है और किसी सरकार के आधीन काम नहीं करती। चुनाव आयोग का मुख्य कार्य चुनाव के दौरान कोड ऑफ़ कंडक्ट की सहायता से चुनाव को पारदर्शी बनाये रखना है।
देश के सभी मतदाता का चुनाव में हिस्सा लेना और अपनी सूज बुज के साथ बिना किसी के बहकावे में आये मतदान करना बहोत जरुरी है ।
लोकतंत्र और चुनाव पर निबंध – Essay on Election in Hindi 400 Words
लोकतन्त्र का सीधा सम्बन्ध लोकशक्ति से है और लोकशक्ति चुनावों के द्वारा ही उजागर होती है। लोकतन्त्र में चुनावों का होना ही उसकी शक्ति का एक लक्षण है। विश्व में कई सरकारें अब तक चुनावों के द्वारा गिराई व बनाई जा चुकी हैं। जनता की राय चुनावों द्वारा प्रकट होती है और सबसे अधिक लोकप्रिय नेता ही सत्ता में आकर देश सेवा करते है।
लोकतंत्र में बिना जाति, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव किये, प्रत्येक वयस्क व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। परन्तु हमारे देश में इन्हीं मुद्दों पर चुनाव में गड़बड़ियां देखने में आई हैं। धन, शारीरिक बल व सत्ता पर आरूढ़ लोगों का दुष्प्रयोग घटिया व अपराधी प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों की जीत के लिए अक्सर होता है। चुनाव वाले दिन तो बस खानापूरी ही की जाती है। गुंडागर्दी व आपराधिक प्रवृतियों का भारत के चुनावी दंगलों में सम्पूर्ण प्रभुत्व कायम है। इस संदर्भ में लोकतंत्र के मूल्यों के जीवित रहने की अपेक्षा कैसे होगी?
नगर पालिका, नगर निगम, विधान परिषद् पंचायत या अन्य मुख्य समितियों के लिए चुनाव भी संदेह, हिंसा या धन के आदान-प्रदान के स्थल बन गये हैं। एक व्यक्ति का वोट कोई मायने नहीं रखता क्योंकि वह स्वयं में बड़ा कमजोर, मजबूर तथा परिस्थितियों से बंधा है। राजनीतिक पार्टियां इस बात का लाभ उठा कर उसकी नाक में नकेल डाल देती हैं। यही भारत के लोकतंत्र की त्रासदी है।
यदि लोकतंत्र को जीवित रखना है तो सही समय पर चुनाव करवाने होंगे। आपराधिक प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों को चुनावों में भाग लेने से रोकना होगा। चुनावों के दौरान व्यय की गई राशियों पर भी अंकुश लगाना चाहिए। चुनाव आयोग ने अपराधी उम्मीदवारों पर प्रतिबन्ध लगा कर अच्छा ही किया है। इसके अलावा, आम वोटरों को भी अपने मताधिकारों के सन्दर्भ में जागरुक होना पड़ेगा। युवा लड़के और लड़कियां इस बात से अनजान हैं कि वे किसको वोट डालें। उन्हें उम्मीदवारों के इतिहास, कार्यकुशलता व अन्य तथ्यों की पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
आज लोकतन्त्र की मूल भावना वास्तव में लालफीताशाही, भ्रष्ट राजनीति और निहित स्वार्थी लोगों के गठबन्धन का शिकार होकर रह गई है। चुनाव केवल पैसे और लाठी का खेल बन कर रह गया है।
इस समय चुनाव लोकतंत्र को सशक्त नहीं कर रहे हैं। वह प्रवृत्ति विपरीत दिशा में मोड़ी जानी आवश्यक है। यदि जनसाधारण निराश हो कर चुनावों से कतराने लगे तो हमारे लोकतंत्र की नींव हिल सकती है और भारत देश की नींव लोकतंत्र के सशक्त आधार पर ही टिकी है।