Essay on Hargobind Khorana in Hindi हरगोविंद खुराना पर निबंध

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नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना भी पूरी दुनिया के लिए एक वरदान थे, जिन्होंने अपनी खोज से आनुवंशिकीय बीमारियों के कारण और उनके उपचार की राह सरल बनाई। उनका जन्म 9 जनवरी, 1922 को पंजाब के मुल्तान ज़िले के रायपुर कस्बे में हुआ था।

वे बचपन से ही मेधावी छात्र थे। स्कूल और कॉलेज में उन्हें अपनी प्रतिभा के चलते छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं। 1943 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से बी०एस-सी० ऑनर्स और 1945 में एम०एस-सी० ऑनर्स किया। फिर वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ लिवरपूल विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रोफेसर ए० रॉबर्टसन के मार्गनिर्देशन में शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी० प्रेलॉग के साथ शोध-कार्य में लग गए।

जब वे भारत लौटे, तब उन्हें अपनी पसंद का कोई काम न मिला। इस कारण वे एक बार फिर इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की सदस्यता प्राप्त की। 1952 में वे कनाडा के वैंकूवर की ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद् के जैव-रसायन विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1960 में उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में प्रोफेसर का पद प्राप्त किया।

वे जीवकोशिकाओं में नाभिकों की रासायनिक संरचना के अध्ययन में लगे रहे। नाभिकों के नाभिकीय अम्लों के संबंध में खोज लंबे समय से चल रही है, लेकिन यह उनकी विशेष विधियों से ही संभव हुआ। नाभिकीय अम्ल हजारों एकल न्यूक्लिओटिडों से बनते हैं। जैव कोशिकाओं के आनुवंशिकीय गुण इन्हीं जटिल बहु न्यूक्लिऔटिडों की संरचना पर निर्भर करते हैं। डॉ० खुराना ग्यारह न्यूक्लिओटिडों का योग करने में सफल हो गए थे। इस सफलता से ऐमिनो अम्लो की संरचना और आनुवंशिकीय गुणों को समझना संभव हो पाया है। इससे वैज्ञानिक आनुवंशिकीय रोगों का कारण और उन्हें दूर करने का उपाय खोज सकेंगे। डॉ० खुराना की यह खोज अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए उन्हें कई देशी-विदेशी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 1968 में उन्हें अन्य दो अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इससे पहले 1958 में उन्हें कनाडा के केमिकल इंस्टीट्यूट से मर्क पुरस्कार मिला। 1968 में ही उन्हें डॉ० निरेनबर्ग के साथ लूशिया ग्रौट्ज हॉर्विट्ज पुरस्कार भी दिया गया।

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