Essay on Importance of Tourism in Hindi
|Essay on tourism in Hindi for all students of class 1, 2, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Most students find difficulty in writing
Essay on Tourism in Hindi 200 Words
पर्यटन का महत्त्व – विचार – बिंदु – • पर्यटन का आनंद • पर्यटन के लाभ • पर्यटन : एक उद्योग • पर्यटन के प्रकार।
पर्यटन का अर्थ है – घूमना। बस आनंद-प्राप्ति और जिज्ञासा-पूर्ति के लिए घूमना। ऐसे पर्यटन में सुख ही सुख है। ऐसा पर्यटक दैनंदिन जीवन की भारी-भरकम चिंताओं से दूर होता है। वह रसपिपासु होता है। पर्यटन से हमें देश विदेश के खान-पान, रहन-सहन तथा सभ्यता-संस्कृति की जानकारी मिलती है। इससे हमारे मन में बैठे हुए कुछ अंधविश्वास टूटते हैं, पर्वधारणाएँ समाप्त होती हैं। हमें यह विश्वास होता है – विश्व-भर का मानव मूल रूप से एक है। राष्ट्रीय एकता बढ़ाने में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है।
वर्तमान समय में पर्यटन एक उद्योग का रूप धारण कर चुका है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मीर आदि पर्वतीय स्थलों की अर्थ-व्यवस्था पर्यटन पर आधारित है। आज पर्यटन करना सुविधापूर्ण हो गया है। प्रायः सभी प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों पर होटलों, भोजनालयों, विश्रामगृहों, मनोरंजन-स्थलों यातायात के साधनों की भरमार हो गई है। पर्यटन-स्थल अनेक प्रकार के हैं। कुछ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात हैं। कुछ धार्मिक महत्त्व के हैं। कुछ पर्यटन-स्थल ऐतिहासिक महत्त्व के हैं। जैसे-लाल किला, ताजमहल आदि। कुछ पर्यटन-स्थल वैज्ञानिक, सांस्कृतिक अन्य महत्त्व रखते हैं।
Essay on Tourism in Hindi 800 Words
मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है। वास्तव में मानव की प्रगति का इतिहास उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति का ही परिणाम है। अपनी जिज्ञासा के कारण ही वह प्रकृति के गूढ़ रहस्यों का पता लगा सका। देश-विदेश की यात्रा की ललक के पीछे भी मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति ही काम करती आई है। देश-देशांतर की संस्कृति, सभ्यता, प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक विशेषताओं के प्रत्यक्ष ज्ञान की जिज्ञासा ही उसे घर के ऐशो-आराम, सुख-सुविधा छोड़कर अनजान, दुर्गम और बीहड़ रास्तों पर घुमाती रही है।
यदि मनुष्य चाहता तो वह घर बैठे ही पुस्तकों द्वारा यह जानकारी प्राप्त कर लेता, किंतु पुस्तकों से प्राप्त जानकारी का आनंद कुछ ऐसा ही होता है जैसे किसी चित्र को देखकर हिमालय के घने देवदार के वनों और हिमगिरि के उत्तुंग शिखर के सौंदर्य, रूप, गंध का अनुभव करना।
पर्यटन, घुमक्कड़ी का ही आधुनिक नाम है। आज के पर्यटन के पीछे भी मनुष्य की वही पुरानी घुमक्कड़ प्रवृत्ति का प्रभाव है। आज भी जब वह देश-विदेश के विभिन्न स्थानों की खूबियों के बारे में सुनता-पढ़ता है, तो उन्हें निकट से देखने, जानने के लिए उत्सुक हो उठता है और वह अपनी सुविधा और अवसर के अनुसार उस ओर निकल पड़ता है। आदिम घुमक्कड़ और आज के पर्यटक में इतना अंतर अवश्य है कि आज पर्यटन उतना कष्ट-साध्य नहीं जितनी घुमक्कड़ी थी। ज्ञान-विज्ञान के आविष्कारों, अन्वेषणों की जादुई शक्ति के प्रताप से सुलभ साधनों के कारण आज पर्यटन पर निकलने के लिए अधिक सोच-विचार की आवश्यकता नहीं होती। मात्र सुविधा और संसाधन चाहिए, किंतु इतना अवश्य मानना पड़ेगा कि पर्यटक बनने का जोखिम भरा आनंद तो उन पर्यटकों को ही आया होगा जिन्होंने अभावों और विषम परिस्थितियों से जूझते हुए देश-विदेश की यात्राएँ की थीं। फाह्यान, वेनसांग, अलबेरुनी, इब्नबतूता, मार्को पोलो आदि ऐसे ही यात्री रहे होंगे।
आज पर्यटन एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। इस उद्योग के प्रसार के लिए देश-विदेश में पर्यटन मंत्रालय बनाए गए हैं।
सारे विश्व भर में पर्यटकों की सुवधा के लिए बड़े-बड़े पर्यटन स्थल विकसित किए जा रहे हैं। कई महत्त्वपूर्ण, पर अब तक उपेक्षित ऐतिहासिक स्थलों को सजाया-संवारा जा रहा है। हमारे देश का पर्यटन विभाग, पुरातत्त्व विभाग के साथ मिलकर इस दिशा में विशेष तौर पर क्रियाशील है। मनोरम पहाड़ी स्थलों पर पर्यटक आवास स्थापित किए जा रहे हैं। पर्यटकों के निवास और भोजन आदि की व्यवस्था के लिए नए-नए होटलों, लॉजों और पर्यटन-गृहों का निर्माण एवं विकास किया जा रहा है। यातायात के सभी प्रकार के सुलभ एवं आवश्यक साधनों की व्यवस्था की जा रही है।
विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सभी देश अपने दूतावासों के माध्यम से अपने-अपने देश की भव्यता, दर्शनीयता के बारे में विदेशों में व्यापक एवं सुनियोजित प्रचार करते हैं। इस प्रकार पर्यटन-संस्कृति का विकास हो रहा है। इतना ही नहीं, आज पर्यटन पर्याप्त लाभ देने वाला उद्योग बन चुका है। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का एक बड़ा स्रोत बन गया है। जैसे उद्योगपति या व्यापारी अपनी वस्तु की बिक्री के लिए ईश्तहारबाजी करता है, उसी तरह पर्यटन को भी एक वस्तु बनाकर उसका प्रदर्शन और प्रचार किया जा रहा है। इसके लिए रंगीन पुस्तिकाएं, आकर्षक पोस्टर, रंगदार ब्रोशर, पर्यटन स्थलों के रंगीन चित्र, उपलब्ध सुविधाओं का विस्तृत ब्योरा आदि प्रचार सामग्री विमानपत्तनों, रेलवे स्टेशनों, बड़े-बड़े होटलों और देश-विदेश के सभी प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर देखी जा सकती हैं। इसे नि:शुल्क वितरित एवं प्रदर्शित किया जाता है।
पर्यटन के प्रति रुचि जागृत करने के लिए कई बार वृत्तचित्र भी तैयार किए या करवाए जाते हैं। इसमें किसी एक विशिष्ट स्थल की झाँकी प्रस्तुत की जाती है। विशेष स्थलों या प्रदेशों में बने कथाचित्र भी प्रदर्शन के बाद लोगों के मन में प्रदर्शित स्थल को देखने की लालसा जगा देते हैं। कई बार देश-विदेश में भ्रमण करने वाली नृत्य-संगीत आदि की मंडलियाँ भी इस कार्य में सहायक होती हैं। इन सबके परिणामस्वरूप आज पर्यटन के प्रति निश्चय ही अभिरुचि की वृद्धि हो रही है।
आनंद प्राप्ति, जिज्ञासा की शांति, बढ़ती आय के अतिरिक्त पर्यटन के और भी कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ हैं। पर्यटन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीयता की समझ जन्म लेती है और विकसित होती है। प्रेम और मानवीय भाईचारा बढ़ता है। सभ्यता और संस्कृतियों का परिचय मिलता और बढ़ता है। पर्यटन के माध्यम से किसी देश और उसकी संस्कृति के सम्बन्ध में फैली भ्रांतियों का भी निराकरण हो जाता है। आज हम अंतर्राष्ट्रीय युग में जी रहे हैं। आज जिस अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, पर्यटन उसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
पर्यटन से व्यक्ति अपने खोल से बाहर निकलना सीखता है, उसे अपनी वास्तविकता का अहसास होता है। अपने पर्यावरण से बाहर कठिन परिस्थितियों में जीने का अभ्यास होता है। आत्म-साक्षात्कार का अवसर मिलता है। पर्यटन उस एकरसता से उत्पन्न ऊब का भी परिहार करता है जो एक ही स्थान पर, एक जैसे ही वातावरण में लगातार रहने से उत्पन्न हो जाती है। पर्यटन मनुष्य को उसकी कल्पना की दुनिया से निकालकर यथार्थ की भूमि से जोड़ता है।
Essay on Tourism in Hindi 1000 Words
पर्यटन व्यवसाय
पर्यटन आदिकाल से ही मनुष्यों का स्वभाव रहा है। घूमना-फिरना भी मनुष्य के जीवन को आनन्द और मस्ती से भर देता है। इसका पता लोगों ने बहुत पहले ही लगा लिया था। पहले लोग पैदल चलकर या समुद्र मार्ग से लम्बी-लम्बी दूरियां तय कर अपने भ्रमण के शौक को पूरा करते थे। कुछ लोग ऊंटों, घोड़ों आदि पर चढ़कर समूह यात्रा करते थे, हालांकि ऐसी कई यात्राएं व्यापार के उद्देश्य से भी की जाती थीं। परन्तु ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो यात्रा तो व्यापार, शिक्षा प्राप्ति या राजा के दूत बनकर करते थे परन्तु उनकी यात्रा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण बन जाती थी। ये लोग दूसरे देश की संस्कृति का अध्ययन कर अपने अनुभवों को ग्रंथ रूप में लिख देते थे।
जहाँ तक भारत के लोगों की बात है, हमारे यहां धार्मिक दृष्टि से की गई यात्राओं की बड़ी महत्ता रही है। यहां के लोग धर्म स्थानों की यात्रा को बहुत महत्त्व देते रहे हैं। आदि शंकराचार्य ने अल्प आयु में ही पूरे देश का भ्रमण कर देश के चारों कोनों में चार धर्मपीठों की स्थापना की। इन धर्मपीठों की व्यवस्था आज भी कायम है। सम्राट् अशोक ने बुद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने विभिन्न दूत एशियाई देशों में भेजे। उनका यह धार्मिक अभियान इतिहास में काफी सफल माना गया। परन्तु मध्य युग में स्थिति में काफी बदलाव आ गया। भारतीय लोगों में यह भ्रांत धारणा उत्पन्न हो गई कि समुद्र लांघ कर की गई यात्रा से धर्म भ्रष्ट हो जाता है। अत: किसी भी भारतीय की समुद्रपारीय यात्रा का वर्णन नहीं मिलता।
आधुनिक युग में पर्यटन सम्बन्धी सभी भ्रांतियां समाप्त होने तथा आवागमन के साधनों के क्षेत्र में आए भारी बदलावों के कारण पर्यटन एक व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। विभिन्न देशों के लोग दुनिया के अन्य देशों में जाकर वहां की सभ्यता और संस्कृति को निकट से देखने-समझने का प्रयास करते हैं। अनेक लोग देश के प्रमुख स्थलों की यात्रा कर देश के पर्यटन व्यवसाय को उन्नत करने में अपना योगदान देते हैं। आधुनिक युग में पर्यटन को एक व्यवसाय का रूप देने में लोगों की बढ़ती आर्थिक समृद्धि का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। पर्यटन में अच्छा खासा धन व्यय होता है। अत: धनी और उच्च मध्यवर्गीय श्रेणी के लोग ही प्रमुख रूप से पर्यटन में दिलचस्पी दिखाते हैं। इन्हीं साधन-सम्पन्न लोगों की बदौलत दुनिया का पर्यटन व्यवसाय टिका हुआ है।
भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं परन्तु दुर्भाग्यवश इन संभावनाओ का भरपूर दोहन नहीं हो पाया है। हमारा देश बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक देश है। यहां पर पर्यटन स्थलों की भी भरमार है परन्तु दुनिया भर के पर्यटन व्यवसाय में से भारत का हिस्सा नगण्य ही कहा जा सकता है। थाईलैंड जैसा छोटा सा एशियाई देश हमारी तुलना में कई गुणा अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर पाने में सक्षम है। पर्यटन की दृष्टि से हमारे पिछड़ेपन के कई कारण हैं, जिसमें से प्रमुख कारण है – पर्यटकों को आकर्षित करने वाली सुविधाओं का अभाव।
पर्यटक स्थलों को साफ-सुथरा रखना, पर्यटन स्थलों तक पहुंच को आकर्षक बनाना, लोगों के निवास, भोजन आदि की उत्तम व्यवस्था करना, पर्यटन स्थलों को मनोरंजन से भरपूर बनाना, सड़क और संचार व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखना, लोगों को आकर्षित करने के लिए प्रचार करना आदि कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें व्यावहारिक रूप देकर ही देश के पर्यटन उद्योग को विकसित किया जा सकता है।
हमारी खस्ताहालत सड़कें, ट्रेनों में शीघ्र आरक्षण न मिलना, बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी आदि पर्यटन व्यवसाय पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। दूसरी ओर कश्मीर, आसाम तथा अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों में व्याप्त हिंमा देश के पर्यटन के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो रही है। देश में ऐतिहासिक स्थल बहुत है परन्तु आस-पास का क्षेत्र प्रदूषण और गंदगी की चपेट में है। देश की राजधानी दिल्ली को ही लें। लाल किले तथा जामा मस्जिद का क्षेत्र, बाजार और संकीर्ण गलियों के कारण आकर्षण से विहीन बना हुआ है जबकि इस क्षेत्र को दिल्ली का हृदयस्थल कहा जाता है। विश्व की आश्चर्यजनक एवं अलौकिक इमारत ताजमहल की भी घोर अपेक्षा की गई है। आगरा देश के सर्वाधिक गंदे शहरों में से एक है तो हम कैसे आशा कर सकते हैं कि देश का पर्यटन व्यवसाय दिन-दुगनी रात चौगुनी उन्नति करे। ये तो कुछेक प्रमाण भर हैं, पूरे देश में पर्यटन स्थलों की यही स्थिति है।
यदि देश के पर्यटन को सचमुच बढ़ावा देना है तो हमें इसके लिए ठोस उपाय करने होंगे। इस क्षेत्र में निजी सैक्टर को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है क्योंकि केवल सरकारी प्रयास कारगर नहीं हो सकते। सरकारी योजनाओं को बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने में भ्रष्टाचार आदि कई कारणों से लम्बा समय लग जाता है। जो पर्यटन उद्योग की वृद्धि को रोक देता है। यह शुभ लक्ष्ण है कि अब सरकार वस्तु स्थिति को समझ कर हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है। यदि सही दिश में प्रयास किए जाएं तो अगले पाँच वर्षों में ही भारत में पर्यटन व्यवसाय के विकसित होने से देश को बेशकीमती विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होगी तथा भुगतान संतुलन की स्थिति को सुधारने में बहुत मदद मिलेगी।
भारतीय पर्यटन उद्योग को विकसित करने में एक बड़ी बाधा को वर्तमान में दिखाई दे रही है – वह है आतंकवाद। आतंकवाद भारत के सभी प्रमुख स्थानों में अपनी जड़ें जमा चुका है। काश्मीर में पर्यटन उद्योग आतंक के साए में दम तोड़ चुका है। जबकि इस स्थान को धरती के स्वर्ग के नाम से संबोधित किया जाता रहा है।
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