Essay on Indian Constitution in Hindi भारतीय संविधान पर निबंध
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Essay on Indian Constitution in Hindi भारतीय संविधान पर निबंध
Essay on Indian Constitution in Hindi 800 Words
स्वतंत्र भारत का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 में लागू किया गया था। संविधान के अनुसार भारत को गणतंत्री व्यवस्था वाला राज्य गणराज्य घोषित किया गया। संविधान का निर्माण करते समय इंग्लैड, अमेरिका, फ्राँस आदि राष्ट्रों के संविधान से कई अच्छी बातें ग्रहण की गई। इस दृष्टि से भारतीय संविधान विश्व का एक श्रेष्ठतम संविधान स्वीकार किया जाता है। भारतीय संविधान की सब से बड़ी विशेषता यह मानी जाती है कि इसमें देश को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इस घोषणा के अनुसार भारत में सभी धर्मों, जातियों, वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। सभी को अपने विश्वासों-निष्ठाओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करने की पूरी स्वतंत्रता रहेगी। राज्य उसमें किसी तरह का हस्तक्षेप या बाधा उपस्थित नहीं करेगा। अपनी इच्छानुसार सभी को पूजा-पद्धति अपनाने की भी पूरी स्वतंत्रता रहेगी। राज्य का आचरण-व्यवहार ऐसा रहेगा कि सभी लोग हर प्रकार की सुविधा पाने और विकास करने का समान अवसर प्राप्त कर सकें।
संविधान में कही गई ये सभी बातें अच्छी लगती हैं। संविधान स्त्री-पुरुष, बालक-बालिका आदि को समान मानकर उन्हें समान अधिकार भी प्रदान करता है। सम्पत्ति में भी स्त्री-पुरुष दोनों का समान अधिकार स्वीकार करता है। समानता का व्यवहार करने वाली ये सभी बातें बड़ी ही अच्छी एवं आकर्षक प्रतीत होती हैं। इन सभी तरह की समानताओं के आलोक में भारत को ‘धर्म-निरपेक्ष राज्य’ उचित ही घोषित किया गया। लेकिन लगता है, धर्म-निरपेक्षता से वास्तविक अभिप्राय क्या है, धर्म-निरपेक्ष किसे कहते हैं या कहना-मानना चाहिए, संविधान निर्माता इसे पारिभाषित करना भूल गए। इस कारण शासक वर्ग मात्र वोट पाने और अपनी कुर्सी बनाए रखने के लिए यहाँ के मूल धर्म-जाति की तो उपेक्षा करता रहता है और बाकी सबके प्रति उसका व्यवहार, तुष्टिकरण का रहता है। दूसरे, धर्म-निरपेक्षता का अर्थ धर्म-विहीनता ले लिया जाता है जबकि संविधान का रक्षक शासक दल स्वयं सभी धर्म-स्थलों के चौखटे चाटता फिरता है। धर्म-निरपेक्षता का वास्तविक अर्थ है राज्य का किसी एक धर्म के साथ न बन्धे रहना, न कि धर्म-विहीन होना। सो यदि संविधान में इस शब्द की उचित व्याख्या कर दी जाती, तो आज यह भ्रमक स्थिति न रहती।
भारतीय संविधान एक समग्र एवं सार्वभौमिक राज्य की परिकल्पना परिपुष्ट करने वाला है। एक राष्ट्रीयता की बात भी पूरा बल देकर कहता है। सभी के साथ समानता रखने, समान व्यवहार करने की बात भी खम ठोंक कर कहता है। लेकिन बड़ी विसंगति यह रह गई है कि सभी देशवासियों को मात्र ‘भारतीय’ न कह कर उन्हें बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक, जन-जाति, अनुसूचित जाति जैसे कई विभेदमूलक खानों में बाँट जाता है। एक ही साँस में ऐसा कह और मान लेना ‘धर्म-निरपेक्ष’ और ‘एक राष्ट्र’ ‘एक समान राष्ट्रीयता’ जैसी बातों के साथ भला कैसे मेल खा सकता है? इतना ही नहीं, अल्पसंख्यक वर्ग के अन्तर्गत संविधान में लगभग सभी धर्मों, जातियों, वर्गों, उपवर्गों आदि को गिना दिया गया है कि जो हिन्दू नहीं या रह नहीं गईं। इस का स्पष्ट अर्थ और संकेत यही है कि अपने-आप को ‘अभेदमूलक’ कहकर भी भारतीय संविधान ने वस्तुतः ‘भेदमूलक’ दृष्टि अपनाए रखी है और ‘एक भारतीयता’ को कई खण्डों में बाँट दिया है। इतना ही नहीं यहाँ बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के लिए अनेक सामाजिक क्रिया-प्रक्रियाओं में, व्यवहारों और कानूनी व्यवस्थाओं में भी विभेद बनाए रखा गया है। फलस्वरुप संविधान सभा या संसद द्वारा पारित कई कानून सारे देश पर समान रूप से लागू नहीं किये जा सकते। फलतः असन्तोष और बिलगाव की स्थितियाँ बने रहना बड़ा स्वाभाविक है।
संसार के श्रेष्ठ संविधानों में से एक माने जाने वाले संविधान की यह एक विडम्बना ही कही जाएगी कि उसके अनुसार सभी देशवासी एक होकर भी एक नहीं अनेक हैं। तभी तो किसी एक वर्ग, धर्म या जाति को खुश रखने के लिए संविधान में ऐसे टाँके लगाए जाते हैं कि जो वर्तमान परिवर्तनशील परिस्थितियों के, नए जीवन और धर्म-वर्गहीन समाज के अनुकूल कतई न होकर अपनी विद्रूपता का स्वयं ही उजागर कर दिया करते या करते हरते हैं और तुष्टिकरण की नीतियों को उजागर करने वाले स्पष्टतः भेदमूलक भी हैं कि जिस का सही रूप में उपयोग न कर-करा वैसी ही अन्य धाराएँ-उपधाराएँ बना कर जोड़ दी जाती हैं। इस प्रकार संविधान का संरक्षक शासक वर्ग ही वस्तुतः यहाँ उस की अवमानना करता रहता है। फिर कैसे मान लिया जाए कि वह सर्वश्रेष्ठ संविधान है।
इसमें सन्देह नहीं कि भारतीय संविधान में अनेक अच्छी बुनियादी बाते हैं। ऊपर के विवेचन से उस की विद्रूप सीमाएँ भी स्पष्ट हैं । इस विद्रूपता का मूल करण संविधान की सही व्याख्या न कर सत्ता की कुर्सी और वोट हथियाने के लिए शासक वर्ग द्वारा की गई मनमानी व्याखाएँ ही हैं। यदि संविधान में सभी के लिए मात्र ‘भारतीय’ शब्द का प्रयोग कर सारे नियमों-कानूनों का समान पालन करवाया जाए, तो निश्चय ही उसकी श्रेष्ठता बनी रह सकती है, अन्यथा उसके साथ-साथ देश का शीराजा भी बिखर जाएगा।