Essay on My Favourite Teacher in Hindi मेरे प्रिय अध्यापक पर निबंध
|We have written an essay on My Favourite Teacher in Hindi. मेरे प्रिय अध्यापक पर निबंध। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और विद्यार्थियों के लिए शिक्षक दिवस पर निबंध हिंदी में। Students today we are going to discuss very important topic i.e essay on my favourite teacher in Hindi. My favourite teacher essay in Hindi is asked in many exams. The long essay on my favourite teacher in Hindi is defined in more than 300 words. Learn an essay on my favourite teacher in Hindi and bring better results.
Essay on My Favourite Teacher in Hindi 300 Words
मैं नई दिल्ली कॉन्वेंट स्कूल में पढता हूँ। हमारे स्कूल में 30 शिक्षक हैं वे सभी अच्छे हैं पर श्री मयंक शर्मा मेरे पसंदीदा शिक्षक हैं। वह मेरे कक्षा अध्यापक भी है। वह बहुत हीं अनुशासित और समय के पाबंद शिक्षक हैं। वे समय से पहले कॉलेज में आ जाते हैं और हमने उन्हें देर से आते हए कभी नहीं देखा। वह हमारी उपस्थिति दर्ज करते हैं और हमें गणित पढ़ाते हैं।
श्री मयंक बहुत अधिक शिक्षित हैं और उन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की है। वे अपने विषय के विद्वान हैं। मैं उनका बहुत ही अनुशासित और आदर्श छात्र हूँ और मैं उनके सभी आदेशों का पालन करता हूँ। गणित को एक कठिन विषय माना जाता है। बहुत से विद्यार्थी इस विषय का नाम सुनकर ही घबराते हैं। परंतु मयंक सर ने विद्यार्थियों के अंदर इस विषय के भय को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। विद्यार्थी गणित विषय में अब सवाधिक अंक प्राप्त करते है।
मयंक सर किसी भी स्कूल या नृत्य, खेल, स्कूल प्रतियोगिता के दौरान भी हमें बहुत अच्छी तरह मार्गदर्शन करते हैं और स्कूल में किसी भी कार्यक्रम या प्रतियोगिता के आयोजन पर पूरी तरह से ध्यान रखते हैं। | मेरे प्रिय अध्यापक स्वभाव से मिलनसार हैं और वे जल्दी बच्चों के बीच घुलमिल जाते हैं। उनके कार्य और गुण न केवल मुझे ही प्रभावित करते हैं बल्कि कई लोग भी प्रभावित है। अध्यापक के गुणों का छात्रों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। हमें उन पर गर्व है।
मेरे प्रिय अध्यापक पर निबंध – Essay on My Favourite Teacher in Hindi 1000 Words
यूँ तो विद्यालय के सभी अध्यापकों के प्रति मेरे मन में आदर व सम्मान है, परंतु हमारे हिंदी के अध्यापक अपनी विशिष्टताओं के कारण मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं।
मेरे प्रिय अध्यापक न केवल एक आदर्श शिक्षक हैं अपितु एक सच्चे देशभक्त, उत्कृष्ट कोटि के समाज सुधारक तथा सच्चरित्रता की साक्षात मूर्ति हैं। उनका उदात्त चरित्र सबको अपनी ओर आकृष्ट करता है। जैसा कि वर्जिल ने कहा है कि सदगुण में भी चार चाँद लग जाते हैं यदि वे किसी सुंदर व्यक्ति में हों, उसी के अनुरूप मेरे गुरु जी के सद्गुणों की सुगंध से सारा विद्यालय सुगंधित रहता है तथा उनके बलिष्ठ शरीर व आचार से हमें सदा प्रेरणा मिलती रहती है। सब उन्हें ‘गुरु जी’ कहते हैं।
मेरे प्रिय गुरु जी को अपने विषय का भरपूर ज्ञान है। वे हमें समय-समय पर विभिन्न पौराणिक गाथाएँ सुनाते हैं। छात्रों को सुसंस्कृत बनाने की ओर उनका विशेष प्रयत्न रहता है। वे हमें बताते हैं कि आचारः परमो धर्मः तथा इसका पालन वे स्वयं भी करते हैं। कक्षा में उनका धैर्य देखते ही बनता है। क्रोध उन्हें छू तक नहीं सका। वे सब छात्रों को समान प्रेम करते हैं। छात्रों को विषय समझ न आने पर धैर्यपूर्वक समझाते हैं।
गुरु जी विद्यार्थियों को समय पालन के लिए विशेष रूप से सतर्क रहने की प्रेरणा देते हैं। घंटा बजते ही वे कक्षा में उपस्थित हो जाते हैं तथा उनका मानना है कि समय की गति को पहचानने वाला अपने भाग्य के द्वार स्वयं खोलता है। कभी-कभी छात्र आपस में लड़ते हैं तो वे उन्हें स्नेहपूर्वक समझाते हैं कि झगड़े में समय व शक्ति व्यय करना मूर्खता है। समय बीत जाने पर मनुष्य को पछताना पड़ता है। वे हमें गीता के श्लोक सुनाते हैं और कहते हैं, ‘स्वकर्मणा तमभ्यर्थ्य सिधि विंदति मानवः’ अर्थात अपने-अपने कर्मों के अनुसार पूजा करने से ही मनुष्य को सिधि मिलती है लेकिन विद्यार्थी के लिए तो उचित शिक्षा प्राप्त करना ही पूजा है। अध्ययन ही उसका धर्म है।
गुरु जी स्वयं भी समय का पूर्ण सदुपयोग करते हैं। अपने खाली समय में वे कोई समाचार-पत्र या पत्रिका पढ़ते हैं या पुस्तकालय में बैठकर कुछ लिख रहे होते हैं। गुरु जी के बार-बार समझाने से कितने ही छात्र खाली समय का सदुपयोग करने लगे हैं तथा अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो गए हैं।
हर छात्र की व्यग्तिगत समस्याओं पर वे ध्यान देते हैं। उनका उद्देश्य केवल पाठ्यपुस्तकों का ही ज्ञान देना नहीं है अपितु वे अपने छात्रों को जीवन क्षेत्र में विजयी होने हेतु सक्षम भी बनाना चाहते हैं। वे हमें बताते हैं कि भगवान शिव जब परोपकार तथा परहित के लिए विषपान कर सकते हैं तो क्या हमे सबके सुख-दुख का ध्यान नहीं रखना-चाहिए? बालको के दुःख को वे अपना दुख समझते हैं। किसी भी छात्र का यदि पढ़ाई में ध्यान नहीं है तो वे तुरंत समझ जाते हैं कि वह किसी प्रकार के मानसिक तनाव से गुजर रहा है। अपने विद्यार्थियों के चेहरों से व उनके मन की भावनाओं को जान जाते हैं। मैं घर में भी गरु जी की इस कुशलता की प्रायः चर्चा करता रहता हूँ। कभी-कभी लगता है कि गुरु जी जितना हमें समझते हैं, शायद हम स्वयं को भी उतना नहीं जानते।
गुरु जी विभिन्न कलाओं में निपुण हैं। वे एक कुशल चित्रकार हैं। पाठ से संबंधित चित्र को श्यामपट पर इतनी कुशलता से चित्रित कर देते हैं कि सब छात्र ठगे-से रह जाते हैं। वे हमें भी चित्रकला का अभ्यास करने की प्रेरणा देते हैं। गुरु जी की लिखावट सब छात्रों के लिए उत्कृष्ट उदाहरण है। श्यामपट पर लिखे अक्षर मोती-से चमकते हैं। वे कहते हैं कि लिखावट को आकर्षक बनाने में चित्रकला का अनुपम योगदान है। इस संदर्भ में वे हमें बार-बार गांधी जी का उदाहरण देते हैं।
गुरु जी हमें समय-समय पर पर्यटन हेतु शहर से बाहर भी ले जाते हैं। कक्षा के बाहर वे हमसे मित्रवत व्यवहार करते हैं। छात्रों के साथ खाना-पीना, उठना-बैठना और खेलना उनकी विशिष्टताएँ हैं। ऐसे में जब सब अध्यापक आपस में व्यस्त होते हैं तो हमारे गुरु जी चारों ओर से छात्रों से घिरे हुए होते हैं। वे छात्रों के साथ दौड़ लगाते हैं और उत्साहपूर्वक खो-खो आदि खेल खेलते हैं। कुछ क्षण के लिए तो हम सब भूल ही जाते हैं कि वे हमारे शिक्षक हैं या मित्र! ऐसा मित्रवत स्नेह उनकी अलग ही पहचान है।
हमारी कक्षा की स्वच्छता देखते ही बनती है। गुरु जी सब छात्रों को स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रखना चाहिए तथा इसके लिए स्वयं पर ही निर्भर करना चाहिए। व्यक्ति का समाज में क्या योगदान है, इसका आभास आज हम सब छात्रों को है। इस सबका श्रेय हमारे गुरु जी को जाता है। उन्हें देखकर ‘गुरु ब्रह्मा’ श्लोक मन में गूंजने लगता है। लगता है कि गुरु ही साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। लगता है, शायद भक्तिकालीन समस्त साहित्य में ऐसे ही गुरुजनों की महिमा का वर्णन है। हमारा मन पुकार उठता है –
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो बताय॥
जीवन की सही दिशा दिखानेवाले, ज्ञान का पथ प्रदर्शित करनेवाले मेरे प्रिय अध्यापक ही मेरे सच्चे गुरु हैं।
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