Essay on Student and Discipline in Hindi विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध
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विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध Essay on Student and Discipline in Hindi
Essay on Student and Discipline in Hindi 800 Words
विद्यार्थी हो या कोई अन्य व्यक्ति, जीवन और समाज में ढंग से रहने, इसे सुव्यवस्थित ढंग से चलाने आदि के लिए सभी के वास्ते अनुशासित जीवन व्यतीत करना आवश्यक हुआ करता है। अनुशासन के अभाव में जीवन-समाज उच्छृखल हो करके विश्रृंखल एवं विघटित हो जाया करते हैं। अनुशासन के अभाव में किसी भी तरह की प्रगति एवं विकास-कार्य सम्भव नहीं हुआ करते। यदि किसी क्षेत्र में कोई प्रगति, किसी तरह का विकास हुआ भी होता है, वह भी अनुशासनहीनता के कारण धीरे-धीरे विलुप्त एवं विलीन हो कर जीवन-समाज को बंजर और अनुर्वरता का प्रतीक बना दिया करता है। इस कारण सामान्य-विशेष प्रत्येक आयु और वर्ग के लिए अनुशासन परमावश्यक हुआ करता है; पर विद्यार्थी जीवन क्योंकि भावी जीवन की बुनियाद रखने वाला हुआ करता है; इस जीवन में आदमी तरह-तरह के ज्ञान एवं विधाएँ अर्जित किया करता है; अपने जीवन को एक साँचे में ढालने का प्रयास कर रहा होता है, अनुशासन क्योंकि इस सब में परम सहायक सिद्ध हुआ करता है, उसे पक्का एवं पुख्ता भी किया जा सकता है, इस कारण विद्यार्थी और अनुशासन में एक तरह का अनिवार्य एवं सुदृढ़ रिश्ता स्वीकार किया जाता हैं।
अनु+शासन, इन दो शब्दों के मेल से ‘अनुशासन’ शब्द बना है। इसमें से ‘अनु’ उपसर्ग का अर्थ है – पश्चात, बाद में साथ आदि। ‘शासन’ का अर्थ है नियम, विधान, कानून आदि। इस प्रकार दोनों के मेल से बने अनुशासन का सामान्य एवं व्यावहारिक अर्थ हुआ करता है कि व्यक्ति जिस समय जहाँ पर हो, वहाँ के जो और जैसे भी नियम-विधान, कानून-कायदे हों, उन के अनुसार अपना आचरण एवं व्यवहार प्रदर्शित करना अनुशासन है। एक आदमी अपने घर में अपने छोटों या नौकर-चाकरों के साथ जिस तरह का व्यवहार किया करता या कर सकता है, वैसा घर के बाहर अन्य लोगों के साथ नहीं कर सकता। घर से बाहर समाज का अनुशासन वहाँ से भिन्न होता है। इसी तरह दफ्तर में आदमी को एक अलग तरह के माहौल में रहना और वहाँ के नियम-कानून का पालन करना होता है। इसी तरह मन्दिर का नियम-अनुशासन अलग होता है, बाज़ार एवं मेले का अलग हुआ करता है। ठीक इसी तरह एक छात्र जिस विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने जाता है, वहाँ उसे एक अलग तरह के माहौल में रहना पड़ता है। वहाँ का अनुशासन भी उपर्युक्त सभी स्थानों से सर्वथा भिन्न हुआ करता हे। सो व्यक्ति जिस किसी भी तरह के माहौल में हो, वहाँ के मान्य नियमों, सिद्धान्तों का पालन करना उस का कर्तव्य हो जाता है। इस कर्त्तव्य का निर्वाह करने वाला व्यक्ति ही अनुशासित एवं अनुशासन प्रिय कहलाता है।
अनुशासित व्यक्ति ही जीवन में हर कार्य करने में सफल हुआ करता है। प्रायः ऐसे देखा जाता है कि जो विद्यार्थी अपना प्रत्येक कार्य नियम एवं अनुशासन का पालन करते हुए सम्पन्न किया करते हैं, वे अन्यों से भिन्न एवं अच्छे तो माने ही जाते हैं, सभी के स्नेह-सम्मान के अधिकारी भी बन जाया करते हैं। ऐसे बन कर वे जीवन जीने की कला का सम्पूर्ण ज्ञान भी सरलता से अर्जित कर लिया करते हैं। सभी उनकी हर सम्भव सहायता के लिए तत्पर रहा करते हैं। इस से उन का किसी तरह का कार्य रुकता नहीं। एक-के-बाद-एक सफलता उनका चरण स्पर्श करती जाती है। लेकिन आज तो सभी कुछ उलटा और सामान्य के विपरीत है। अनुशासनहीनता यों तो आज समूचे जीवन-समाज का एक अपरिहार्य-सा अंग बन चुकी है; पर विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता अधिक प्रसिद्ध हो चुकी है। इस का कारण यह है कि अबोधमति छात्र चालाक लोगों के बहकावे में आकर सामान्य बातों के लिए भी आपे से बाहर होकर मार-पीट, तोड़-फोड़, आगजनी जैसे कार्य करने लगते हैं। उनकी उग्र भीड़ में मिल कर असामाजिक तत्त्व लूटपाट जैसे अनेक असामाजिक कार्य कर जाते हैं; पर नाम तो विद्यार्थियों का ही बदनाम होता है।
यों तो गिरते सामाजिक मूल्यों-मानों, गिरते शिक्षा के स्तर, शिक्षा की सब प्रकार की उद्देश्यहीनता, अन्धकारमय दिखाई देता भविष्य, राजनीति की समग्र भ्रष्टता का छात्र वर्ग में प्रवेश, दिशाहीन उबाल एवं आक्रोश आदि ने मिल कर आज के विद्यार्थी वर्ग को सब तरह से अनुशासनहीन बना दिया है। जब सामने कोई निश्चित लक्ष्य न हो, कोई गन्तव्य स्पष्ट नजर न आ रहा हो, मात्र अन्धेरे में हाथ-पैर मार कर ज्यों-त्यों आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे असम्बद्ध वर्ग के हाथ-पैर लग जाने से कुछ-न-कुछ गिर कर टूटने की, या अपने ही हाथ-पैर आदि के तुड़वा बैठने की हर सम्भावना बनी ही रहा करती है। संक्षेप में आज के विघटनशील माहौल में, निरुद्देश्य-सी शुष्क-नीरस शिक्षा-पद्धति और दिशा-हीनता भरे नेतृत्व में विद्यार्थी जीवन की अनुशासनहीनता के यही कारण हैं। यानि जैसी भारत सरकार है, जैसा सारा समाज है, वैसा ही विद्यार्थी वर्ग भी नितान्त अनुशासनहीन है।
इस अनुशासनहीनता से विद्यार्थी वर्ग का छुटकारा तभी संभव है कि जब पहले तो उसे सही दिशा दे पाने वाला योग्य नेतत्व मिले, फिर शिक्षा का व्यावहारिक जीवन की आवश्यकताओं से जोड़ कर सरस एवं उद्देश्यपूर्ण बनाया जाए। तीसरे विद्यार्थी जीवन के आस-पास सम्पूर्ण अनुशासन एवं आत्मविश्वास पूर्ण महौल बनाया जाए। तभी छात्र वर्ग एवं देश-जाति का भी हित-साधन संभव हो सकता है।