Essay on Civil Servants in India in Hindi भारत में सिविल सेवकों पर निबंध
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Essay on Civil Servants in India in Hindi
भारत में तटस्थ और निष्पक्ष सिविल सेवकों की आवश्यकता
स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश शासनकाल के समय, भारत में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण सेवा के रूप में जानी जाती थी। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सरकार को देश की एकता और अखंडता को बनाये रखने तथा राष्ट्र के विकास और स्थायित्व के लिए सिविल सेवाओं की आवश्यकता हुई।
इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर संविधान में अनुच्छेद 312 के तहत नियम बनाये गए। इसके तहत भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया गया।
सिविल सेवकों का क्या कार्य होता है? संविधान के अनुच्छेद 53 और 154 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि सिविल सेवक राज्यों में राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग में सहयोग प्रदान करेगी। संविधान के अनुच्छेद 74 और 163 के तहत, राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल ऐसी शक्तियों का प्रयोग केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के लिए कर सकते हैं। इसी कारण से सिविल सेवाएं और उनके आधिकारिक प्रयोग मंत्रियों द्वारा निर्देशित होते हैं। इसके विषय में किसी के भी मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। समस्या तब उत्पन्न होती है जब मंत्रीगण सिविल सेवकों का प्रयोग राज्य की सेवा में करने की अपेक्षा निजी सेवा के रूप में करने लगते हैं। लोकतांत्रिक सरकार एक कानून पद्धति के तहत होती है। इन्हें कानून और नियम का प्रबंध बिना किसी पूर्वाग्रह और बिना किसी अनुचित पक्षपात के, करना होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून, नियम अथवा सिद्धांत के संदर्भ में किसी प्रकार का पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता है। फिर भी ऐसा क्यों है कि हमारे पास मजबूत सिविल सेवा होते हुए भी यह सिर्फ सैद्धांतिक ही प्रतीत होती है? इसके लिए कानून और मंत्रियों के आचरण और पक्षपातपूर्ण कार्य उत्तरदायी है। विकास कार्यों में सिविल सेवाओं की कमी हो रही है और राजनीतिज्ञ मनमानी ढंग से नीतियों का निर्धारण कर रहे हैं।
सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत पसंद और नापंसद की शासन पद्धति उत्पन्न होती है। जब तक लोग राजनीति में राजनीतिज्ञों की अस्थायी शक्ति में उलझे रहेंगे, तब तक उनसे राज्य के साथ अच्छा व्यवहार करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
राजनीतिज्ञों की हाँ में हाँ मिलाकर जब तक लोग उनके कृपापात्र बनते रहेंगे तब तक वे सदैव पीछे रहेंगे। राजनीतिज्ञ कुछ भी कृपापूर्वक नहीं देते हैं। वे सिर्फ रिश्वत देते हैं। इसका दूसरा पहलू भ्रष्टाचार और पक्षपातपूर्ण व्यवहार को जन्म देता है। भ्रष्ट शासन प्रणाली यहाँ पर अपने से निम्न स्तर के कर्मचारियों के साथ सुबह से लेकर शाम तक अपने अभद्रतापूर्ण व्यवहार – जैसे तानाशाही, प्रताड़ित करना, अपमानित करना आदि से विकास को अवरुद्ध कर देते हैं, तथा सिविल सेवकों को पूर्ण रूप से हतोत्साहित कर देती हैं। इसलिए वे भी अंधभक्ति, अप्रभावी और भ्रष्ट हो जाते हैं। इनकी अंधभक्ति हमारे राष्ट्र की प्रभावोत्पादकता को अत्यधिक क्षति पहुंचाती है। यह वर्ग प्रबंध व्यवस्था को व्यापक स्तर पर भ्रष्ट बना देता है। और यदि कहीं पर कोई उच्च प्रबंध व्यवस्था देखने को मिलती है तो वह किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
सिविल सेवक नियमों का क्रियान्वयन और उनका पालन करते हैं। यदि नियम विकास कार्य में बाधक होते हैं तो नीति निर्माता अर्थात् चुने गये प्रतिनिधि, बनायी गयीं नीतियों अथवा नियमों में आवश्यक परिवर्तन करके उसे सुयोग्य बनाते हैं। ठीक इसी समय सिविल सेवकों को असम्मति प्राप्त हो जाती है, और इससे अकुशलता और भ्रष्टाचार के युग्म दरवाजे खुल जाते हैं। भारत को निश्चित रूप से सिविल सेवा में सुधार करना होगा। तथा सरदार पटेल के द्वारा संजोए गये सपनें और जिस तरह से उन्होंने सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्य किये और जिसकी पुनरावृत्ति गुजरात में नहीं हो सकी फिर कभी उसे पूरा करना होगा।
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