Essay on Co Education in Hindi सहशिक्षा पर निबंध
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Essay on Co Education in Hindi
सहशिक्षा एक ओर विकास और प्रगति के लिये आवश्यक है, तो दूसरी ओर उनका प्रतीक भी। सहशिक्षा को न तो नकारा जाना चाहिए और न इससे मुँह मोड़ना चाहिए। इसे सभी स्तरों पर लागू किया जाना चाहिए। देश व समाज की प्रगति और उन्नति के लिए स्त्री तथा पुरुषों दोनों का पूर्ण शिक्षित होना आवश्यक है। देश की आधी जनसंख्या स्त्रियों और महिलाओं की है। इसमें बालिकाएँ और कुमारियाँ भी शामिल हैं। यदि इनका थोड़ा-सा प्रतिशत भी निरक्षर और अनपढ़ रहता है तो देश का विकास रुक जायेगा। जीवन के कुरूक्षेत्र में स्त्री और पुरुष दोनों को कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे बढ़ना है और सफलता प्राप्त करनी है। दोनों के परस्पर सहयोग के बगैर कुछ भी संभव नहीं है। अत: यह आवश्यक है कि इस सहयोग का प्रारंभ बचपन से ही किया जाए। इसके लिए पाठशाला से अच्छा स्थान कोई और दूसरा नहीं हो सकता। अत: यह वांछनीय है कि पाठशाला से सहशिक्षा प्रारंभ हो और शिक्षा तथा प्रशिक्षण के उच्चतम स्तर तक जारी रहे। स्त्री और पुरुषों की समानता और सहभागिता के लिए यह अनिवार्य है। इसका विरोध करना बेकार है।
सहशिक्षा का अर्थ है लड़कों तथा लड़कियों की एक साथ, एक ही स्थान पर शिक्षा उनके लिए अलग विद्यालयों, पाठशालाओं आदि का न होना। शुरू में तो इसका विरोध भी हुआ। विरोधियों ने तर्क दिया कि इससे ध्यान बंटेगा, व्यवधान बढ़ेगा और विद्यार्थी अनुशासनहीन हो जाएँगे। यौन-आकर्षण से अराजकता और निरंकुशता बढ़ेगी। लेकिन ये अवधारणाएँ समय और प्रयोग की कसौटी पर खरी नहीं उतरी हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि सहशिक्षा की कोई कमियाँ या सीमाएँ नहीं हैं। इसकी सीमाएं आवश्यक हैं परन्तु न इतनी अधिक और न इतनी गंभीर। सारे विश्व में आज सहशिक्षा का प्रचलन है क्योंकि इसके अनेक लाभ हैं।
सहशिक्षा का प्रारंभ बहुत पुराना नहीं हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों पश्चात् इसका प्रचलन हुआ है। यह शिक्षा प्रणाली और पद्धति विदेशी देन है। प्राचीन भारत में छात्र और छात्राएँ अलग-अलग रहकर गुरुकुल में शिक्षा पाते थे। विद्यार्थी जीवन में अन्य बातों के अतिरिक्त संयम, अनुशासन और ब्रहाचर्य पर बहुत बल दिया जाता था। चरित्रनिर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं। चरित्र और आचरण की परिभाषा में भी परिवर्तन आ गया है। आर्थिक क्षेत्र में स्त्री और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हैं। जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएँ आगे आ रही हैं। किसी भी स्तर पर किसी भी तरह वे पुरुषों से पीछे नहीं है। प्रेम और अन्तर्जातीय विवाह लोकप्रिय हो रहे हैं। स्त्री और पुरुष खुले आम एक दूसरे से मिलते हैं और एक साथ कार्य करते हैं।
समाज में एक नया खुलापन, उदारता और सहिष्णुता के भाव उत्पन्न हुए हैं। सहशिक्षा से संसाधनों की बड़ी बचत होती है। दोहरा खर्च टल जाता है। अलगअलग स्कूल आदि खोलने से दुगना स्टाफ चाहिये और इसी तरह अन्य दुगने खर्चे तथा व्यवस्था। भारत जैसा गरीब देश इसे सहन नहीं कर सकता। विकसित देशों में भी आर्थिक दृष्टि से सहशिक्षा को ही प्राथमिकता दी जाती है। कई गाँवों, कस्बों आदि में छात्राओं की पर्याप्त संख्या नहीं होती। उनके लिए अलग से स्कूलों की व्यवस्था करना संभव नहीं है। साथ ही उन्हें शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता। अतः सहशिक्षा आज की हमारी जरूरत भी है।
सहशिक्षा के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी कई लाभ हैं। छात्र और छात्राओं को शुरू से ही एक दूसरे को समझने तथा पहचानने को सुयोग मिल जाता है। वे एक दूसरे का आदर करना सीख जाते हैं। एक दूसरे की भावनाओं और आवश्यकताओं को सरलता से समझने लगते हैं। आगे चलकर भी जीवन में एक दूसरे के साथ उन्हें पति-पत्नी, सहयोगी आदि रूपों में जीवन व्यतीत करना है। तो फिर क्यों न शुरु से ही उन्हें साथ रहने का अवसर प्रदान किया जाए। इससे सहयोग और सहकार की भावना बढ़ती है।
सहशिक्षा, प्रेम-विवाह को भी प्रोत्साहित करती है। छात्र-छात्राएँ अपनी इच्छानुसार और समझदारी के साथ अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं। इससे उन्हें जो संतोष और सुख मिलता है तथा समझदारी की भावना बढ़ती है, वह प्रशंसा के योग्य है। प्राचीन काल में हमारे यहाँ स्वयंवर की व्यवस्था थी। इसमें लड़की अपने पति का चुनाव अपनी इच्छा से कर पाती थी। इस स्वयंवर परम्परा का विस्तार और विकास आधुनिक प्रेम-विवाहों में देखा जा सकता है। प्रेम-विवाह से दहेजप्रथा, अनमेल विवाह और बालविवाह जैसी कुरीतियों से भी सरलता से छुटकारा पाया जा सकता है।
आधुनिक जीवन में यौन शिक्षा का महत्त्व बढ़ गया है। बहुत सी बीमारियों और समस्याओं के निराकरण के लिए यह अनिवार्य है। यौनशिक्षा के माध्यम से एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से बचने में सहायता मिलती है। इस शिक्षा में यौनशिक्षा को भी अच्छी प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है। स्त्रियों को शोषण से बचाने और उनके सशक्तिकरण की दृष्टि से भी सहशिक्षा कारगर सिद्ध हो रही है।
प्राथमिक स्तर पर तो छात्र-छात्राएँ बालक-बालिकाएँ होते हैं। वे मासूम होते हैं। अत: उन्हें एक साथ शिक्षा देने में किसी भी तरह की हानि नहीं होती। उच्च स्तर पर विद्यार्थी बहुत समझदार और योग्य हो जाते हैं। वे अपना भला-बुरा अच्छी प्रकार समझने लगते हैं। अत: इस स्तर पर भी कहीं कोई खतरा नहीं दिखाई देता। विद्यालय स्तर पर जरूर कुछ शंकाएँ व्यक्त की जाती हैं। परन्तु यदि कुछ सावधानियाँ बरती जाएँ और योग्य अध्यापकों का पथप्रदर्शन मिलता रहे तो वहां भी इन शंकाओं का कोई महत्त्व नहीं रह जाता। अत: सहशिक्षा हर स्तर पर अपनाई जानी चाहिए।
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Essay on Technical Education in Hindi
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