Essay on Fashion in Hindi फैशन पर निबंध
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Essay on Fashion in Hindi
फैशन का अपना एक अलग और विस्तृत संसार है। इस ससार में नवीन परिवर्तन होते रहते हैं। मनुष्य एक फैशनेबल और फैशन प्रिय प्राणी है। वह नवीनता और परिवर्तन में विश्वास करता है। एक जैसी वस्तुओं को वह बार-बार प्रयोग नहीं करना चाहता। जीवन के हर क्षेत्र में उसे नई-नई रंगीन और आकर्षक वस्तुएं चाहिएं। नवीनता का यह मोह हमारी सभ्यता और संस्कृति के विकास में बहुत हद तक सहायक रहा है। जीवन में विविधता, अनेकरूपता और आकर्षण के मूल में यह फैशन-प्रियता बढ़ रही है। एक सीमा तक फैशन जीवन के लिए उपयोगी और वरदान है।
फैशन का प्रभाव महानगरों और शहरों में अधिक होता है। यहां विभिन्न भाषा बोलने वाले अलग-अलग प्रान्तों के लोग, विविध जीवन शैलियों के साथ रहते हैं और एक दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं। स्त्री और पुरुष एक साथ एक ही स्थान पर काम करते हैं, क्लबों में आते जाते हैं। इससे पारस्परिक विचारों का लेनदेन बढ़ता है और परिणाम स्वरूप फैशन का भी। मनुष्य स्वभाव से नकल करने वाला प्राणी है। इस सामाजिक मेलजोल से इस नकल की प्रवृति को बढ़ावा मिलता है और फैशन को फैलाने में समय नहीं लगता। इसके विपरीत गांवों में इस तरह न तो खुलापन होता है और न ही आर्थिक खुशहाली। गांवों में तो लोग गरीब होते हैं और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति भी बड़ी कठिनाई से कर पाते हैं। वे तो फैशन की सोच भी नहीं सकते। विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सहशिक्षा से भी फैशन को बढ़ावा और प्रेरणा मिलती है। छात्र और छात्राएं स्मार्ट दिखना चाहते हैं और रहन-सहन में नित नवीन प्रयोग करते हैं।
फैशन को फैलाने में दूरदर्शन और चलचित्रों का बहुत बड़ा हाथ रहता है। फिल्मों में हीरो या हीरोइन के ड्रेस, व्यवहार आदि का युवा वर्ग पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हीरो ने जिस स्टाइल के कपड़े पहने होते हैं, या जिस अंदाज और शैली में वह बात करता है, युवा पुरुष उन्हें अपनाने का प्रयत्न करते हैं। यही बात युवतियों की भी है। वे भी फिल्म में नायिका की हर बात में नकल करती है और उस जैसा दिखने का प्रयत्न करती हैं। हर युवक और युवती लेटेस्ट फैशन में दिखना और रहना चाहता है। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
फैशनपरस्ती ने एक बहुत बड़े उद्योग-धंधे व व्यापार का रूप ले लिया है। इसमें अपार धन लगा हुआ है और हजारों आदमी इस में लगे हुए हैं। वे दिन-रात नये-नये फैशन की खोज करने में लगे रहते हैं। उनका उद्देश्य लोगों की फैशन की अतृप्त प्यास को और बढ़ाना तथा उसका लाभ लेना है। बड़ी-बड़ी कंपनियां इस में लगी हुई हैं और आये दिन नये फैशन के वस्त्र, जूते, आभूषण और दूसरे नित्य उपयोग की वस्तुएं वे बाजार में उतारते रहते हैं। परिणाम यह होता है कि कभी साड़ियां फैशन में होती हैं तो कभी सलवार-कमीज और कभी कोटी-स्कर्ट। एक समय था जब पुरूष डबल कफ के कमीज ही पहनता था। यह फैशन में था परन्तु आज इसका कहीं नामो-निशान ही नहीं है। इसी तरह उस समय चांदी के बटनों का रिवाज था। चांदी के बटन ही कुर्ती और कमीजों में लगाए जाते थे। कुछ समय पहले बैल बॉटम का रिवाज फैशन में था और आज वह गायब है। जब राजकपूर की आवारा फिल्म आई तो लोगों ने, विशेषकर युवा लोगों ने ऊंची और चौड़ी मोहरी की पतलुन पहननी शुरू कर दी थी और यह एक फैशन बन गया। आज सोने की जगह प्लाटिनम फैशन में आ रहा है। खासकर महिलाएं इसे व्यापक स्तर पर अपना रही हैं। आजकल पुरुष सुन्दर और आकर्षक दिखने की होड़ में लगा हुआ है। वह तरह-तरह के शैम्पू, इत्र और प्रसाधन की नई-नई वस्तुएं प्रयोग करने में लगा है। बालों को रंगने में भी वह बहुत रुचि लेने लगा है।
फैशन को फैलाने में पत्र-पत्रिकाओं का विशेष स्थान है। कुछ पत्रिकाएं तो फैशन को ही समर्पित दिखाई देती हैं। उनके हर अंक में फैशन पर नई-नई आकर्षक सामग्री होती है। नई-नई शैली के वस्त्रों, जूतों, हेयर स्टाइलों आदि के चित्र होते हैं। उनमें फैशन सम्बन्धी विज्ञापन भी काफी मात्रा में मिलते हैं। अतः लोगों को नये फैशन के अनुसार वस्तुएं प्राप्त करने में सुविधा रहती है। फैशन महामारी की तरह है जो बड़ी तेजी से फैलता है और प्रत्येक लड़के-लड़की को प्रभावित करता है। जीवन के हर क्षेत्र में इसको देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए संगीत को ही ले लें। कभी पॉप संगीत फैशन में है, तो कभी जाज।
फैशन शोज, सौन्दर्य प्रतियोगिताएं और तरह-तरह के वस्त्रों, आभूषणों, कारों आदि की प्रदर्शनियां समय-समय पर होती रहती हैं। इससे फैशन तेजी से बदलते रहते हैं। कुछ पुराने पड़ जाते हैं तो कुछ नए आ जाते हैं।
फैशन एक सीमा में तो अच्छे हैं परन्तु एक सीमा के बाद ये अभिशाप बन जाते हैं। इससे उत्तेजना फैलती है, समय और धन नष्ट होता है और अपराधों को बढ़ावा मिलता है। फैशन के कारण मर्यादाएं भंग होती हैं और अनुशासनहीनता बढ़ती है। फैशन के कारण उपभोक्तावाद और भौतिकतावाद को भी बढ़ावा मिलता है। व्यक्ति बिना परिश्रम के ही एकदम धनी, सम्पन्न और फैशनेबल हो जाना चाहता है। इन महत्त्वकांक्षाओं के चलते भ्रष्टाचार असाधारण रूप से बढ़ रहा है। और जीवन मूल्यों का ह्रास हो रहा है। फैशन के चक्कर में पड़कर हमें नैतिकता और जीवनमूल्यों को नहीं भुला देना चाहिए। फैशन तो पल भर के लिए है, और स्थाई है, वे हैं-हमारा चरित्र, नैतिकता और बौद्धिक विकास।
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