Essay on Indiscipline in Hindi अनुशासनहीनता पर निबंध
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Essay on Indiscipline in Hindi
आज जरा अपने चारों ओर की गतिविधियों पर दृष्टिपात करें तो पता चलेगा कि जीवन का प्रत्येक क्षेत्र अनुशासनहीनता के प्रभाव में आ चुका है। घर, विद्यालय में देखें, सन्तान अपने माता-पिता के कहने में नहीं है। बहुत कम घर होंगे जहां माता-पिता अपने बच्चों को पारिवारिक अनुशासन में रख पाते होंगे। अन्यथा आज को सन्तान अपने तरीके से जीना चाहती है। वह माता-पिता, दादा-दादी के अनुभवों से लाभ उठाना नहीं चाहती। वह सोचती है कि उसके विचार ठीक हैं। माता-पिता तो पुराने जमाने के लोग हैं। विद्यालयों और महाविद्यालयों में परिस्थितियां घर से भी बुरी हैं। विद्यालय एवं महाविद्यालय के नियमो को ताक पर रख कर छात्र प्रायः अपनी मनमानी करते हैं। छोटी सी बात पर हड़ताल और तोड़-फोड़ शुरू कर देते हैं और इस में गौरव का अनुभव करते हैं। यातायात के नियमों का भी यही हाल है। आजकल का युवा वर्ग इन नियमों की धज्जियां उड़ाता है और मनमाने तरीके से अपने वाहन चलाता है।
वाहन-चालक के लिए आवश्यक लाइसैंस आजकल आवश्यक नहीं समझा जाता। यह तो एक मजाक-सा बन गया है। बाजारों में और सड़कों पर जितने ट्रैक्टर-ट्राली चलते हैं, उनके चालकों में 90 प्रतिशत के पास लाइसैंस नहीं होता, मोटर साइकिल, स्कूटर, मोपेड, यहां तक कि कार चलाने वाले नौजवान, नवयुवतियां और 18 वर्ष की आयु से कम के बच्चे भी लाइसैंस के नियम का मुंह चिढ़ाते हुए तेजी से भागते फिरते हैं।
अब बाजारों और दुकानों, भवनों की बात ले लीजिए। बाजार चौड़े हैं, परन्तु दुकानों के आगे सरकारी सड़क के कुछ भाग पर दुकानदार तख्तपोश अथवा पक्का निर्माण करके रास्ते को तंग कर देते हैं। फलस्वरूप भीड़ बढ़ जाती है और यातायात जाम हो जाता है। इसके साथ ही बाज़ार के चौराहों पर भी यही हाल प्रतिदिन देखने को मिलता है। चारोहों पर बत्तियां लगी हुई है, परन्तु इनकी चिन्ता कौन करता है। अवैध तरीके से भवनों का निर्माण हो जाता है, कोई पूछने वाला नहीं।
बिजली की चोरी तो एक आम बात हो गई है। किसान और कारखानेदार धड़ल्ले से बिजली चोरी करते हैं। कभी-कभी थोड़ी कार्यवाही होती है, फिर सभी सो जाते हैं। यहां तक कि बिजली बोर्ड के कर्मचारी बिजली की चोरी करते हैं और जनसाधारण को भी सिखाते हैं कि किस प्रकार बिजली बोर्ड की आंखों में धूल झोंक कर बिजली के बिलों में कमी की जा सकती है।
आज युवा और प्रौढ़ वर्ग का अनुभव नौकरी पाने के सम्बन्ध में भी बहुत कड़वा है। दिखाने के लिए तो आजकल लगभग सभी विभागों में आवेदन-पत्र खानेदार बन गए हैं और कम्प्यूटर की सहायता से वरिष्ठता-क्रम निश्चित किया जाता है, परन्तु जब बात इन्सान के हाथ आती है, तो नियमों को तिलांजली दे दी जाती है। उस समय नाम या दाम का जादू सिर चढ़कर बोलता है। साक्षात्कार में यह नहीं पूछा जाता कि तुम क्या जानते हो, केवल यह पूछा जाता है कि तुम किसको जानते हो अथवा कितनी सेवा कर सकते हो।
आजकल शिक्षा भी एक प्रकार का व्यवसाय बन गई है। अध्यापक अपनी योग्यता और आदर्श-दोनों का महत्त्व भूल चुके हैं। वे विद्यार्थियों से सम्बन्धों में उचित दूरी नहीं रखते, या फिर वे विद्यार्थियों को मूर्ख, गैर-जिम्मेवार समझते हैं। और उनके साथ अनुचित व्यवहार करते हैं।
पुलिस में भ्रष्टाचार यातायात में अनुशासनहीनता का मूल कारण है। जनता की सदा से यह प्रवृत्ति रही है कि वह उचित, अनुचित विधि से अपना काम करवाना चाहती है, परन्तु कर्तव्य तो उन संस्थानों का है जिन पर कानून लागू करने का उत्तरदायित्व है। पुलिस और न्यायपालिका ही दो संस्थाएं हैं जो कानून लागू करती हैं। पुलिस के कर्मचारी चौराहों पर, विशेष स्थानों पर खड़े रहते हैं। लोग लाल बत्ती होने पर भी वाहन दौड़ा कर ले जाते हैं, पुलिस वाले खड़े देखते रहते हैं। किसी छोटे बच्चे को लाइसैंस के बिना पकड़ लेते हैं और पैसे लेकर छोड़ देते हैं।
अनुशासनहीनता के कारणों पर विचार करने पर हमें पता चलता है कि घर और शिक्षा संस्थानों में अनुशासनहीनता का कारण एक तो अध्यापक वर्ग का अपने आदर्श से, अपनी इष्ट योग्यता से गिरना है। दूसरा कारण है टी. वी. के धारावाहिक और सिनेमा की फिल्में। इस इलैक्ट्रानिक मीडिया ने युवावर्ग के विचारों में अभूतपूर्व क्रान्ति पैदा कर दी है। आज का युवावर्ग यह समझने की कोशिश नहीं करता कि इन कथाओं का वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं।
यदि देखा जाए तो ज्ञात होगा कि अनुशासनहीनता का मूल कारण आज का राजनेता है। अपराध जगत में जितने भी लोग लिप्त हैं, उनमें से 70 प्रतिशत की पहुंच किसी न किसी एम. एल. ए. या एम. पी. तक होती है। पुलिस अपराधी को पकड़ती है, तो राजनेता के एक फ़ोन करने पर उसे छोड़ना पड़ता है। राजनैतिक दलों में कोई भी ऐसा नहीं है जो देशहित की बात सोचता हो। सभी अपने भाषणों में दुहाई कर्तव्य और देश भक्ति आदि की देते हैं, परन्तु लक्ष्य सभी को एक ही है – सत्ता हथियाना।
वस्तुतः यह निष्कर्ष निकलता है कि गंगोत्री में पवित्रता होनी चाहिए अर्थात् प्रशासन तंत्र में आचरण की शुद्धि होनी अनिवार्य है। कानून लागू करने में किसी भी राजनेता का दखल न हो। जब तक सत्ता का दुरुपयोग और दण्ड में देरी अथवा हेरा-फेरी नहीं रुकती तब तक सही अर्थों में अनुशासन और शान्ति असंभव है। जब तक किसी राष्ट्र में अनुशासन नहीं पनपता, तब तक वह तरक्की नहीं कर सकता।
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