Essay on Third World War in Hindi तृतीय विश्व युद्ध पर निबंध

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Essay on Third World War in Hindi

अमेरिका, तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी में

साम्राज्यवाद का दौर खत्म हुए एक लम्बा अरसा बीत चुका हैं और आज स्थिति यह है कि सभी देश स्वयं में संप्रभुता संपन्न हैं। कोई देश किसी अन्य देश का उपनिवेश नहीं है। किन्तु वैश्विक व्यवस्था के रूप में उपनिवेशवाद की समाप्ति के साथ, और उसके बाद भी आज विश्व के कुछ देश अन्य देशों की प्राकृतिक सम्पदा अथवा वहाँ के संसाधनों पर या अपनी कुटिल दृष्टि जमाए हुए हैं। ये देश सदैव इस प्रकार की रणनीतियाँ बनाने में व्यस्त रहते हैं, जिनका उपयोग किसी अन्य देश की आर्थिक शोषण करने के लिए किया जा सके। जैसे आशय यह है कि आज सैद्धान्तिक रूप से उपनिवेशवाद विश्व के फलक से भले ही समाप्त हो गया हो किन्तु मानसिकता के स्तर पर वह आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है। अमेरिका जैसे देशों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।

इस विकट स्थिति का अवलोकन करने के उपरांत क्या आज हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विश्व एक तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा है। हम इसे भलीभांति जानते और समझते हैं कि पहले हो चुके दोनों विश्व-युद्धों के मूल में भी यही उपनिवेशवादी मानसिकता विद्यमान थी। अगर हम इतिहास पर एक दृष्टि डालें तो इस कारण को सहज ही पहचान जाएगें। ब्रिटेन आदि देशों के हित जब अन्य साम्राज्यवादी देशों से टकराए तब विश्व में युद्ध की स्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। अनायास थोपे गए इस युद्ध में लाखों जाने गईं।

आज शीतयुद्ध की समाप्ति हुए एक दशक से ज्यादा का समय गुजर गया है। विश्व का पलड़ा एक ओर झुक गया है। वस्तुत: अमेरिका आज हमें जो इतना शक्तिशाली देश दिखाई पड़ता है, उसने स्वयं को यहाँ तक पहुंचाने के लिए अन्य देशों को युद्धों में उलझाए रखा और उन देशों को अपने देश में निर्मित हथियारों को बेचा। हथियारों को अत्यंत व्यापक स्तर पर निर्मित करने वाला देश, मात्र अपने तुच्छ स्वार्थों को पूरा करने के लिए युद्ध की आग भड़काता है – यही अमेरिका की वास्तविकता है।

आज के समय को ‘औद्योगिकता’ का समय कहा जाता है। किन्तु बड़ी बड़ी कम्पनियों में बनने वाले दैनिक उपयोग की वस्तुएँ ही नहीं, अपितु बड़े पैमाने पर बनने वाले हथियार और गोला-बारूद आदि भी आज की वास्तविकता है। प्रायः हमने लोगों को यह कहते देखते है कि आज हम शांति की स्थापना की ओर बढ़ रहे हैं, आज विश्व में लोकतंत्र के रूप में एक शांतिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना का सक्रिय प्रयास किया जा रहा है। किन्तु इसी के साथ हम निरन्तर प्रकट रूप से देखते हैं कि भांति-भांति के अत्यंत विनाशकारी हथियारों का भी बडे पैमाने पर निर्माण किया जा रहा है। इस विडम्बनापूर्ण स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि एक ओर जहाँ शांति की ओर निरन्तर आगे बढ़ने की बात की जा रही है वहीं दूसरी ओर विनाशकारी हथियारों का भी निर्माण किया जा रहा है।

वस्तुत: यह हमारे समय की सर्वाधिक प्रमुख विसंगत परिस्थिति ही है, जिसे उत्पन्न करने का कार्य अमेरिका सरीखे शोषक देशों ने किया है। ये एक भिन्न प्रकार से उपनिवेश बना रहे हैं। अर्थात् आज अमेरिका जिन आर्थक नीतियों को वैश्विक फलक पर लाद रहा है, वह मूलतः उपनिवेशी करण की ही प्रक्रिया का एक अंग है। अफगानिस्तान, इराक आदि देशों का उदाहरण हमारे सामने है। इसी के साथ लैटिन अमेरिका जैसे देश भी आज स्वयं को अमेरिका के वर्चस्व से मुक्त करने की चेष्टा कर रहे हैं।

सच यह है कि अमेरिका शेष विश्व का आर्थिक और संसाधनगत शोषण करना चाहता है। इसके लिए वह हर प्रकार का हथकण्डा अपना सकता है। कभी कूटनीति और हल नीति का उपयोग करता है तो कभी प्रत्यक्ष रूप से किसी देश के विरूद्ध सैन्य कार्यवाही को संचालित करता है। यहाँ तक कि दो देशों को परस्पर संघर्ष में उलझाकर वह उन दोनों देशों का शोषण करता है। इधर कुछेक वर्षों में उसकी इन गतिविधियों में कुछ ज्यादा ही तेजी देखी गयी है। इससे यह आभास होता है कि विश्व जल्दी ही कहीं तीसरे विनाशकारी विश्व युद्ध की चपेट में न आ जाए।

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