Essay on Untouchability in Hindi अस्पृश्यता पर निबंध

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Essay on Untouchability in Hindi

अस्पृश्यता और भारतीय समाज

अस्पृश्यता का अर्थ है छुआछूत का भेद-भाव। भारतीय समाज में छुआछूत और भेद-भाव की परंपरा कब से जुड़ी, इसके बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। वैसे तो वैदिक काल में इस तरह की परंपरा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। व्यक्ति अपने कर्म के द्वारा पहचाना जाता था। यदि निम्न जाति में उत्पन्न व्यक्ति उच्च अथवा अच्छे कर्म करने लगता था तो उसे उच्च जाति का मान लिया जाता था। इसी तरह अगर उच्च कुल में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति निम्न कर्म करता था तो उसे नीच मान लिया जाता था। लेकिन आगे चलकर यह सब जन्म से ही माना जाने लगा। व्यक्ति चाहे जिस तरह का कार्य करे, अगर वह उच्च कल के उत्पन्न हुआ है तो वह उच्च ही रहेगा। मध्यकाल तक यह जातिभावना इतनी कट्टर हो गई कि सामान्य और निम्न कर्म में लगे लोग जीवों पर कथित उच्च वर्गों की उपेक्षा तथा अवमानना का अधिकाधिक शिकार होने लगे। ऊँच-नीच तथा छुआछूत की यह भावना प्रबल होती गई।

इस प्रकार की कट्टरता के फलस्वरुप सबसे पहले कुछ मत का उदय हुआ। गौतम बुद्ध ने सत्य-अहिंसा, प्रेम, भाईचारा और जीवों पर दया आदि के आधार पर एक जाति वर्ग-विहीन समाज की रचना करने का प्रयास किया। इस काम में उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली। जैन मत के उदय ने यद्यपि समता, समभाव और जीव-दया का प्रचार प्रसार किया। लेकिन इसके द्वारा वर्ग-जाति-विहीनता के सिद्धांत को अधिक प्रश्रय न मिल सका। अस्पृश्य कही जाने वाली जातियों को भारतीय समाज में जो उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक व्यवहार मिलता था उसी के परिणाम स्वरुप मध्यकाल में इस्लाम धर्म को भारत में तेजी से फैलने का अवसर मिला। आधुनिक समय में इसाई धर्म का प्रचार-प्रसार इन्ही सब वजह से बहुत तेजी से हो रहा है। आज भी कई जगह जो सामूहिक धर्मांतरण की खबर मिलती है, उसका कारण हिंदू समाज में फैली अस्पृश्यता की बुराई ही है। अस्पृश्यता एक ऐसा रोग है जो केवल हिंदू धर्म में ही देखने को मिलता है। इससे खिन्न होकर डॉ भीमराव अंबेडकर जैसे विद्वान ने भी बौद्ध मत में दीक्षित होने का फैसला किया। इन सब बातों का यही अर्थ है कि अस्पृश्यता ने भारतीय समाज का अहित किया है। अस्पृश्यता के कारण समाज का एक वर्ग पूरी तरह से समाज से अलग कर दिया जाता है, ऊँची जाति के लोग उनके हाथ का छुआ पानी तक पीना भी पसंद नहीं करते हैं। अस्पृश्यता भारतीय समाज में फैली ऐसी भयंकर बीमारी हैं जिसे पूरी तरह से दूर किया जाना जरूरी हो गया है।

जिस समय महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन चला रहे थे, उसी समय अंग्रेज भारतीय समाज में फूट डालने के उद्देश्य से निम्न जातियों के लिए अलग से कुछ सीट निर्धारित करने का प्रयास किया, जिसका महात्मा गांधी ने बहुत विरोध किया तथा उन्होंने अछूतोंद्धार आंदोलन भी चलाया। उन्होंने अछूत कहे जाने वाले लोगों को ‘हरिजन’ कहकर संबोधित किया। भारतीय समाज पर इस आंदोलन का गहरा असर पड़ा। बाद में जब देश स्वतंत्र हुआ उस समय भारतीय संविधान में एक अलग धारा का प्रावधान किया गया, ‘अस्पृश्यता निवारण’। इसके अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि सार्वजनिक स्थलों, मनोरंजन स्थलों मंदिरों इत्यादि जगहों पर निम्न तथा अस्पृश्य समझे जाने वाले लोग बिना किसी भेद भाव के जा सकेंगे। उनको वहां जाने से रोकना कानूनन जुर्म होगा। इन्ही सब प्रयासों के फलस्वरुप आज छुआछूत की भावना में कमी आई है लेकिन भारतीय समाज में फैली इस बुराई को जड़ से निकालना बहुत कठिन है। केवल कानून बना देने से ही किसी समस्या का अंत हो जाता तो कितना आसान होता। इसके लिए सामाजिक स्तर पर बहुत बड़े प्रयास की आवश्यकता पड़ती है, जो आज की संकीर्ण राजनीति में संभव नहीं दिखता। आज सभी राजनीतिक दल केवल अपने वोट बैंक के चक्कर में पड़कर जिस तरह समाज में फूट डाल रहे हैं, उससे यह नहीं प्रतीत होता है कि भारतीय समाज में फैली इस बुराई का अंत होगा। यहां तक कि ‘मण्डल आयोग’ लाकर वी पी सिंह ने भारतीय समाज को दो वर्गों में बाँट दिया। वहीं इसका उपयोग कांशीराम और मायावती ने अपने स्वार्थ के लिए करके हरिजनों को अपना वोट-बैंक बना लिया है। मायावती तो शुरू में ऊंची जातियों के खिलाफ जहर उगलती रहती थी लेकिन अब उनका रुख कुछ नरम हुआ है।

भारतीय समाज प्रारंभ से ही बहुत उदार रहा है। सुकर्म करने वाले हर जाति वर्ग के लोगों को इसने अपनाया है। जगजीवन राम तथा डॉ भीमराव अंबेडकर का उदाहरण हमारे सामने है जिन्हें, समाज में महत्वपूर्ण स्थान मिला। फिर जिस तरह से भारतीय समाज एकीकरण, मानवीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है, यदि कुछ निहित स्वार्थी तत्व के लोग केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए बुझी चिंगारियों को हवा देने से बाज आएँ तो अस्पृश्यता की समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाएगा। वास्तव में एक बार फिर से कर्म को ही प्रधानता देने की आवश्यकता है। अगर ऐसा हुआ तो भारतीय समाज फिर से पहले की तरह की ही एक आदर्श समाज हो जाएगा तथा ऊँच-नीच और अस्पृश्यता की भावना खत्म हो जाएगी।

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