Flood Essay in Hindi बाढ़ पर निबंध

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Flood essay in hindi

बाढ़ पर निबंध Flood Essay in Hindi

Flood Essay in Hindi 700 Words

बाढ़ एक भयावह प्राकृतिक आपदा के रूप में मानव समाज को प्राचीन समय से ही प्रभावित करती रही है। हजारों-लाखों लोग प्रत्येक वर्ष इसकी चपेट में आते रहे हैं। गांव के गांव इस बाढ़रूपी प्राकृतिक आपदा के कारण आने भौगोलिक अस्तित्व को खोते रहे हैं। कभी-कभी तो सदा-सदा के लिए इन मानव बस्तियों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और मानव समाज आज ही नही अपितु प्राचीन समय से ही इस प्राकृतिक आपदा मुक्त होने की विकट साधना करता रहा है और यह कठिन साधना मानव समाज की आज भी निरन्तर रूप से जारी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार आदि भारतीय राज्य प्रधान रूप से इस प्राकृतिक आपदा से ग्रस्त हैं। बिहार में तो प्रायः प्रत्येक वर्ष बाढ़ का तांडवकारी प्रचण्ड रूप दिखाई पड़ता है। लाखों एकड़ भूमि पर होने वाली पैदावार ही नहीं अपितु भयावह रूप से पशु-धन की भी हानि होती है। इन भयावह प्राकृतिक आपदाओं से मानव समाज किस परिमाप और रूप में प्रभावित होता होगा, इसकी तो सहज ही कल्पना भी जा सकती होगी। महीने-महीने भर बाढ़ का पानी गांवों और शहरों तक में भरा रहता है। यही कारण है कि बिहार सरकार की मूल चिन्ता प्रत्येक वर्ष आने वाली इस आपदा से मुक्त होने की ही रही है।

वस्तुत: बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके लिए पूरी तरह से प्रकृति को कभी-भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बाढ़ अपने आप में उस प्राकृतिक असंतुलन का परिणाम है जो मानवीय गतिविधियों की स्वार्थपरता के चलते प्रकृति में पैदा हुआ है। मानव ने अपने अत्यंत संकुचित स्वार्थो के कारण प्रकृति का मनचाहा दोहन किया है। औद्योगीकरण और शहरीकरण की योजनाओं ने प्राकृतिक संसाधनों का सर्वाधिक विनाश किया। मृदा का क्षरण, वृक्षों की अनावश्यक एवं अनियमित कटाई आदि ऐसे मूल कारण हैं जो बाढ़ की समस्या को बढ़ाते रहे हैं। औद्योगरीकरण और शहरीकरण इन्हीं दोनों ने प्रधानत: मृदा के क्षरण और वन-विनाश को सर्वाधिक बढ़ाया है। वनों की कटाई से वर्षा का जल पृथ्वी के अन्दर स्थानान्तरित नहीं हो पाता, जिससे व्यापक स्तर पर मृदा के क्षरण को बढ़ावा मिलता है। इस प्रकार की स्थितियों से व्यापक रूप से अकाल आदि की विनाशकारी स्थितियां उत्पन्न होती हैं।

बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो मानवीय जीवन को क्षणमात्र में तहस-नहस कर सकने की दारुण-क्षमता रखती है। आपने पूर्वोत्तर में आने वाली बाढ़ों का जिक्र अवश्य सुना होगा। बिहार प्रदेश इस आपदा से प्रत्येक वर्ष पीड़ित और ग्रस्त होने वाला राज्य है। एक तो उसकी भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है जो पानी की पर्याप्तता को बनाए रखती है। दूसरी, वहाँ इस संदर्भ में समुचित प्रयास न के बराबर ही है कि इस धन सम्पदा का उचित प्रबंधन किया जाए। वनों की कटाई और परिवर्तित हो रही जलवायु इस प्राकृतिक आपदा के मूल में अन्तर्निहित प्रधान कारण है। आर्थिक स्वार्थों के लोभवश सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर वृक्षों की अन्धाधुंध कटाई की जाती है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है। यह असंतुलन अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को उत्सर्जित करता है, बाढ़ इनमें से एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है।

आज वैश्विक वातावरण निरन्तर परिवर्तित हो रहा है। वायुमण्डल में अत्यंत विषाक्त गैसें संगठित होती जा रही हैं। इसी के साथ पेड़ों की अन्धाधुंध कटाई से वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा निरन्तर बढ़ती जा रही है, जिससे वातवरण गर्म होता जा रहा है। इस कारण विश्व का बर्फीला भू-क्षेत्र शनैः-शनैः पिघलने लगा है, जिससे नदियों में जल का बहाव तीव्र होने लगा है। इसी के साथ वृक्षों के कटने से बारिस का पानी तेजी से बहता है । वृक्षों के द्वारा जहां पहले अवरोध पैदा होता था, अब बारिस के पानी का बहाव वृक्षरूपी अवरोधकों की अनुपस्थिति के कारण अनियंतित्रत होता जा रहा है। इससे भी नदी में जल की मात्रा बढ़ती है। इस जिससे वह एक उफनती हुई जल धारा का रूप ले लेती है।

बाढ़ से जीवन का बहुतांश क्षेत्र प्रभावित होता है। इससे जन-जीवन की ही हानि नहीं होती, अपितु मानव-समाज की तमाम रचनात्मकता भी इसके कारण नष्ट हो जाती है।

कहने का अभिप्राय यह है कि बाढ़ एक व्यापक मानवीय अभिशाप के समान है जो आम जनजीवन को तहस-नहस कर देती है। अतः सरकार को, हमारी शासन व्यवस्था को युद्ध स्तर पर इससे निपटने की कार्य-योजना बनानी चाहिए, ताकि इससे होने वाले विनाश से मानव समाज को बचाया जा सके।

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