Essay on Gautam Buddha in Hindi गौतम बुद्ध पर निबंध
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Words said by Gautam Budhha in Hindi
एक जागे हुए व्यक्ति को रात बड़ी लम्बी लगती है, एक थके हुए व्यक्ति को मंजिल बड़ी दूर नजर आती है। इसी तरह सच्चे धर्म से बेखबर मूर्खों के लिए जीवन-मृत्यु का सिलसिला भी उतना ही लंबा होता है।
निश्चित रूप से जो नाराजगी युक्त विचारों से मुक्त रहते हैं, वही जीवन में शांति पाते हैं।
अतीत में ध्यान केन्द्रित नहीं करना, ना ही भविष्य के लिए सपना देखना, बल्कि अपने दिमाग को वर्तमान क्षण में केंद्रित करना।
Essay on Gautam Buddha in Hindi
गौतम बुद्ध का जन्म सारी मानवता के लिए एक बहुत बड़ा वरदान था। यह एक ऐसी सुखद घटना थी जिसने सारे विश्व में एक अपूर्व आध्यात्मिक जागृति और धार्मिक जागरण का प्रारम्भ किया। बुद्ध धर्म एक अत्यन्त व्यावहारिक और लोकप्रिय धर्म रहा है। इसका मूल उद्देश्य शांति और सुख की प्राप्ति, दु:खों की समाप्ति और अंतत: मोक्ष की उपलब्धि है। गौतम बुद्ध के प्रति सारे विश्व की असीम श्रद्धाभावना से सब परिचित हैं। बुद्ध अखिल मानवजाति के मित्र, पथदर्शक और शुभचिन्तक रहे हैं। उनका जीवन-चरित्र पिछले हजारों वर्षों से हमारे लिए आदर्श, प्रेरणा, शिक्षा और नैतिकता का स्रोत रहा है। बुद्ध धर्म विश्व के महानतम धर्मों में से एक है। भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म वस्तुत: एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं। एक को जानने के लिए दूसरे को जानना आवश्यक है।
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई० पूर्व महाराजा शुद्धोदन के पुत्र के रूप में हुआ था। इनकी माता का नाम महारानी महामाया था। महारानी जब अपने मायके जा रही थीं तभी मार्ग में लुम्बिनी नामक उद्यान में गौतम का जन्म हुआ। बालक को सिद्धार्थ गौतम का नाम दिया गया। सिद्धार्थ का अर्थ है जिसने सब कुछ प्राप्त व सिद्ध कर लिया है। गौतम के जन्म के 7 दिन के पश्चात ही महामाया का देहांत हो गया। जिस दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ उस दिन वैशाख मास की पूर्णिमा थी और बसंत ऋतु अपने पूरे यौवन पर। बुद्ध को शक्यमुनि के नाम से भी जाना जाता है। महाराजा शुद्धोधन सूर्यवंशी थे और कपिलवस्तु पर राज्य करते थे।
गौतम बुद्ध के जन्म के समय ही जाने माने ज्योतिषियों, ऋषि मुनियों और भविष्यवेत्ताओं ने बता दिया था कि बालक बड़ा होकर या तो एक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर एक महान् महात्मा और यशस्वी ऋषि। बालक गौतम का पालन पोषण उनकी मौसी ने किया। महाराज शुद्धोधन यह चाहते थे कि बालक बड़ा होकर चक्रवर्ती सम्राट् ही बने। वे नहीं चाहते थे कि वह आगे चलकर साधु-सन्यासी या योगी बने। अत: उन्होंने बालक में आरम्भ से ही राजसी संस्कार भरने आरम्भ कर दिये और उनको पालन पोषण बड़े ऐश्वर्यपूर्ण वातावरण में किया गए। उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया। यशोधरा एक असाधारण सुन्दर राजकुमारी थी। उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया।
प्रारम्भ से ही गौतम को चिंतन और ध्यान करने की आदत थी। वे सांसारिक सुखों, राजसी ऐश्वर्यों के प्रति विरक्ति का भाव रखते थे। पार्थिव आकर्षणों से दूर वे अपने गहरे विचारों में डूबे रहते। एक दिन उन्होंने एक अति बूढ़े व्यक्ति को देखा। सारथी ने उन्हें बताया कि यह व्यक्ति बुढ़ापे से पीड़ित था। गौतम ने सोचा कि क्या उन्हें भी एक दिन ऐसी ही दशा में आना पड़ेगा। यह सोचकर उनका मन वैराग से भर गया। दूसरी बार उन्होंने एक रोगी को देखा और तीसरी बार एक मृत व्यक्ति को। लोग उसका शव शमशानघाट ले जा रहे थे। अंत में उन्होंने एक साधु को देखा जो फटे पुराने कपड़ों में था परन्तु वह सुखी और शान्त प्रतीत होता था। इन घटनाओं ने बुद्ध के जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।
एक रात गौतम वास्तविक शांति, और निर्वाण की खोज में निकल पड़े तथा सन्यास अपना लिया। उस समय उनकी आयु 29 वर्ष की थी। गौतम ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकते रहे। कई वर्षों तक वे गहन तपस्या व साधना में लगे रहे। यहां तक कि उनका शरीर सूखकर कांटा हो गया। तभी उन्हें अनुभव हुआ कि इस तरह शरीर को कष्ट देने और यातना सहने का कोई लाभ नहीं है। ये सच्चे ज्ञान व मोक्ष की प्राप्ति में कभी सहायक नहीं हो सकते।
एक दिन वे निरंजना नदी के तट पर पहुंचे और वहां एक पीपल का घना व सुन्दर वृक्ष देखा। वहां उन्होंने ध्यान करने व समाधि लगाने की सोची। तभी वहां सुजाता नाम की एक नवयुवती आई। उसके हाथ में खीर का पात्र था। उसने वह खीर गौतम बुद्ध को भेंट कर दी। खीर खाने के पश्चात गौतम ध्यान में बैठ गये और गहरी समाधि का यह अभ्यास निरन्तर चलता रहा। फिर एक दिन इस घोर साधना व समाधि के फलस्वरूप उन्हें उज्जवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे गौतम से बुद्ध बन गये। यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल पूर्णिमा का था।
पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् बुद्ध सबसे पहले सारनाथ गये और वहां अपना पहला धार्मिक प्रवचन दिया। यह स्थान वाराणसी के समीप एक अत्यन्त रमणीय स्थल है। बुद्ध का प्रवचन व उपदेश सुनकर लोग बड़े प्रभावित हुए और उनके शिष्य बन गये। इस प्रकार सारनाथ में भगवान बुद्ध ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार बड़ी तीव्र गति से होने लगा तथा हर प्रकार के लोग उनके शिष्य बनने लगे। बुद्ध ने दूर-दूर तक भ्रमण कर धर्मोपदेश दिये तथा अज्ञान का विनाश किया। वैशाली में प्रसिद्ध गणिका आम्रपाली उनकी परम भक्त और शिष्या बन गई । इस प्रकार अंगुलीमाल नामक एक अत्यन्त दुष्ट व निर्मम डाकू भी भगवान की शरण में आकर धर्मावलम्बी बन गया। लगभग 45 वर्ष की लम्बी अवधि तक गौतम बुद्ध धर्म प्रचार में व्यस्त रहे। अंततः 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने कुशीनगर नामक स्थान पर निर्वाण को प्राप्त किया। इस दिन भी वैशाखी मास की पूर्णिमा थी।
भगवान बुद्ध ने जीयो और जीने दो का सिद्धान्त अपनाते हुए मध्य मार्ग पर चलने का आदेश दिया। उन्होंने अति से बचने तथा सम्यक जीवन और चरित्र पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जीवन दु:खमय है तथा हमारी इच्छाएं व तृष्णा इसके मूल कारण हैं। इन पर विजय पाकर हम दु:खों और अशान्ति पर भी विजय पा सकते हैं।
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