Guru Bhakti Story in Hindi गुरु भक्ति पर कहानी

Guru Bhakti Story in Hindi. गुरु भक्ति पर कहानी। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए गुरु भक्ति पर कहानी हिंदी में।

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Guru Bhakti Story in Hindi

गुरु-भक्ति

ज्ञान की प्राप्ति गुरु के बिना असम्भव है। गुरु होता है – मार्ग दर्शन करने वाला, ज्ञान देने वाला। जिसकी शिक्षा को हम हृदय में धारण करते हैं और उसके प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। उस गुरु के आशीर्वाद से हम अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करते हैं।

भीलराज हिरण्यधनु का पुत्र एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के पास गया। द्रोणाचार्य ने एकलव्य को भील का पुत्र होने के कारण धनुर्विद्या यह कहकर सिखाने से मना कर दिया कि वह राजकुमारों का ही गुरु है। एकलव्य इस बात को सुनकर बहुत उदास हुआ परन्तु उसके मन में धनुर्विद्या सीखने की दृढ़ लग्न थी। वह जंगल में गया और वहां उसने कुटिया बनाई जिसमें उसने गुरु द्रोणचार्य की मिट्टी की मूर्ति स्थापित की। एकलव्य प्रतिदिन मूर्ति को गुरु मानकर प्रणाम करता और अपने अभ्यास में लग जाता। अभ्यास करने से वह धनुर्विद्या में कुशल हो गया।

एक बार एकलव्य अभ्यास कर रहा था कि एक कुत्ते ने वहां आकर भौंकना शुरु कर दिया। इससे एकलव्य के अभ्यास में वित्त पड़ने लगा। उसने कुत्ते को चुप कराने के लिए उसके मुंह में सात बाण मारे। वह पाण्डर का कुत्ता था। पाण्डव जब कुत्ते को देखते हैं तो आश्चर्य चकित हो जाते है। वे एकलव्य का पता लगाते हैं। पाण्डवों ने उससे उसके गुरु का नाम पूछा। एकलव्य ने बताया कि उसके गुरु का नाम द्रोणाचार्य है तो वे द्रोणाचार्य के पास गए और इस बारे में बातचीत की। द्रोणचार्य जंगल में एकलव्य की कुटी में गए और एकलव्य से पूछने लगे कि उसे धनुर्विद्या किसने सिखाई है। एकलव्य ने बताया कि उसने द्रोणचार्य की मूर्ति बनाकर, उसे गुरु मानकर कर धनुर्विद्या का प्रतिदिन अभ्यास किया।

गुरु द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य के दाहिने हाथ के अंगूठे की मांग की। एकलव्य ने सहर्ष अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काट कर गुरु दोणाचार्य को गुरु दक्षिणा के रूप में भेंट कर दिया।

यद्यपि गुरु के रूप में द्रोणाचार्य का यह कर्म उचित नहीं कहा जा सकता है परन्तु एकलव्य की गुरु भक्ति तो सदैव ही प्रशंसनीय रहेगी।

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