Essay on Importance of Water in Hindi जल की महत्ता पर निबंध
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Essay on Importance of Water in Hindi 150 Words
पानी का महत्व पर निबंध
पानी पृथ्वी पर सबसे कीमती चीज है। पानी का दूसरा नाम जीवन है इसलिए सबको इसकी आवश्यकता है। पानी की जरूरत जब भी हम कपडे धोते है, पानी पीते है, भोजन पकाते है और स्नान करते है पर पढ़ती है। हमारे घरेलू जीवन में भी पानी की आवश्यकता होती है। हमें जीने के लिये पानी चाहिये। हमें पानी को बर्बाद नही करना चाहिये क्योंकि यह हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है। हमे पानी को बचाना चाहिये नही तो हमें भविष्य में पानी की बहुत बड़ी समस्या हो जायेगी।
भारत के कई क्षेत्रों में पानी के लिए लोगों को बहुत दूर जाना पड़ता है। कृषि के लिये पानी का बहुत महत्व है। बिजली को बनाने के लिये भी हमें पानी चाहिये। पानी ही वर्षा के लिए जिम्मेदार है। यदि पानी नहीं हुआ तो वर्षा भी नही होगी। इसलिए हमें अपने जीवन को चलाने के लिए पानी को बचाना होगा। कृपया पानी बचाओं।
Essay on Importance of Water in Hindi 1000 Words
क्षिति, जल, पावक गगन और समीर-ये पाँच तत्व हमारे धर्मग्रंथों में मौलिक कहे गए हैं तथा हमारी शरीर रचना में इनकी समान रूप से भूमिका होती है। इनमें वायु और जल-दो ऐसे तत्व हैं जिनके बगैर हमारे जीवन की कल्पना एक क्षण भी नहीं की जा सकती। जीवों को जिस वस्तु की आवश्यकता जिस अनुपात में है, प्रकृति में वे तत्व उसी अनुपात में मौजूद हैं। परन्तु आज जल और वायु दोनों पर संकट के काले बादल छाए हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं हमने मूलभूत भूलें की हैं।
जल के तरल पदार्थ है जो अपने ठोस और गैस रूप में मौजूद है। अवस्था परिवर्तन करने का जल का यह स्वभाव उसके उपयोग के आयामों को विस्तृत कर देता है। जल यदि बर्फ बनकर न रह पाता तो गंगा जैसी सदानीरा नदियाँ न होती और जल यदि गैस बनकर वाष्पित न हो पाता तो धरती पर वर्षा होने की संभावना न बचती। ओस के कणों की तुलना कवि व शायर ना जाने किन-किन रूपों में करते हैं, उनके काव्य जगत् का यह हिस्सा अछूता ही रह जाता। लेकिन मानव का यह गुणधर्म है कि जिस वस्तु को वह व्यवहार में लाता है, उसे दूषित कर देता है। यही कारण है कि आज नदी जल, भूमिगत जल, कुएँ-बावड़ी का जल, समुद्र का जल और यहाँ तक कि वर्षा का जल भी कम या अधिक अनुपात में दूषित हो चुका है। जल प्रदूषण पर गोष्ठियाँ तथा सैमीनार हो रहे हैं परन्तु इस विश्वव्यापी समस्या का कोई ठोस हल अभी तक सामने नहीं आ पाया है।
हाल ही में यह प्रयास भी हो रहा है कि इस नैसर्गिक सम्पदा का पेटेंट करा लिया जाए। अर्थात् किसी खास नदी या बाँध के जल पर किसी खास बहुराष्ट्रीय कंपनी का अधिकार हो और वे इस जल को बोतलों में बंद कर बाजार में मिनरल वाटर के नाम से बेच सके। सुनने में आया है कि सरकार भी इस पर रजामन्द थी मगर पर्यावरणविदों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया तो उसने चुप्पी साध ली। परन्तु जिस तरह से प्रत्येक वस्तु पर बाजारवाद हावी हो रहा है उसे देखकर कहा नहीं जा सकता कि कब तक नदियाँ तथा अन्य जलाशय उक्त कंपनियों के चंगुल से बचे रह सकेंगे। सरकारें भी अपने बढ़ते खर्च की भरपाई के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रही हैं।
जल के अनेक उपयोगों में सबसे महत्वपूर्ण है पेयजल। घरेलू उपयोग का जल भी पेयजल जैसा शुद्ध होना आवश्यक माना गया है। मगर पेयजल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता हमारे देश में दिनोंदिन घटती जा रही है। जल के भूमिगत स्त्रोतों के स्तर में ट्यूबवेलों की बढ़ती संख्या तथा जल संग्रहण की ठीक प्रणाली न होने के कारण स्थाई गिरावट दर्ज की गई है।
पहले लोग नदियों का जल बेधड़क पी लिया करते थे परन्तु आज परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल गई हैं। शहर के निकट की नदी या झील में उस शहर का सारा गन्दा पानी बेझिझक उड़ेल दिया जाता है जिससे प्रदूषण के साथ-साथ झीलों और सरोवरों के छिछलेपन की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। जल प्रदूषण के कारण जल के विभिन्न भंडारों के जलजीवों का जीवित रह पाना भी कठिन होता जा रहा है। गरीब और जनसंख्या बहुल देशों में तो जल की समस्या और भी जटिल रूप में है। ये देश जल का उपयोग तो बढ़ा रहे हैं लेकिन जल संचय और इसके रखरखाव में जो धन चाहिए, वह इनके पास नहीं है।
हमारे देश के जलसंकट को दूर करने के लिए दूरगामी समाधान के रूप में विभिन्न बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने की बातें कही गई हैं। इसका बहुत लाभ मिलेगा क्योंकि नदियों का जल जो बहकर सागर जल में विलीन हो जाता है, तब हम उसका भरपूर उपयोग कर सकते हैं। इस प्रणाली से निरन्तर जलसंकट झेल रहे क्षेत्रों के लोग पर्याप्त मात्रा में जल प्राप्त कर सकते हैं। जिस तरह इंदिरा गाँधी नहर बन जाने से राजस्थान की अतृप्त भूमि की प्यास बुझ सकी है, ऐसे ही अन्य प्रयासों से देश भर में खुशहाली और हरियाली लाई जा सकती है। अन्यथा कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर जिस प्रकार अंतहीन विवाद दक्षिण भारत के दो राज्यों के मध्य है, उसी तरह अन्य स्थानों पर भी जल को लेकर घमासान मच सकता है।
जलसंकट से जुड़ा एक पहलू यह भी है कि जब पहाड़ों पर हरियाली घटती है तो वहां बर्फ के जमाव तथा वहां की नमी में कमी आ जाती है। इसी तरह मैदानों और पठारों पर जब वनस्पतियां घटने लगती हैं तो यहां औसत वर्षा की मात्रा में क्रमिक रूप से ह्रास होने लगता है। इसका सीधा असर भूमिगत जल के स्तर पर पड़ता है क्योंकि जहां वर्षा कम होगी वहां तालाबों, गड्ढों और झीलों में जल जमाव कम होगा, और भूमिगत जल का स्तर भी घटेगा। इस तरह देखें तो पर्यावरण का एक पहलू उसके दूसरे पहलू से जुड़ा हुआ है। ज्यों-ज्यों मानव पर्यावरण की उपेक्षा करेगा त्यों-त्यों उसे जलसंकट और वायुसंकट जैसे कई संकटों का सामना करना पड़ेगा।
यह सत्य है कि जल की एक-एक बूंद कीमती है। यदि ऐसा है तो इसकी रक्षा का प्रयत्न करना चाहिए। नलों को आधे-अधूरे तरीके से बंद करना, सार्वजनिक नलों को टूटी-फूटी दशा में छोड़ देना आदि कुछ ऐसे कार्य हैं जिनसे जल की खूब बरबादी होती है। कुएं, हैंडपंप आदि के चारों ओर के स्थानों को गन्दा रखने से भी जल प्रदूषित होता है। इस स्थिति में उपयोग में लाया गया गंदा जल इन भंडारों के स्वच्छ जल को भी गंदा कर देता है। चूंकि पेयजल की मात्रा धरती पर सीमित है। अत: इसका दुरुपयोग कुछ लोगों के लिए भले ही हितकर हो परन्तु आम लोगों को इसका भारी खामियाजा उठाना पड़ता है।
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