Essay on Importance of Sports in Hindi खेलों का महत्व पर निबंध

Read an essay on importance of sports in Hindi language. What is the importance of sports in Hindi for students of class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. खेलों का महत्व पर निबंध।

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Essay on Importance of Sports in Hindi

खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण जरूरत है। ये हमारे मनोरंजन के प्रमुख साधन हैं। इन से हमारा स्वस्थ मनोरंजन होता है और समय का सदुपयोग होता है। दिन भर परिश्रम के बाद हर व्यक्ति को खेलकूद और मनोरंजन अवश्य मिलना चाहिये, नहीं तो उसकी कार्यक्षमता और स्वास्थ्य गिरते चले जाएंगे। वह बीमार और निराश होता चला जाएगा। खेलकूद में भाग लेने से खोई हुई ऊर्जा व स्फूर्ति पुन: प्राप्त हो जाते हैं।

विद्यार्थियों के लिए तो खेलों का महत्त्व सबसे अधिक है। दिन भर स्कूल में पढ़ने और होम वर्क करने के बाद खेल-कूद उनके लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाते हैं। घर व स्कूल के बाहर खेल के मैदान में उन्हें ताजा हवा सांस लेने को मिलती है। प्रकृति के खुले वातावरण में विभिन्न खेलों में भाग लेकर वे पुनः तरोताजा हो जाते हैं। उन्हें दौड़ना, भागना, कूदना और उछलना पड़ता है। इन सब क्रियाओं से सभी शारीरिक अंग-प्रत्यंगों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है। खेलें विद्यार्थियों को हर प्रकार से चुस्त-दुरूस्त, सक्रिय, फुर्तीला और उमंग से भरा रखने के सर्वोत्तम साधन हैं। खेलों से पाचन शक्ति ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है तथा रक्तसंचार की गति बढ़ जाती है। किसी तरह की बीमारी या रोग पास नहीं फटकते। इस तरह खेल स्वास्थ्य की एक अनुपम कुंजी है।

खेलों से अनुशासन और आत्मनियंत्रण पैदा होता है। अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के जीवन में विकास और उन्नति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अनुशासित नागरिक व विद्यार्थी एक महान् और अनुशासित राष्ट्र का निर्माण करते हैं। प्रत्येक खेल का अपना अनुशासन, नियम और उपनियम होते हैं। हर खिलाड़ी को उनका कठोरता से पालन करना होता है। उनकी अवहेलना और उल्लंघन दण्डनीय होते हैं। इन नियमों का पालन कराने के लिए रैफरी और निर्णायक होते हैं। नियमों का उल्लंघन करने वाली टीम व खिलाड़ियों को वे दंडित करते हैं, उन्हें भविष्य में किसी मैच आदि में खेलने से वर्जित कर सकते हैं। हर खिलाड़ी व टीम को रैफरी का निर्णय व आदेश मानना होता है। बिना रैफरी के खेले गये गेम्स में भी खिलाड़ी स्वत: ही नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, उन्हें तोड़ते नहीं, उनका उल्लंघन या अतिक्रमण नहीं करते। इस प्रकार खिलाड़ियों में अनुशासन, व्यवस्था और नियम पालन की भावनाएं विकसित होती हैं और फिर बलवान बनती हैं।

खेल के मैदान में सीखा गया अनुशासन का यह पाठ जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। खिलाड़ी सामान्यत: बहुत अनुशासन-प्रिय होते हैं। उनका व्यवस्था में बड़ा विश्वास होता है। वे कभी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते। प्रायः खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित पाये गये हैं। अनुशासन समाज में कानून व व्यवस्था बनाये रखने, राष्ट्र का विकास करने व व्यक्तिगत जीवन में समृद्धि और सुख लाने में बड़ी सहायता करता है। अनुशासन-विहीन किसी देश या राष्ट्र की कल्पना करना भी कठिन है। हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी हमारी सभी इंद्रियां, शरीर के अंग-प्रत्यंग आदि अनुशासन में रहकर ही काम करते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। इस “टीम स्पिरट” के कारण ही मैच जीते जाते हैं। खेल सिखाते हैं कि कैसे परस्पर सहयोग के साथ अनुशासन में रहते हुए खेलों और जीवन में विजय पाई जा सकती है। एक टीम में कई सदस्य होते हैं। उनके साथ ही तालमेल बिठाकर, परस्पर सहयोग करके टीम भावना के साथ ही किसी खेल में विजय की आशा की जा सकती है। इस तरह आपस में सबके समान लाभ व कल्याण के लिए एक साथ मिलकर काम करने की प्रवृत्ति को बल और बढ़ावा मिलता है।

अच्छे खिलाड़ी, अच्छे नागरिक, माता-पिता, सहयोगी, कर्मचारी और अधिकारी भी सिद्ध होते हैं। खेल के मैदान में सीखे गये सहयोग और टीम-भावना के इस पाठ का वे व्यावहारिक जीवन में बहुत अच्छा प्रयोग करते हैं। अपने सहयोगियों और अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उन्हें काम करने में कोई कठिनाई नहीं आती। वे सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने या उन से काम लेने की दक्षता रखते हैं। अवसर व परिस्थितियों के अनुसार वे तुरंत अपने को ढाल सकते हैं। कोई भी कठिनाई उन्हें सफलता की ओर बढ़ने से नहीं रोक पाती।

खिलाड़ी पराजय को भी सहर्ष व धैर्य से स्वीकार कर सकते हैं और को आधार बनाकर अपनी आगे की रणनीति तय करते हुए फिर विजय प्राप्त करते हैं। वे पराजय से निराश नहीं होते वरन् उससे अपनी सफलता व विजय का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जीवन भी एक खेल और संग्राम है। इस में भी कभी-कभी कडे परिश्रम के बावजूद असफलता ही हाथ लगती है। परन्तु खिलाड़ी रह चुका व्यक्ति कभी निराश या हताश नहीं होता, हिम्मत नहीं हारता। वह बार-बार अपनी अधिक क्षमता, शक्ति, साधनों व सूझबूझ से काम करता है और अन्त में सफलता का स्वर्ण-मैडल प्राप्त कर लेता है। स्कूल के अतिरिक्त खेल का मैदान भी चरित्र निर्माण और व्यक्तिगत विकास का अच्छा स्थान है। खेलों के बिना विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास असंभव है। यही कारण है कि गेम्स एण्ड स्पोर्टस शिक्षा के एक आवश्यक अंग हैं।

युवा लोग शक्ति व ऊर्जा के भंडार होते हैं। इस सारी शक्ति व ऊर्जा का उचित उपयोग होना चाहिये अन्यथा यह विनाशकारी रूप में फूट सकती है। खेलकूद इस ऊर्जा के इस विस्फोटक रूप को रोकने व नियंत्रित करने के लिए सर्वोत्तम साधन हैं। पढ़ाई-लिखाई और घर या स्कूल की चारदीवारी में इस ऊर्जा का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। उसका बहुत बड़ा भाग सुरक्षित बचा रह जाता है। लेकिन खेल के मैदान में जाकर इसका अच्छा व सार्थक प्रयोग होता है।

परिणाम यह होता है कि खिलाड़ी-विद्यार्थी कभी हुल्लडबाजी, गुंडागर्दी, अनुशासनहीनता, तोड़फोड़ आदि में आमतौर पर भाग नहीं लेते क्योंकि उनके क्रोध, ईर्ष्या आदि हानिकारक भावनाओं का उन्नयन हो जाता है। खेलकूद में इन अवांछित भावनाओं का निष्कासन हो जाता है। अत: खेलें दुर्भावनाओं, ईष्र्या, द्वेष, घृणा आदि से मुक्ति पाने का एक सहज और शक्तिशाली साधन हैं। भावों के संस्कार और परिष्कार के संदर्भ में खेलों का महत्त्व अत्यन्त स्पष्ट है। कहते हैं कि “खाली दिमाग शैतान का घर”। खेल दिमाग को खाली नहीं रहने देते और ऊर्जा को बाहर निकालने का अवसर प्रदान करते हैं। इस तरह वह शैतान को परास्त कर घर से बाहर निष्कासित कर देते हैं। खेलों से देश-प्रेम, एकता, भावनात्मक संगठन और अंतर्राष्ट्रीय समझ को भी बढ़ावा मिलता है।

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