Iraq on the path of Vietnam Essay in Hindi वियतनाम की राह पर इराक निबंध
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Iraq on the path of Vietnam Essay in Hindi
अमेरिका द्वारा इराक पर हमला किया जाना, निश्चित रूप से एक ऐसा मिशन है जो मानवाधिकारों का उल्लंघन करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार इराक में तैनात अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी में ‘इराक जनतंत्र की दिशा में बढ़ रहा है।’ लेकिन क्या वाकई ऐसा है? या वह साठ दशक के वियतनाम की तरह एक ऐसे दलदल में रूपांतरित हुआ है जिससे निकलने का उसे रास्ता नहीं मिल पा रहा है? यह मसला हरेक के दिलो-दिमाग में गूंजता रहता है।
अभी कुछ समय पूर्व डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से पेनसिल्वानिया से प्रतिनिधि चुने गये और खुद वियतनाम की जंग में शामिल हो चुके जॉन मुरथा ने इराकी मिशन को लेकर अपने एक बिल्कुल अलग किस्म के प्रस्ताव से सब को चौंका दिया था, जिसमें अमेरिकी सरकार की जबरदस्त आलोचना करते हुए उन्होंने इराक से सेनाओं की वापसी की मांग की थी।
लेकिन गौरतलब है कि अमेरिकी सेना को एक अन्य अध्ययन के निष्कर्षों को खारिज करना बेहद मुश्किल जान पड़ रहा है, पेंटागन अर्थात् अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा ही करवाया गया था। यह अध्ययन साफ-साफ बताता है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के तहत अमेरिकी सेना को इराक से लेकर अफगानिस्तान में इधर से उधर भेजा जाता रहा है, उससे अमेरिकी सेना काफी तनाव महसूस कर रही है और अगर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो संस्थागत संकट खड़ा हो सकता है।
यह अध्ययन एण्ड्रयू क्रेपिनेविच ने किया जो खुद सेना से सेवानिवृत हैं और किसी स्वयंसेवी संस्था से जुड़े हैं, उनका निष्कर्ष है कि इराकी विद्रोहियों द्वारा पेश की गई चुनौती की कमर तोड़ने के लिए अमेरिकी सेना की तैनाती की रफ्तार को बनाये रखना हमारे लिए नामुमकिन है।
दिलचस्प है कि 150 पृष्ठ की उपरोक्त रिपोर्ट के जारी होने के दूसरे ही दिन अमेरिकी कांग्रेस के डेमोक्रेटिक सदस्यों द्वारा, पूर्व विदेश सचिव विलियम पेरी की अगुआई में तैयार एक अन्य रिपोर्ट का निष्कर्ष भी यही था कि इराकी कार्यवाही के चलते अमेरकी सेना बेहद तनाव में है और इस तनाव को दूर नहीं किया गया, तो सेना पर इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और अमेरिका के संभावित दुश्मन भी उसे चुनौती दे सकते हैं।
हालाँकि अमेरिका के वर्तमान रक्षा सचिव ने इन दोनों रिपोर्टो निष्कर्षों को चुनौती देते हुए कहा कि अमेरिकी सेना कई युद्ध देख चुकी है और इस बार भी वह अपना मिशन पूरा करके ही लौटेगी।
इराक में अमेरिकी सेना के बेहद निराशाजनक भविष्य का संकेत अन्य स्रोतों से भी मिलता है। सन् 2005 में मीडिया द्वारा की गई समीक्षा में लिखा गया था कि पिछले साल इराक में विद्रोहियों द्वारा अमेरिकी सेनाओं पर हमले में लगातार बढ़ोत्तरी होती गई है। अमेरिकी सेना द्वारा हर साल की जाती रही नये सैनिकों की भर्ती में आ रही कमी भी चिंता का एक सबब बनी है। 1999 के बाद पहली दफा यह बात सामने आयी है कि इसके लिए अमेरिकी सेना में तय किये लक्ष्य से काफी कम भर्ती हुई।
मई 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐलान किया था कि अब ‘हमारा मिशन पूरा हो गया है।’ लेकिन जैसी परिस्थितियां मौजूद हैं, उनसे स्पष्ट है कि इराक पर कब्जा करने की अमेरकी मुहिम उसके लिए दूसरा वियतनाम साबित हो रही है, जहाँ से परास्त होकर महाबली अमेरिका को 1975 में लौटना पड़ा था।
अगर वियतनाम के साथ तुलना करें, जिसमें हताहत अमेरिकी सैनिकों की संख्या 58,178 थी, तो आज इराक में मारे गए अमेरिकी सैनिकों की संख्या (2189) कम लग सकती है। लेकिन दोनों ही स्थितियों में मौजूद एक महत्वपूर्ण फर्क को भूलना नहीं चाहिए। वियतनाम पर अमेरिका ने 50 के दशक के मध्य आक्रमण किया था, लेकिन अमेरिकी सरजमीं पर युद्ध विरोधी आन्दोलन की शक्ति धारण करने के लिए पाँच साल लगे मगर इस बार तो अमेरिका द्वारा इराक पर हमले की शुरूआत के पहले ही अमेरिका के अंदर एक व्यापक युद्ध-विरोधी आंदोलन ने आकार ग्रहण किया था, जो आज भी विभिन्न स्तरों पर जारी है। अमेरिका के निकटतम सहयोगी ब्रिटेन, तथा उसमें कायम युद्ध विरोधी आंदोलन ने तो अपना अलग इतिहास रचा है।
फिलहाल आने वाले समय के बारे में किसी भी किस्म की भविष्यवाणी करना मुमकिन नहीं होगा। लेकिन एक बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि, इरान पर हमला करने और सीरिया को अनुशासित करने के उसके हवाई दावों के क्या कहने? समय के साथ इराक में भी पैर जमाये रखना अमेरिकी सेना के लिए अधिकाधिक मुश्किल होता जाएगा और उसे इराक से शर्मनाक ढंग से हटना पड़ेगा।
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