Kargil War in Hindi Operation Vijay ऑपरेशन विजय कारगिल जंग हिंदी में
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Kargil War in Hindi
Operation Vijay
भारत और पाकिस्तान के बीच एक अलग ही प्रकार का संबंध रहा है और यह अलग प्रकार का संबंध दोनों देशों के एक सामूहिक-अतीत के कारण उत्पन्न हुआ। भारत और पाकिस्तान कभी दो अलग-अलग देश न होकर एक ही देश थे। दोनों, हिन्दुस्तान की अवधारणा को संपूर्ण करते थे। किन्तु अंग्रेजों और संकीर्ण धार्मिक-सम्प्रदायवादियों के कुचक्रों के फलस्वरूप, सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत का विभाजन हो गया और पाकिस्तान एक अलग देश बन गया। इस दौरान एक अत्यंत भयावह और विकराल नर-संहार हुआ था जिसमें हजारों की संख्या में हिन्दू और मुसलमान मारे गए थे। उसी की पीड़ादायक स्मृतियां दोनों देशों के लोगों के मन में आज तलक विद्यमान हैं। इन दुर्दात स्मृतियों और अतीत के उस नर-संहार ने भारत और पाकिस्तान के राजनैतिक संबंधों को कटुतापूर्ण बना दिया है।
इस कटुता की छाप लगभग पचास सालों से दोनों देशों के सबंधों पर पड़ती रही है। पाकिस्तान ने अनेक बार भारत पर सैनिक-आक्रमण किए हैं, जिनमें व्यापक रूप से जान-माल की हानि उठानी पड़ी है। लेकिन भारत और पाकिस्तान के मध्य कटुता और ज्यादा पनपे इसके लिए भारत की तरफ से कभी भी प्रयास नहीं किए गए हैं। किन्तु पाकिस्तानी प्रशासन सदैव इसी प्रकार के प्रयास करता रहा है। इन प्रयासों को हाल फिलहाल में प्रारम्भ की गयी बस सेवाओं के रूप में भी देखा जा सकता है। यह एक दुखद आश्चर्य ही कहा जाएगा कि ‘लाहौर बस-सेवा’ आरम्भ करने के तुरंत बाद, भारत के इस महत्वाकांक्षी कदम का जवाब पाकिस्तान ने एक युद्ध थोप कर दिया।
पाकिस्तान के साथ अनेक ऐसी समस्याएं है जिनका सामना वहां के नागरिक अपने दैनिक जीवन में प्रायः करते हैं। इस दृष्टि से देखें तो वहां की सरकार को अनेक स्तरों पर भारत से सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों विकसित करने चाहिए, ताकि वहां का भी सामाजिक-आर्थिक विकास तेजी के साथ हो सके। किंतु बड़े ही दु:ख के साथ यह कहना पड़ता है कि पाकिस्तानी राजनीति आज तक भारत-विरोधी रूप लेकर ही खड़ी होती आयी है। वस्तुत: पाकिस्तानी राजनीति पर वहाँ के संकीर्ण धार्मिक और साम्प्रदायिक नेताओं का प्रबल प्रभाव रहता है, जिससे वहां राजनैतिक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक आयामों को नये समय के अनुसार पुनः संगठित और व्यवस्थित नहीं किया जाता है और इस प्रकार राजनीति इन आयामों को छोड़कर धार्मिक स्वार्थों को अपना केन्द्र बना लेती है। पाकिस्तान अब उग्रवादियों का जमावड़ा हो गया है।
अपने गैर-जिम्मेदाराना रवैया और अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए एक बार फिर 1999 में पाकिस्तान ने भारत पर अनावश्यक रूप से युद्ध थोप दिया। इस बार युद्ध स्थल बना जम्मू-कश्मीर राज्य का करगिल क्षेत्र। यह क्षेत्र पूर्णत: हिमाच्छादित पहाड़ियों से युक्त क्षेत्र है। इस क्षेत्र का भौगोलिक स्वरूप अत्यंत प्रतिकूल है। अत: सेना बर्फ जमने पर नीचे की ओर आ जाती है। इसी समय, इस बात से वाकिफ पाकिस्तानी सेना ने उग्रवादियों के रूप में इन चोटियों पर गुपचुप रूप से कब्जा करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने अनावश्यक रूप से सीमा का अतिक्रमण किया और इस प्रकार पाकिस्तानी सेना भारत सरकार को प्राप्त हुई। भारत सरकार ने तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए भारतीय सेना को करगिल की ओर कूच करने का आदेश दे दिया।
आरम्भ में पाकिस्तान ने भारतीय सेना का काफी नुकसान किया। हमारी सेना के दो जहाज और एक हेलीकाप्टर उन्होंने गिरा दिए। जो भी उनकी पहुंच में आया उसे उन्होंने अत्यंत बर्बरता का परिचय देते हुए मार दिया। इसी क्रम में उन्होंने लेफ्टिनेंट नचिकेता को भी बन्दी बना लिया था फिर इसके भयानक परिणामों को देखते हुए पाकिस्तान ने उन्हें छोड़ने का फैसला ले लिया। किन्तु छोड़ने से पहले पाकिस्तानी सेना ने उनके साथ अत्यंत अमानवीय व्यवहार किया था।
कारगिल युद्ध करीब-करीब दो माह तक चलता रहा। इस दौरान प्रतिदिन का युद्ध पर होने वाला व्यय, 15 करोड़ रूपये होता था। किन्तु इसकी परवाह न करते हुए, भारत सरकार ने अपना सारा बल अधिगृहित करगिल क्षेत्र को पाकिस्तानी सेना से छुड़ाने में लगा दिया।
भारतीय सेना के करीब 400 सैनिक शहीद हो गए। इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी शांति प्रयासों को करारा झटका लगा। किन्तु इसके बाद भी भारत ने पाकिस्तान की दुस्साहता को नजरअंदाज किया और उसे शांतिवादी रवैया अख्तियार करने की चेतावनी दी।
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