Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध

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hindiinhindi Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi

Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi 500 Words

देश का लाल

लालबहादुर शास्त्री लालबहादुर शास्त्री हमारे देश के महानतम नेताओं में गिने जाते हैं। वे हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को हुआ था। उनका परिवार बहुत ही साधारण था। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम रामदुलारी देवी था। शारदा प्रसाद श्रीवास्तव शिक्षक थे। उनके पास धन-दौलत नहीं थी, पर समाज में मान-सम्मान था। बालक लालबहादुर अभी डेढ़ वर्ष का भी नहीं हुआ कि उसके सिर से पिता का साया उठ गया। उनका तथा दो अन्य बडी बहनों के पालन-पोषण का भार माता रामदुलारी पर आ पड़ा। उनकी माता ने बड़ी हिम्मत से काम लिया और अपने बच्चों का मुँह देखकर कष्ट सहन करती रहीं।

लालबहादुर जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने नाना के घर रहकर प्राप्त की। उनकी मिडिल कक्षा की पढ़ाई काशी में मौसा जी के पास रहकर हुई। वे वहाँ के ‘हरिश्चंद्र हाई स्कूल’ में पढ़ते थे। तभी उन्हें महात्मा गांधी का भाषण सुनने का अवसर मिला। गांधी जी की बातों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी का सादा जीवन और देश-प्रेम देखकर वे मुग्ध हो गए। उनके मन में देश सेवा की लगन जाग्रत हो गई।
जब गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन शुरू किया तो स्कूल और कॉलेजों के छात्र पढ़ाई-लिखाई छोड़कर उनके पीछे चल पड़े। बहुत-से लोगों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी। लालबहादुर भी पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

जब आंदोलन समाप्त हुआ तो लालबहादुर ने काशी विद्यापीठ में प्रवेश ले लिया। वहाँ से उन्होंने शास्त्री’ की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री कहलाने लगे।

शास्त्री जी का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ। अपने विवाह में उन्होंने केवल दो चीजें स्वीकार की थीं – एक चरखा, दूसरा एक थान खादी का कपड़ा। आगे चलकर उनका पूरा समय देश सेवा में बीतने लगा। आजादी के आंदोलन में वे कई बार जेल गए।

आजाद भारत में लालबहादुर शास्त्री ने अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। जब वह केंद्र में रेलमंत्री थे तो एक रेल-दुर्घटना हो गई जिसमें अनेक लोगों की जान चली गई। इस बात से शास्त्री जी को बड़ा धक्का लगा। उन्होंने अपने आपको जिम्मेदार मानते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

जवाहरलाल नेहरू के बाद शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने। उस समय हमारा देश अनाज के संकट से गुजर रहा था। शास्त्री जी ने बड़ी सूझ-बूझ से इस संकट का सामना किया और देश के स्वाभिमान की रक्षा की।

1965 ई० में पाकिस्तान ने हमारे देश पर आक्रमण कर दिया। भारत ने इस आक्रमण का करारा जवाब दिया। बाद में रूस की कोशिशों से भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद में समझौता हुआ। संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद, उसी रात हृदयगति रुक जाने के कारण उनका निधन हो गया।

आज शास्त्री जी हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी कीर्ति अमर है। उन्होंने नारा दिया था – “जय जवान, जय किसान”। यह नारा आज भी असरदार है।

“शांति के पुजारी और युद्ध के विजेता” के रूप में उनका नाम राष्ट्र के इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों से अंकित रहेगा।

Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi 800 Words

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जय जवान! जय किसान!
का नारा देने वाले श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वतन्त्र भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे।

जन्म तथा माता-पिता

उनका जन्म 2 अक्तूबर 1904 ई. को बनारस के कस्बे मुग़ल सराय के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी माता राम दुलारी देवी और पिता शारदा प्रसाद अध्यापक थे। शास्त्री जी अभी छोटे ही थे कि उनके पिता जी का स्वर्गवास हो गया। उसके बाद उन्हें बड़ी कठिनाई के दिन देखने पड़े।

अभावपूर्ण बचपन

सारा बचपन अभावों में बीता। किन्तु दृढ़ निश्चयी होने के कारण वे विपरीत परिस्थितियों से भी जूझते रहे। परिणामस्वरूप वे भारत के प्रधानमंत्री बने।

साहसी, दृढ़ निश्चयी एवं विनम स्वभावी

शास्त्री जी साहसी, दृढ़ निश्चयी एवं विनम्र व्यक्ति थे इसका एक उदाहरण उनके बचपन की इस घटना से मिलता है- उनका स्कूल गंगा पार था। नाविक गंगा पार कराने का एक पैसा लेता था। आर्थिक तंगी के कारण वे अक्सर गंगा नदी तैरकर ही पार किया करते थे। हालांकि उनके मित्र उनका किराया भी देने को कहते किन्तु वे विनम्रता से मना कर देते। बचपन के ऐसे संस्कार ही बड़े होते-होते उनके जीवन के सिद्धान्त बन गए।

महात्मा गाँधी का प्रभाव

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन पर महात्मा गाँधी का गहरा प्रभाव था। 1921 ई. में गाँधी जी द्वारा ‘असहयोग आन्दोलन’ आरम्भ करने पर शास्त्री जी ने भी विद्यालय का परित्याग कर दिया और वे जेल भी गए। इस संघर्ष ने उनके अन्दर देश-प्रेम, दृढ़ता और आत्मविश्वास कूट-कूट कर भर दिया। जेल से लौटकर उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा पास की। फिर राष्ट्रीय कार्यों में एक अत्यन्त विनम्र और पीछे रहकर काम करने वाले मौन कार्यकर्ता बने रहे। लाल बहादुर शास्त्री 1930 से 1944 तक के समय में आठ बार भिन्न-भिन्न कारवासों में रहे। एक राजनीतिक कैदी होने पर भी इन्होंने कभी किसी प्रकार की व्यक्तिगत सुविधा नहीं माँगी।

राजनैतिक कार्यभार

सन् 1947 में उत्तर प्रदेश गृह और परिवहन मंत्री, 1952 में राज्य सभा के सदस्य और परिवहन एवं रेलमंत्री का पद सौंपा गया। 1957 के द्वितीय लोकसभा चुनाव में विजय पाकर फिर से परिवहन एवं संचार मंत्री बने। 1958 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के रूप में मंत्री मण्डल में शामिल किया गया, तब आपने कश्मीर मंत्री मण्डल के मतभेद को दूर किया।

सिद्धान्तों पर अडिग

एक जेल यात्रा के समय जब वे नैनी जेल में थे, तब उन्हें अपनी पुत्री के सख्त बीमार होने का समाचार मिला। मित्रों और सगे-सम्बन्धियों ने पुत्री को मिल लेने का आग्रह किया। ब्रिटिश सरकार की इस शर्त “शास्त्री जी आगे से राजनीतिक कार्यों में भाग नहीं लेगे इसलिए उन्हें रिहा किया जा सकता है।” को शास्त्री जी ने नकारा और वे अपने सिद्धान्तों पर अटल रहे। इस बार ब्रिटिश सरकार ने स्वयं उन्हें एक सप्ताह के लिए छोड़ दिया। किन्तु तब तक उनकी पुत्री की जीवन लीला समाप्त हो चुकी थी।

अन्य जेल यात्रा में कड़ी परीक्षा का समय था। उनका बेटा जीवन और मृत्यु से जूझ रहा था और दूसरी तरफ राष्ट्र सेवा के मतवाले के सिद्धान्त। अन्त में सरकार को झुकना पड़ा और बिना कोई शर्त मनवाये शास्त्री जी को पन्द्रह दिन के लिए जेल से रिहा किया गया। लाल बहादर जी ने अपने बच्चों के स्नेह-बन्धन से ऊपर उठकर भारत-माता के प्रति अपने कर्तव्य को अधिक महत्व दिया।

प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित होना

प्रधानमन्त्री नेहरू जी की मृत्यु के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री जी को 6 जून 1964 ई.को दूसरे प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। नेहरू जी का स्थान ग्रहण करना कोई आसान काम नहीं था किन्तु उन्होंने इस कार्य को बड़ी योग्यता, साहस, धैर्य तथा शान्ति से पूरा किया। प्रधानमन्त्री के रूप में केवल अठारह मास में ही इन्होंने अपने राजनैतिक विरोधियों का मन मोह लिया। वे सब उनके प्रशंसक बन गये।

शत्रुओं को धूल चटाना

1965 में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भारत की अहिंसा और शान्ति की नीति को कायरता समझा और कश्मीर में घुसपैठिए भेजकर सीमा पर हमला कर दिया। तब शास्त्री जी द्वारा आकाशवाणी पर देश के नाम दिए गए संदेश में प्रेरक शब्दों को सुनकर सारे देश में राष्ट्र-प्रेम की भावना फैल गई और भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना की ईंट से ईंट बजा दी।

प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व

शास्त्री जी शान्ति के पुजारी थे। रूस की पहल पर जब पाक ने समझौते की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने 10 जनवरी 1966 को ताशकन्द में शान्ति वार्ता कर सन्धि पर हस्ताक्षर किए। एक रात भी न गुजरी थी कि शास्त्री जी अचानक हृदयाघात से ग्रस्त हो गए। 11 जनवरी 1966 को ताशकन्द में ही भारत माँ का वीर सपूत चिर-निद्रा में सो गया। सादा जीवन-उच्च विचार की मूर्ति शास्त्री जी के उच्च आदर्श सदैव हमारे लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे और उनका नाम भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।

Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi 1200 Words

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भूमिका

ऐश्वर्य और वैभव, उच्च तथा कुलीन परिवार में जन्म लेकर यदि कोई व्यक्ति उन्नति के उच्च शिखर को छूता है तो यह तथ्य आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता है लेकिन यदि निर्धन परिवार में जन्म लेकर अपनी लग्न, परिश्रम बुद्धिमता तथा ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से कोई व्यक्ति श्रेष्ठ, उच्च और गौरवमय पद को प्राप्त करता है तो वह व्यक्तित्व निश्चय ही प्रशंसा और श्लाघा के योग्य होता है, हमारे इतिहास में श्री लाल बहादुर शास्त्री ऐसे ही दिव्य पुरुष हुए हैं। निर्धनता के कंटका-कीर्ण मार्ग पर चलते हुए भी उनका जीवन-पुष्प अपनी सौरभ बिखेरता रहा है। शरीर के आकार की दृष्टि से छोटे, दुबले, पतले, सौम्य और साधु स्वभाव के महामानव शास्त्री जी दृढ़संकल्प और अजेय आस्था तथा विश्वास के पुतले थे। अपनी सत्यप्रियता तथा ईमानदारी से वे विशाल भारत के प्रधान मन्त्री तो बने ही लोगों के प्रिय और श्रद्धा के पात्र भी बने हैं। अल्पकाल में ही देश के लोकप्रिय प्रधानमन्त्री बने हैं।

जीवन परिचय

शास्त्री जी का जन्म बनारस के मुगलसराय नाम के गांव में श्री शारदाप्रसाद के घर 2 अक्तूबर, 1904 को हुआ। माता का नाम श्रीमती रामदुलारी था। पिता प्राईमरी क्लासों को पढ़ाया करते थे। बहुत कम वेतन था। अभी शास्त्री जी 11 वर्ष के ही थे कि पिता का साया सिर से उठ गया। गवर्नमेंट पैन्शन वाली नौकरी तो थी नहीं, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की थी, इसलिए थोड़ी सी ग्रेचुइटी मिली। माता बच्चे को ले कर बनारस के किसी गांव में आ गई। बचपन में परिवार के लोग उन्हें नन्हा कहा करते थे। पढ़ाई शुरू हुई। वह हरिश्चन्द्र हाई स्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगे। जब कि उनकी श्रेणी के विद्यार्थी नौका द्वारा गंगा पार करते, शास्त्री जी सिर पर पुस्तकें रख कर गंगा को तैर कर पार करते। ऐसे ही उनकी पढ़ाई चलती रही।

जिन दिनों महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन चलाया और बनारस में भाषण दिया कि ऐसे नवयुवक चाहिएं जो काम करने वाले हों, तब शास्त्री जी ने अपनी पढ़ाई छोड़ी और आन्दोलन में सम्मिलित हो गए। अंग्रेजों ने जेल भेज दिया। अढ़ाई साल तक जेल में रहे और जेल से रिहा होने पर काशी विद्यापीठ में दाखिल हो गए। उस समय विद्यापीठ के आचार्य डा. भगवान् दास थे और अध्यापक डा. सम्पूर्णानन्द और आचार्य नरेन्द्रदेव जैसे विद्धान् थे। यहां से उन्होंने शास्त्री की परीक्षा पास की। कुछ लोग लाल बहादुर जी के साथ शास्त्री शब्द जुड़ा हुआ देख कर उन्हें भ्रान्ति से ब्राह्मण समझ लेते हैं। वस्तुतः शास्त्री जी जाति के कायस्थ थे। शास्त्री जी का विवाह सन् 1928 में ललिता देवी से हुआ। आपकी छः सन्तानें हैं।

राजनीतिक जीवन और प्रधानमन्त्री के रूप में

1930 से 1936 तक आप इलाहाबाद नगर पालिका के प्रधान रहे और कांग्रेस के संगठन-कार्य में लगे रहे। यही से उनका राजनीतिक जीवन आरम्भ होता है। 1936 से 1939 तक आप कांग्रेस के मन्त्री रहे। 1939 में आप उत्तर प्रदेश की विधानसभा में निर्वाचित हुए। 1942 में आपने जेल-यात्रा की। आप ने आठ बार जेल यात्रा की और नौ वर्ष जेल में रहे। 1946 से 1951 तक आप उत्तर प्रदेश में परिवहन मन्त्री रहे। उस समय श्री गोबिन्द वल्लभ पन्त का मन्त्रिमण्डल था। 1952 में आप केन्द्र में आ गए। पहले आप रेल मन्त्री रहे पर 1956 की रेल दुर्घटना से आप इनते खिन्न हुए कि आपने त्यागपत्र दे दिया।

1957 के निर्वाचन में आप फिर चुने गए। पहले आप संचार मन्त्री बने और फिर वाणिज्य मन्त्री। श्री गोबिन्द वल्लभ पन्त की मृत्यु के पश्चात् आप गृहमन्त्री बने। 1963 में जब कामराज योजना सामने आई तो आपने त्याग-पत्र दे दिया लेकिन जनवरी 1964 में नेहरू जी का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण आप बिना विभाग के मन्त्री बने और नेहरू जी का काम करने लगे। 27 मई, 1964 को प्रधानमन्त्री नेहरू की मृत्यु के पश्चात् यह प्रश्न जनता के सामने आया कि नेहरू के बाद कौन देश का प्रधानमन्त्री होगा। लाल बहादुर वास्तव में नेहरू के सच्चे उत्तराधिकारी थे।

9 जून, 1964 को लालबहादुर शास्त्री प्रधानमन्त्री बने। तब देश के सामने अनेक समस्याएं खड़ी थीं, पर शास्त्री जी ने इन सब समस्याओं का समाधान बड़ी ही कुशलता से किया। नेपाल से कुछ सम्बन्ध बिगड़ हुए थे, उन्हें सुधारा। पाकिस्तान के आक्रमण का मुंह तोड़ उत्तर दिया। चीन के कड़े षड्यन्त्रों का कड़ाई से उत्तर दिया। जब तक शास्त्री जी प्रधानमन्त्री बने रहे, विपक्षी नेताओं के विचारों को भी साथ लेकर चलते थे। शास्त्री जी हर पार्टी का सम्मान करते थे और हर दल के नेता का स्वागत करते थे। यही कारण है कि शास्त्री जी जन मानस में बैठ गए। शास्त्री जी जब तक प्रधानमन्त्री रहे तब तक विनम्रता की मूर्ति बने रहे। इसीलिए ठीक ही एक आलोचक ने लिखा है : नेहरू जी अठारह वर्ष में जो काम न कर सके, शास्त्री जी ने वह अठारह महीनों में कर दिखाया।

रूस के प्रधानमन्त्री कोसीगिन के अनुरोध पर पाकिस्तान से समझौता करने के लिए एशिया को युद्ध की प्रलयंकर लपेट से बचाने के लिए शास्त्री जी पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब से मिलने 4 जनवरी, 1966 को ताशकन्द गए। दस जनवरी तक उन्होंने दस-दस बारह-बारह घण्टे काम किया। ताशकन्द का समझौता हो गया। दोनों नेताओं ने हस्ताक्षर कर दिये। एशिया युद्ध की ज्वाला से बच गया। दोनों प्रधानमन्त्री गले मिले। अयूब ने कहा, “खुदा हाफिज !” शास्त्री जी ने कहा, “भगवान् तुम्हारा कल्याण करे।” कौन जानता था कि यह मिलन अन्तिम होगा। फोन पर अपने परिवार को सन्देश देते हुए शास्त्री जी ने कहा-“समझौते की जो प्रतिक्रिया भारतीय पत्रों में हो, वह मुझे काबुल भेज देना।” लेकिन विधाता को मानो कुछ और ही स्वीकार था। 11 जनवरी, 1966 को तड़के 12 बज कर 55 मिनट पर शास्त्री जी की हृदय गति बन्द हो गई।

व्यक्तित्व और आदर्श

शास्त्री जी का व्यक्तित्व अत्यन्त सशक्त और सबल था। उनके बारे में एक अंग्रेज आलोचक का कहना है : * शास्त्री जी का हृदय सिल्क के समान कोमल और लोहे के समान कठोर था।” शास्त्री जी जिस पद पर भी रहे, उस पद का दुरुपयोग नहीं किया। वह सच्चे प्रजातन्त्र में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। वह निर्धन परिवार में पैदा हुए थे, इसलिए साधारण व्यक्तियों की आवाज़ को, उन्होंने भली-भान्ति समझा। अधिकार के मद में पहला समय भूले नहीं। वे माता का पूरा सम्मान करने वाले थे। देश के प्रति उनका सच्चा प्रेम था। स्वभाव में विनम्रता उनका गुण था। आर्थिक अभाव के कारण वह कभी घबराए नहीं थे।

उपसंहार

प्रधानमन्त्री बन कर उन्होंने कभी परिवार-पोषण न किया और न कभी संचय। यही कारण था कि मरने के पश्चात् उनके पास न अपना मकान था, न कार। जिन लोगों ने उनके संस्मरण दिए हैं, उन्होंने उनकी सफलता और सज्जनता का बहुत वर्णन किया है। वस्तुत: ऐसे व्यक्ति ही सच्चे नेता होते हैं। लाल बहादुर शास्त्री ने केवल 18 महीनों तक प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य किया पर इस अल्पकाल में ही वे अपने साहसिक और विशिष्ट कार्यों तथा ईमानदारी से देश-विदेश में विख्यात हो गए। देश की जनता ने उन्हें विशेष प्यार दिया। पाकिस्तान युद्ध के बाद वे भारतीय जनता के विशेष प्रिय नेता बन गए थे। उनकी अद्वितीय योग्यता और महान् नेतृत्व ने उन्हें विश्व-स्तर के नेताओं की पंक्ति में ला खड़ा कर दिया था। राजनीति में रहते हुए भी वे द्वेष से लिप्त न हुए तथा साधु पुरुष के रूप में ही सच्चरित्रता का आदर्श उपस्थित करते रहें। उनका जीवन तथा रहन-सहन अत्यन्त सादगी पूर्ण था। इच्छा और लालसा तथा पद-लिप्सा उन्हें छू भी नहीं पाई थी। वास्तव में वे भारत मां के अनोखे लाल थे। डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में –
जन मानस में हुआ तरंगित जननी का भाल उर। लाल बहुत हैं, किन्तु एक है लालबहादुर ॥

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