Lokoktiyan in Hindi with Meaning and Sentence लोकोक्ति का अर्थ और वाक्य में प्रयोग
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Lokoktiyan in Hindi with Meaning and Sentence
लोकोक्तियों का वाक्य प्रयोग/ Lokoktiyan in Hindi – लोकोक्ति का प्रयोग अपने कथन को पुष्ट करने या प्रभावक्षम बनाने के लिए होता है। ये स्वयं में पूरा वाक्य होती हैं। अत: इनका वाक्य-प्रयोग किसी सामान्य कथन के बाद होता है। ये अन्य किसी वाक्य की सहचरी बनकर प्रयुक्त होती हैं। अलग वाक्य होते हुए भी ये इस तरह अभिन्न रूप से पूर्व वाक्य से जुड़ी रहती हैं कि इनके बीच अनिवार्य और घनिष्ठ संबंध होता है। यथा –
लोकोक्ति प्रयोग Lokoktiyan in Hindi
एक अनार सौ बीमार (एक वस्तु के असंख्य चाहने वाले)
वाक्य – आजकल एक-एक पद के लिए हजारों आवेदन-पत्र आते हैं। सच है – एक अनार सौ बीमार।
हिंदी की कुछ प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ तथा उनके प्रयोग इस प्रकार हैं।
Let’s start with lokoktiyan in Hindi with meaning and sentence.
10 Lokoktiyan in Hindi with meaning
1. अंत भले का भला (अच्छे काम का परिणाम अच्छा होता है)
रमेश कष्ट सहकर भी ईमानदारी से परिश्रम करता रहा। इसी कारण आज वह ऊँचे पद तक पहुँच गया है। सच ही कहा है – अंत भले का भला।
2. अंधा क्या चाहे दो आँखें (आदमी मनवाँछित वस्तु पाने को उत्सुक रहता है)
मैं वर्षों से बेरोजगार हैं और आप मुझे बैंक-ऑफिसर के पद पर नियुक्ति दे रहे हैं। इससे सुखद और क्या हो सकता है। अंधा क्या चाहे दो आँखें।
3. अंधों में काना राजा (मूख के बीच अल्पबुद्धि भी समझदार माने जाते हैं)
इस गाँव में हमारे कॉलेज का चपरासी भी पढ़े-लिखे का सम्मान पाता है। सुना नहीं, अंधों में काना राजा।
4. अंधा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को दे (न्यायरहित आदमी अपने ही लोगों को लाभ पहुँचाता है)
मंत्री जी ने जब से पद सँभाला है, इनके सभी रिश्तेदार खुशहाल हो गए हैं। शेष किसी को कोई लाभ नहीं मिला। सच है, अंधा बाँट रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे।
5. अंधी पीसे कुत्ता खाए (कमाए कोई, खाए कोई)
इस देश में जी-तोड़ परिश्रम करते हैं मज़दूर और मौज उड़ाते हैं निठल्ले पूँजीपति। सच है-अंधी पीसे कुत्ता खाए।
6. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता (अकेला आदमी बड़े काम नहीं कर सकता)
अकेले हिम्मतसिंह ने गुंडों का विरोध किया, परंतु उसका किसी ने साथ नहीं दिया। परिणामस्वरूप गुंडों का कुछ नहीं बिगड़ा। सच ही तो कहा है – अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
7. अकेली मछली सारा तालाब गंदा कर देती है (दुष्ट आदमी समूचे वातावरण को दूषित कर देता है)
इस वेश्या की देखादेखी मुहल्ले की अन्य महिलाएँ भी इस राह पर चलने लगी हैं। सच है – अकेली मछली सारा तालाब गंदा कर देती है।
8. अधजल गगरी छलकत जाय (थोड़ा ज्ञान या कम धन रखने वाले अधिक घमंड करते हैं)
यह सामने जो नवयुवक अंग्रेजी बोलकर अपना रोब जमा रहा है, अँगरेज़ी में ही आठवीं फेल है। सच है – अधजल गगरी छलकत जाय।
9. अपना पैसा खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष (अपना आदमी बुरा हो तो बुरा कहने वालों का कोई दोष नहीं)
माताजी, अपने लड़के की बुरी हरकतों को रोको। जमाने की ज़बान को कोसने से कोई लाभ नहीं। अपना पैसा खोटा हो तो परखने वाले का क्या दोष।
10. अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग (सबका अलग मत)
जब भी जनता दल की मिली-जुली सरकार बनी है, किसी केंद्रीय मंत्री की एक राय नहीं रही। सबकी अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग।
20 Lokoktiyan in Hindi with meaning and sentence
11. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत (अवसर चूकने के बाद पछताने का कोई लाभ नहीं)
जब बीमारी शुरू हुई थी, तब तो तुम जागे नहीं। अब जब रोगी मौत के करीब आ पहुँचा है तो डॉक्टर को बुलाने चले हो। रहने दो, अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
12. अशर्फ़ियाँ लुटें कोयले पर मोहर (बड़े-बड़े खचों पर ध्यान न देना, छोटे खर्चे में कंजूसी दिखाना)
लालाजी रोज लाटरी में 100 रुपये खो आते हैं परंतु रिक्शा के दो रुपए देने में इनकी नानी मरती है। सच है – अशर्फियाँ लुटें कोयले पर मोहर।
13. आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास (आवश्यक कार्य छोड़कर अनावश्यक कार्य में उलझ जाना)
प्रकृति का भरपूर आनंद लेने के लिए तुम नैनीताल घूमने आए थे। यहाँ आकर तुम शॉपिंग करने लग पड़े। आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।
14. आगे कुआँ पीछे खाई (सब ओर विपत्ति का होना)
अब क्या करें ? इसकी रीढ़ का आपरेशन कराएँ तो मौत का डर है, न कराएँ तो उठना मुश्किल। आगे कुआँ पीछे खाई।
15. आप भला तो जग भला (अच्छे को सभी अच्छे लगते हैं)
मुरारीलाल जी, बात यह है कि आप सज्जन हैं, इसलिए आपको उस दुष्ट में दुष्टता नहीं नज़र आती। सच कहा है – आप भला तो जग भला।
16. आम के आम गुठली के दाम (दोहरा लाभ)
अंग्रेज़ी का हिंदुस्तान टाइम्स बहुत सस्ता अखबार है। पढ़ने में बढ़िया और रद्दी की कीमत भी सबसे ज्यादा। आम के आम गुठली के दाम।
17. आमों की कमाई नींबू में गंवाई (एक वस्तु में होने वाला लाभ दूसरी वस्तु में हुई हानि में नष्ट हो जाना)
इस बार फसल खूब अच्छी हुई, परंतु मकान बाढ़ में ढह गया। यह तो वही बात हुई – आमों की कमाई नींबू में गंवाई।
18. आसमान से गिरा खजूर में अटका (एक विपत्ति से हटे, दूसरी में फँसे)
अभी कल ही अस्पताल से छुट्टी मिली कि यहाँ दुर्घटना के कारण फिर बिस्तर पर सोना पड़ा। आसमान से गिरा खजूर में अटका।
19. ऊँची दुकान फीका पकवान (दिखावा अधिक वास्तविकता कम)
हमने तो रामकिशन हलवाई का बहुत नाम सुना था। मिठाई खाई तो बहुत निराशा हाथ लगी। सच है – ऊँची दुकान फीका पकवान।
20. उलटा चोर कोतवाल को डाँटे (अपराधी का निर्दोष पर हावी होना)
एक तो कार को गलत दिशा से लाकर मेरे स्कूटर पर टक्कर मारी, फिर मुझी को दोषी बताता है। वाह ! उलटा चोर कोतवाल को डाँटे।
21. एक अनार सौ बीमार (एक वस्तु के ग्राहक अनेक)
जब से स्कूल में अध्यापक-पद के लिए नौकरी का विज्ञापन दिया है, सैकड़ों फोन आ चुके हैं। एक अनार सौ बीमार। किसे रखें, किसे न रखें ?
22. एक तो करेला कडुआ, दूसरे नीम चढ़ा (स्वाभाविक दोषों का किसी अन्य कारण से और अधिक बढ़ जाना)
एक तो यह पहले ही जुआरी था, ऊपर से शराब की लत लग गई। इसे कहते हैं – एक तो करेला कडुआ, दूसरे नाम चढ़ा।
23. एक तो चोरी, दुसरे सीना-जोरी (अपराधी होने के बावजूद अकड़ दिखाना)
एक तो अपनी कार से मुझ पर छींटे फेंके, ऊपर से गुर्राता है। एक तो चोरी, दूसरे सीना-जोरी।
24. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं (एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते)
इस घर में या तुम्हारी पत्नी रहेगी, या तुम्हारी वह रखैल। कान खोलकर सुन लो। एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं।
25. एक पंथ दो काज (एक काम से दोहरा लाभ)
बैंक में पैसे जमा कराने के साथ-साथ मैनेजर महोदय से तुम्हारे रिश्ते की बात भी करता आऊँगा। एक पंथ दो काज हो जाएँगे।
26. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर (चुनौती स्वीकार करने के बाद कष्टों से नहीं घबराना चाहिए)
जब राजनीति में आए हो तो तीखी आलोचनाएँ और गालियाँ सुननी ही पड़ेगी। ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर।
27. कंगाली में आटा गीला (दुखी पर और अधिक दुख आना)
मैं पहले ही बीमार था, अब नौकरी भी छूट गई। भाई, कंगाली में आटा गीला होता ही है।
28. कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली (दो असमान व्यक्तियों की तुलना)
तुम अमेरिका के राष्ट्रपति बुश और अपने गाँव के सरपंच की तुलना कर रहे हो। इनका क्या मुकाबला ! कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली।
29. कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा (असंगत वस्तुओं का मेल बैठाना)
संयुक्त मोर्चा सरकार भी क्या सरकार है ! न किसी घटक का मन मिलता है, न विचार। यह तो ऐसा हो गया – कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा।
30. का बरखा जब कृषि सुखाने (काम बिगड़ने पर सहायता व्यर्थ होती है)
अरे, जब कीड़े फसल खा चुके, तब दवाई छिड़कने का क्या लाभ ! का बरखा जब कृषि सुखाने।
31. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती (बेईमानी बार-बार नहीं चलती)
यह दुकानदार रोज़ कम तोलता था। एक दिन मैंने इसका सामान बाहर से तुलवाया तो पकड़ा गया। अब गिड़गिड़ा रहा है। मैंने कहा था न – काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।
32. काला अक्षर भैंस बराबर (बिल्कुल अनपढ़)
संतरा देवी ने स्कूल का मुँह तक नहीं देखा। उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।
33. कोयलों की दलाली में मुँह काला (दुर्जनों की संगति में कलंक लगता है)
शराब की फैक्ट्री में काम करने के कारण लोग मुझे भी शराबी समझते हैं जबकि मैंने एक बूंद भी शराब, नहीं पी। सच है, कोयलों की दलाली में मुंह काला।
34. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है (संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है)
कॉलेज में जाते ही मेरा भोला-भाला भाई न जाने क्या अफलातून हो गया है। जब देखो, फिल्म, वीडियो की बातें करते हुए उसका मन नहीं भरता। सच ही है, खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।
35. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे, (अपनी शर्म छिपाने के लिए व्यर्थ का क्रोध करना, अपनी खीझ निकालना)
शर्मा जी अपने बॉस से तो कुछ कह नहीं पाए। अब घर आकर पत्नी पर गुस्सा निकाल रहे हैं। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
36. खोदा पहाड़ निकली चुहिया (परिश्रम अधिक, फल कम)
सीमेंट के व्यवसाय में लाखों रुपया लगाया, दिन-रात मेहनत की। फिर भी तीन हजार महीना बचा। बस क्या बताऊँ, खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
37. गंगा गए तो गंगादास, जमना गए तो जमनादास (परिस्थिति के अनुसार विचार बदलने वाला अस्थिर व्यक्ति)
आजकल के नेताओं का कोई एक सिद्धांत नहीं है। वे निपट अवसरवादी हैं। गंगा गए तो गंगादास, जमना गए तो जमनादास।
38. गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए (चेला गुरु से भी आगे बढ़ गया)
शास्त्री जी उसी विद्यालय में संस्कृत पढ़ा रहे हैं, जबकि उनका पढ़ाया हुआ छात्र विद्यालय शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन हो गया है। गुरु गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए।
39. गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है (दोषी के साथ निर्दोष भी मारे जाते हैं)
फ्रेचकट दाढ़ी वाले अपराधी को पकड़ने के चक्कर में पुलिस मुहल्ले के ऐसे सारे लोगों को पकड़ कर ले गई। सच ही कहा है – गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है।
40. घर का भेदी लंका ढाए (आपस की फूट से सर्वनाश होता है)
बाहर के दुश्मन नहीं देश के गद्दार ही देश को हानि पहुँचाते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।
41. घर की मुर्गी दाल बराबर (घर की चीज की कद्र नहीं होती)
विश्वविख्यात कालिदास जब तक गाँव में रहे, लोग उनकी कविताओं का उपहास उड़ाते रहे। वही लोग राज्यकवि बनते ही उन्हें सम्मान देने लगे। सच ही है, घर की मुर्गी दाल बराबर।
42. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए (बहुत कंजूस होना)
भला यह सेठ मंदिर के निर्माण के लिए क्या दान देगा ? इसका तो यह हाल है, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
43. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात (थोड़े दिन की मौज, फिर वही कष्ट)
बच्चू अशोक, हो लो खुश शादी के अवसर पर खुश होने का यही अवसर है। चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
44. चोर की दाढ़ी में तिनका (अपराधी व्यक्ति हमेशा सशंकित रहता है)
इधर घर में चोरी हुई। उधर नौकर गायब हो गया। मैं समझ गया कि चोरी में नौकर का हाथ अवश्य है। चोर की दाढी में तिनका।
45. चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए (लाभ के स्थान पर हानि होना)
भाई साहब दिल्ली में कमाने गए थे, उल्टे मूल पूँजी भी आँवा आए। चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए।
46. छबूंदर के सिर में चमेली का तेल (अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य वस्तु मिलना)
उस सातवीं फेल की बीवी एम।ए। पास है और बैंक में नौकरी करती है। सच बात है – छछूदर के सिर में चमेली का तेल।
47. जंगल में मोर नाचा किसने देखा (सराहना के बिना योग्यता का व्यर्थ हो जाना)
संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालिदास गाँव में रहकर सुंदर कविताएँ लिखते रहे, परंतु लोग उन्हें सम्मान देने की बजाय बेकार समझते रहे। सच है – जंगल में मोर नाचा किसने देखा।
48. जल में रहकर मगर से बैर (समाज में रहकर शक्तिशाली लोगों से बैर करना हानिकारक होता है)
विदेशी कंपनियाँ भारत में रहकर कभी केंद्रीय सरकार से झगड़ा मोल नहीं लेतीं। वे जल में रहकर मगर से बैर नहीं करतीं।
49. जाको राखे साइयाँ मार सकै ना कोय (जिसका भगवान रक्षक है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता)
बच्चा चलती रेलगाड़ी से गिरने के बाद भी बच गया। सच है, जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय।
50. जिसकी लाठी उसकी भैंस (बलवान की ही विजय होती है)
मिथिलेश के पास पैसा भी है और सिफारिश भी। इसलिए वह नौकरी ले गया। हम गरीब मुँह ताकते रहे। यह बात सच ही है – जिसकी लाठी उसकी भैंस।
51. जैसी करनी वैसी भरनी (किए का फल भोगना पड़ता है)
उसने जीवन-भर काले धंधे किए। अब बेटे ऐसे बदमाश हैं कि उसकी नाक में दम किए रहते हैं। हम तो कहेंगे, जैसी करनी वैसी भरनी।
52. जैसा देश वैसा भेष (जहाँ रहो, वहाँ के रीति-रिवाजों के अनुसार रहो)
अगर गाँव में रहना है तो अपने अमेरिकी नाज़-नखरे छोड़ो और यहाँ के रंग में रँग जाओ। जैसा देश वैसा भेष।
53. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं (अधिक बोलने वाले व्यक्ति काम कम करते हैं)
अनूप की लंबी-चौड़ी बातें सुनकर ही मैं समझ गया था कि वह कुछ करेगा नहीं, क्योंकि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।
54. डूबते को तिनके का सहारा (विपत्ति में थोड़ी-सी सहायता भी किसी को उबार सकती है)
वह जीवन से बिल्कुल निराश हो चुका है। तुम थोड़ा-सा उत्साह दे दो तो शायद उबर जाए। डूबते को तिनके का सहारा भी काफी होता है।
55. तेते पाँव पसारिए जेती लाँबी सौर (शक्ति के अनुसार ही खर्च करना चाहिए)
तुम विवाह पर अपनी शक्ति से बढ़कर खर्च मत करना। याद रखना – तेते पाँव पसारिए जेती लाँबी सौर।
56. थोथा चना बाजे घना (ओछा व्यक्ति सदा दिखावा करता है)
शर्मा जी दिनभर मेहनत करने की जितनी बातें करते हैं, वे उतने ही निकम्मे हैं। जानते नहीं, थोथा चना बाजे घना।
57. दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया (रुपया ही सब कुछ है)
समाज में आज सबसे ज्यादा कद्र रुपये की है। दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया।
58. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम (अनिश्चय की स्थिति में दोनों ओर हानि होना)
अगर कॉलेज में प्रवेश लेना हो तो आज ही निश्चय कर लो कि विज्ञान की पढ़ाई करनी है अथवा वाणिज्य की। याद रखनादुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
59. दूध का जला छाछ को भी फुँक-फुँक कर पीता है (एक बार धोखा खाकर व्यक्ति सावधान हो जाता है)
जब से बीमारी के कारण उसके बेटे की मृत्यु हुई है, वह किसी भी सदस्य की बीमारी का नाम सुनते ही हस्पताल चल देता है। सच है, दूध का जला छाछ को भी फुँक-फुँक कर पीता है।
60. दूर के ढोल सुहावने (परिचय के अभाव में वस्तु का आकर्षक लगना)
मैं समझता था कि दिल्ली की जिंदगी भोपाल से कहीं अच्छी होगी। मगर यहाँ तो कुछ भी विशेष नहीं है। सच है, दूर के ढोल सुहावने।
61. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का (अस्थिरता के कारण कहीं का न हो पाना)
माँ से बात करता हूँ तो पत्नी ताने देती है। पत्नी के साथ सुखी रहता हूँ तो माँ जल-भुन जाती है। अपनी तो वह हालत है – धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।
62. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी (विवाद को जड़ से नष्ट कर देना)
यदि नौकर के कारण घर में क्लेश है तो इसे ही हटा दो। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
63. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी (शर्त पूरी न होने पर काम का न बनना)
अगर तुझे पढ़ाई से बचना है तो किताबों का बस्ता यहीं छोड़ जा। फिर घर में माँ लाख बार पढ़ने के लिए कहे। न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।
64. नाच न जाने आँगन टेढ़ा (स्वयं अयोग्य होना, दोष दूसरों को देना) राधा को कपड़े सीना तो आता नहीं, दोष मशीन का बताती है, इसी को कहते हैं – नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
65. नौ नकद न तेरह उधार (नकद लेन-देन हमेशा अच्छा होता है) लाओ भाई, ग्यारह की जगह दस ही रुपये दे दो, मगर दो अभी। नौ नकद न तेरह उधार।
66. पर उपदेश कुशल बहुतेरे (दूसरों को उपदेश देने वाले किंतु स्वयं उस पर आचरण न करने वाले बहुत होते हैं)
नेताजी, पहले अपने भ्रष्टाचार पर रोक लगाओ, फिर भ्रष्टाचार पर भाषण दो। पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
67. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद (मूर्ख व्यक्ति गुण का आदर करना नहीं जानता)
इस फूहड़ को कहाँ शास्त्रीय संगीत सुनाने ले आए। यह लंबे-लंबे आलाप सुनकर भाग खड़ा होगा। बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।
68. बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख (माँगने से कुछ नहीं मिलता)
कैसी हैरानी की बात है ! जो लोग बिना माँगे मुझे घर पर पैसे दे जाते थे, वे आज माँगने पर भी स्पष्ट इनकार कर रहे हैं। सच है – बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख।
69. बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय (गलत कार्य का परिणाम भी गलत होता है)
पहले तो अपने बच्चे को आरामपरस्त बनने की सीख देते रहे। अब वह मेहनत नहीं करता तो चिल्लाते हो। अरे, बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय।
70. भागते भूत की लंगोटी सही (जो मिल जाए वह काफी है)
रामलाल हमें बिना कुछ दिए ही पीछा छुड़ाना चाहता था। पर मरते-मरते पाँच रुपये दे ही गया। चलो, भागते भूत की लंगोटी सही।
71. मन चंगा तो कठौती में गंगा (मन शुद्ध है तो सब ठीक है)
संत रविदास न मंदिर जाते थे, न तीर्थ। उनका दृढ़ विश्वास था कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।
72. मुँह में राम बगल में छुरी (ऊपर से मित्रता, मन में शत्रुता)
शिवनाथ की मीठी-मीठी बातों में न आना। वह कभी भी दुश्मनी का व्यवहार कर सकता है। उसका यही व्यवहार है – मुँह में राम बगल में छुरी।
73. मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त (जिसका काम हो, वह सुस्त, उसका समर्थक अधिक सक्रिय)
श्रीमान् जी ! मैं प्रश्न आपके बेटे से पूछ रहा हूँ और उत्तर आप दे रहे हैं। यह तो वही बात हुई – मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त।
74. रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई (सब बर्बाद हो गया, किंतु शेखी अब भी वही)
सेठ किरोड़ीमल का घर तक बिक गया, किंतु बातें अभी भी लाखों-करोड़ों की करता है। रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई।
75. लकड़ी के बल पर बंदर नाचे (डंडे से सब भयभीत होते हैं)
पुलिस वालों ने जैसे ही हत्यारे की मरम्मत करनी प्रारंभ की, उसने सब कुछ उगल दिया। ठीक ही है – लकड़ी के बल पर बंदर नाचे।
76. लातों के भूत बातों से नहीं मानते (दुष्ट व्यक्ति दंड से ही भयभीत होते हैं)
सुरेश ! यह चोर अपना अपराध आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। यह नम्रता से मानने वाला नहीं। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
77. सहज पके सो मीठा होय (धीरे-धीरे सहज रूप से किया गया कार्य ही अच्छा होता है)
मैं तो पहले ही मना करता था कि इस गरीब को एकदम ऊँचा न उठाओ। वह घमंड में पागल हो जाएगा। अरे भाई, सुना नहीं – सहज पके सो मीठा होय।
78. साँप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे (काम भी बन जाए और हानि भी न हो)
रमेश से बदला लेने के चक्कर में तुम अपनी हानि कर बैठे तो क्या लाभ ? कुछ ऐसा तरीका निकालो कि साँप भी । मर जाए और लाठी भी न टूटे।
79. साँच को आँच नहीं (सच्चे को डरने की आवश्यकता नहीं)
प्रह्लाद को उसके नास्तिक पिता ने तरह-तरह की यातनाएँ दी किंतु उसका बाल बाँका न हुआ। सच कहा है – साँच को आँच नहीं।
80. सिर दिया ओखल में तो मूसल से क्या डर (जब कोई काम आरंभ किया तो कठिनाइयों से नहीं डरना चाहिए)
अरे, जब पहाड़ पर ट्रेकिंग शुरू कर ही दी तो मुश्किलों से घबराना क्या ? सिर दिया ओखल में तो मूसल से क्या डर।
81. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता (बिल्कुल सीधेपन से काम नहीं चलता)
मैंने तो इसे पहले ही समझाया था कि यह व्यापार है। यहाँ सीधी उँगली से घी नहीं निकलता। कुछ चतुराई तो चाहिए ही।
82. सेवा करे सो मेवा पावै (सेवा का फल हमेशा अच्छा होता है)
यश और धन प्राप्त करने के लिए जी-तोड़ परिश्रम करना पड़ता है। खाली बैठने से कुछ हाथ नहीं लगता। सेवा करे सो मेवा पावै।
83. हाथ कंगन को आरसी क्या (प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं)
इस दवाई का असर देखना है तो इसका प्रयोग करके देख लीजिए। हाथ कंगन को आरसी क्या।
84. हाथी निकल गया, दुम रह गई (थोड़ा-सा काम अटक जाना)
भाई, वनवास के तेरह वर्ष निकल गए, यह चौदहवाँ भी जल्दी ही निकल जाएगा। अब तो – हाथी निकल गया, दुम रह गई।
85. हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और (कहना कुछ और करना कुछ)
यह व्यक्ति बातों से जितना सीधा, सरल और आदर्शवादी लगता है, उतना वास्तव में नहीं है। बस यही समझो – हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।
86. हाथी के पाँव में सबका पाँव (एक बड़ा प्रयत्न अनेक छोटे-छोटे प्रयत्नों के बराबर होता है)
हर किसी से चंदा माँगने की बजाय किसी एक उद्योगपति से सारा खर्चा करने की बात कर लो। हाथी के पाँव में सबका पाँव।
87. होनहार बिरवान के होत चिकने पात (होनहार व्यक्तियों की प्रतिभा बचपन में ही दिखाई दे जाती है)
जयशंकर प्रसाद ने पहली कविता केवल आठ वर्ष की वय में लिख डाली थी। सच है – होनहार बिरवान के होत चिकने पात।
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