Mahadevi Verma Poems and Essay in Hindi महादेवी वर्मा की कविता एवं निबंध
|Read an essay on Mahadevi Verma in Hindi. Mahadevi Verma was a famous romanticism poet in modern Hindi poetry ranging from 1914 to 1938. Read the biography of Mahadevi Verma in Hindi. महादेवी वर्मा की कविता एवं निबंध।
Mahadevi Verma Essay in Hindi
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में सन् 1907 में महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा इंदौर में सम्पन्न हुई, बाद में प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने बी-ए और संस्कृत में एम-ए की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करना आरम्भ किया। आरम्भ में उन्होंने समस्यापूर्ति के रूप में ही काव्य रचना आरम्भ की थी। किन्तु जैसे-जैसे जीवन की स्थितियां कठिन से कठिन होती गईं, उनका प्रभाव उनके काव्य पर भी पड़ता और बढ़ता गया। महादेवी वर्मा को हम एक ऐसी कवयित्री के रूप में जानते हैं, जिन्होंने मूलतः गीतात्मक रचनाओं की ही रचना की। किन्तु महादेवी जी ने अपनी रचनाओं को इतनी व्यापकता और गहराई प्रदान कर दी कि आज भी वह इस क्षेत्र में सर्वोपरि और सर्वश्रेष्ठ बनी हुई हैं। उनकी कविता में ‘वेदना’ प्रधान है।
कंटकों की सेज जिसकी आँसुओं का ताज,
सुभग हँस उठ, उस प्रफुल्ल गुलाब ही सा आज,
बीती रजनि प्यारे जाग।
उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं: ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’ और ‘दीपशिखा’ आदि। बाद में एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य-संग्रह ‘यामा’ नाम से भी प्रकाशित हुआ। महादेवी वर्मा को छायावाद का चौथा महत्वपूर्ण कवि-स्तम्भ कहा जाता है। उन्होंने छायावादी भावभूमि को जितनी गहरी और प्रगाढ़ अभिव्यक्ति अपनी कविताओं में प्रदान की, वह उल्लेखनीय रही है। महादेवी वर्मा ने कभी भी अपने अनुभूत युग-सत्य से इतर काव्य-सृजन की चेष्टा नहीं की। प्रमोद वर्मा ने इस संदर्भ में लिखा है:छायावाद के प्रवर्तक कवि होकर भी निराला और पंत किसी युग विशेष की सीमा में नहीं बँधे। उनकी सृजनशीलता छायावाद की समाप्ति के पूर्व ही नये आयामों की खोज में व्यस्त हो जाती है। लेकिन महादेवी की काव्य-साधना छायावाद के ऐश्वर्यकाल से आरम्भ होकर उसी के साथ समाप्त भी हो गई। ‘दीपशिखा’ के बाद उन्हें कुछ कहना आज तक आवश्यक नहीं जान पड़ा। अपने युग का अतिक्रमण करने की चाह उनमें कभी नहीं आई। सृजन-प्रक्रिया के रूंध जाने पर क्षमतावान कवि इन अवरोधों ‘से निरन्तर जूझकर नयी राहों का अन्वेषण करता है,-भले ही ये नये रास्ते उसे एकदम विपरीत दिशा की ओर क्यों न ले जाएँ। वह अपने आपको दुहराने की बजाय, अपना ही खंडन करना श्रेयस्कर मानता है। महादेवी ने न तो मीडियाँकर कवियों की भांति सृजनशक्ति समाप्त हो जाने पर केवल जीवित रहने का प्रमाण देने के लिए निहायत भोंडे ढंग से अपने आपको दुहराया, और न युग-प्रर्वतक कृती कवियों की भांति अपने आपको, या कि अपनी स्थापनाओं को नष्ट करते हुए नया कवि-जीवन पाने का उद्यम ही किया। सृजन शक्ति में अवरोध आने पर, उन्होंने शलीनतापूर्वक मौन साध लिया।”
महादेवी वर्मा के काव्य में रहस्य, प्रेम, जिज्ञासा, प्रकृति, मुक्ति, मिलन, वेदना, पाड़ा और बौद्ध दु:खवाद, व्यापक भावभूमि लेकर व्यक्त और अभिव्यक्त हुआ है।
शलभ मैं शापमय वर हूँ
किसी का दीप निष्ठूर हूँ।
ताज है जलती शिखा।
चिनगारियाँ श्रृंगार माला
ज्वाला अक्षय कोष की
अंगार मेरी रंगशाला
नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ।
प्रकृति के अनेक अप्रतिम सौन्दर्यपूर्ण दृश्यों को महादेवी ने अपनी कविता में चित्रित किए हैं। एक ऐसा ही दृश्य दृष्टव्य हैः
गुलालों से रवि का पथ लीज
जला पश्चिम में था दीप
विहंसती संहमा भरी सुहाग
दृगों से झरता स्वर्ण पराग
स्मित ले प्रभात आत नित
दीपक दे संध्या मातो
दिन ढलता सोना बरसा
निशि मोती दे मुसकाती।
महादेवी वर्मा पर बौद्ध-दर्शन के दु:ख वाद का गहरा प्रभाव रहा है। उन्होंने अपने काव्य में इसकी भी मार्मिकता-पूर्ण अभिव्यक्ति की है।
जो तुम्हारा हो सके नीला कमल यह आज
सिख उठे निरूपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात
जीवन का विरद मलमात
इस प्रकार, महादेवी का काव्य क्षेत्र अत्यंत विस्तृत और व्यापक रहा है। उन्होंने अपने काव्य में छायावाद को पूरी कृतिकता प्रदान की है।
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