Mera Punjab Essay in Hindi
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Mera Punjab Essay in Hindi 300 Words
मेरा पंजाब ऋषियों, मुनियो तथा गुरुओ की धरती है।
यहाँ पर सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब, जेहलम नदियाँ बहती है । इसी लिए इसका नाम पाँच + आब = पंजाब पड़ा । किन्तु आजकल इनमे से दो नदियाँ (सतलुज और ब्यास) ही बहती है ।
इसके उत्तर में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश है, दक्षिण में राजस्थान, पूर्व में हरियाणा और पश्चिम में पाकिस्तान है ।
इसकी राजधानी चंडीगढ़ है । इसमें बाईस (22) जिले हैं।
यहाँ पर प्रत्येक धर्म के लोग रहते हैं । यहाँ के लोगों को गुरु नानक देव जी ने अपने पवन उपदेश से प्रेरित किया । गुरु गोबिंद सिह जी ने पंजाब के लोगों में साहस, वीरता और बलिदान की भावना पैदा की और अनेक जातियों के भेदभावों को मिटाकर एक सूत्र में पिरोया ।
यहा पर लाला लाजपत राय, भगत सिह, राजगुरु, सुखदेव, करतार सिह सराभा, ऊधम सिह जैसे देशभक्त हुए । जिन्होंने देश के
लिए अपना बलिदान दिया ।
यहाँ की धरती बहुत् उपजाऊ है इसलिए यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है ।
पंजाब के लोग मेहनती व साहसी हैं । इसी कारण यह बही तेजी से उन्नति की राह पर चल रहा है।
लुधियाना साइकिल, सिलाई-मशीन व हौंज़री उद्योग के लिए, अमृतसर क्रपड्रेक्रे लिए, जालन्धर खेलों के सामान, मण्डी गोबिंदगढ़ लोहे के उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं ।
पंजाब के मोहाली शहर में विश्व प्रसिद्ध क्रिकेट स्टेडियम, खेल कफ्लैक्स, हॉकी स्टेडियम और लड़कियों के लिए सैन्य शिक्षा से संबंधित ‘माई भागो सैन्य यल संस्थान’ भी स्थित है ।
पंजाब में लगभग छब्बीस ( 26) विश्वविद्यालय हैं । इनमें से ग्यारह (11 ) सरकारी तथा बारह ( 32) निजी विश्वविद्यालय हैं । पंजाब में तीन ( 3) समकक्ष ( Deemed ) विश्वविद्यालय भी हैं ।
यहॉ प्रत्येक वर्ष अनेक मेले और त्योहार आते हैं । लोहड्री, वैशाखी, दीवाली, तीज, माघी, बसंत, गुरुपर्व, हौला-महल्ला आदि प्रसिद्ध त्योहार हैं ।
यहाँ के लोगों को संगीत, शिक्षा, खेल, कला, संस्कृति और साहित्य से बहुत प्रेम है ।
पंजाब का गिद्दा, भंगड्रा, लुड्रडी, सम्मी आदि लोक-नृत्य संसार भर में प्रसिद्ध हैं ।
यहाँ की राज्यभाषा पंजाबी है एबं मुख्य बोली भी पंजाबी है । राजभाषा हिन्दी, अतेर्राष्ट्रगेंय भाषा अंग्रेजी का भी यहा सम्मान
किया जाता है ।
मुझे अपने राज्य एवं जन्मभ्रूमि पर गर्व है ।
Mera Punjab Essay in Hindi 1000 Words
पंजाब शब्द दो शब्दों – “पंज + आब” से मिलकर बना है जिसका अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश। विभाजन से पूर्व पंजाब में पाँच नदियां थीं लेकिन अब यहाँ सतलुज और ब्यास दो ही नदियां हैं। पंजाब की माटी का परिचय उसकी जीवन को स्फूर्ति और गति देने वाली सभ्यता में छिपा है। यहां पर स्वच्छ जल से सिंचित हरे भरे खेत लहलहाते हैं। वीरों और गुरुओं के त्याग और मधुर वाणी पंजाब की जीवन्तता के प्रमाण हैं। पंजाब की धरती से पंजाब का बच्चा-बच्चा प्यार करता है।
पंजाब के इतिहास का आरम्भ भारत के इतिहास के साथ जुड़ा है। वैदिक युग से ही इसकी सभ्यता और संस्कृति, जन और जीवन गौरवशाली था। नदियों के किनारे बसे गुरुकुलों के वटुक प्रात: और सायं मण्डलियों में किनारे की विशाल एवं विशद शिलाओं पर बैठे सामगान करते थे। उन चट्टानों से टकराकर कल-कल करता नदियों का निर्मल जल मानो उनके साथ ताल देता था। उनका यह मन्द एवं मधुर स्वर धरती-आकाश को एक सूत्र में पिरो देता था। सारा वातावरण मानो गाने लगता था। भारतीय संस्कृति के निर्माण में पंजाब का बड़ा महत्त्व है। इस बात को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी माना है कि वेद बने भले ही कही हों, पर उनका सस्वर उच्चारण इसी प्रान्त में हुआ है।
पंजाब का क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर है। इसके साथ हिमाचल, हरियाणा तथा राजस्थान और पाकिस्तान की सीमा जुड़ती है। भारत का सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण पंजाब को विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों को सदैव सहना पड़ा है। झेहलम के किनारे यूनान के सिकन्दर के विश्व विजेता बनने के स्वप्न को पोरस ने धूल में मिला दिया था। इसकी धरती पर शक, हूण, कुषाण, मुहम्मद बिन कासिम और मुहम्मद गौरी के आक्रमणों से रक्तपात हुआ। गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन ने सूबेदार बनकर यहां राज्य किया। खिलजी वंश, तुगलक वंश और तैमूर लंग भी पंजाब में शासन करते रहे।
तैमूर वंश के बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली। मुगलों का शासन लम्बे समय तक चला और ईस्ट इंडिया कम्पनी के आगमन से मुगल साम्राज्य की समाप्ति हुई। अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों के आघातों की कहानी का प्रमाण आज भी जलियांवाला बाग के रूप में मौजूद है। आक्रमणकारियों ने इसे लूटा, रौंद दिया लेकिन इसे मिटा न पाए।
अंग्रेजों ने विशाल पंजाब को विभाजित कर खून से लथपथ और क्षत-विक्षत करवाया। सन् 1966 में पंजाब की सीमा को पुनः सिसकना पड़ा जब उसे और छोटा कर दिया गया तथा हरियाणा और हिमाचल का उदय हुआ। पाकिस्तान के आक्रमणों को दो बार पंजाब की धरती ने ही सहन किया। महाराजा रणजीत सिंह, बन्दा बैरागी जैसे शासक इस की पीड़ा को सहन करते रहे और इसे सुन्दर रूप देने के लिए तत्पर रहे। दशमेश पिता गुरु गोबिन्दसिंह ने पुत्रों के बलिदान को देश और धर्म की रक्षा के लिए स्वीकार कर लिया था। गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन मुगल बादशाहों के अन्याय और अत्याचारों को ही नहीं ललकारा अपितु ईश्वर की सत्ता को भी चुनौती दे डाली जो कमजोर और असहायों की रक्षा के लिए आगे न आया। सत्य की कमाई पर विश्वास रखते हुए उन्होंने लोगों को गुरुमुख बनने की प्रेरणा दी। शहीदों के इतिहास में गुरुओं की शहीदी सदैव वन्दनीय रहेगी। इस धरती ने नानक के उपदेश, गुरुओं की वाणी, आर्य समाज और सनातन धर्म के सिद्धान्तों और धर्मतत्वों को ग्रहण किया है। अत: पंजाब का इतिहास शौर्य-गाथा, त्याग और तप का इतिहास है।
स्वतन्त्रता संग्राम की कहानी पंजाब के त्याग के बिना अधूरी है। लाला लाजपतराय, लाला हरदयाल, सरदार अजीत सिंह, भगत सिंह, उधम सिंह, मदन लाल ढींगरा, करतार सिंह सराभा के त्याग और बलिदान की कहानी आज भी स्वर्ण अक्षरों में लिखी हुई है। अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबाने वाले इन वीरों ने स्वतन्त्रता के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुती दे दी।
पंजाब ने खेल जगत में भी अपना अधिकार जमाया। यहां के अखाड़े तो प्रसिद्ध हैं ही, हॉकी की खेती मानों यहीं होती है। गामा, दारा सिंह जैसे पहलवान, बलवीर सिंह और सुरजीत सिंह जैसी हाकी के खिलाड़ी, मिल्खा सिंह जैसे धावक, क्रिकेट में अमरनाथ बन्धु, बिशन सिंह बेदी, कपिल देव के नाम कौन नहीं जानता है। अंग्रेजों की कुटिल नीति ने पाकिस्तान बना कर पंजाब को आधा कर डाला। उसके बाद स्वतन्त्र भारत में भी पंजाब से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बन गए। अत: पंजाब सिमट कर रह गया। लेकिन आज भी पंजाब प्रगति के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है।
उद्योग धन्धों में आज का पंजाब पिछड़ा हुआ नहीं है। लुधियाना तो साइकिल और हौजरी उद्योग के लिए विश्व प्रसिद्ध है। जालन्धर में खेल का सामान तथा पाइप फिटिंग्स का सामान बनता है। अमृतसर, धारीवाल तथा फगवाड़ा में वस्त्र उद्योग ने उल्लेखनीय प्रगति की है तथा देश भर में पंजाब का सर ऊंचा किया है। इसी प्रकार बटाला, अमृतसर, गोराया और अन्य शहरों में अनेकों कारखाने हैं। जहाँ पर अनेक प्रकार के औजार, मशीनें तथा कल पुर्जे बनाए जाते हैं।
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