Non Aligned Movement in Hindi गुट निरपेक्ष आंदोलन
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भारत का गुट निरपेक्षता का सिद्धान्त
गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किया गया था। नेहरू जी के द्वारा प्रस्तुत इसके सिद्धान्त को प्रायः भ्रामक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता रहा है। खास तौर से अमेरिकी प्रशासन द्वारा निरन्तर इस उल्लेखनीय सिद्धान्त पर विचारहीन आक्रमण किए जाते रहे हैं। इस संदर्भ में अमेरिकी राष्ट्रपति की यह टिप्पणी उल्लेखनीय है कि क्या कभी आग और दमकल के मध्य तटस्थता की बात या कल्पना की जा सकती है। इस प्रकार के भ्रमपूर्ण विवेचनों के बावजूद भी इस वास्तविकता से मुँह नही मोड़ा जा सकता कि पंडित नेहरू द्वारा प्रस्तुत की गई इस अवधारणा का एक ऐतिहासिक महत्व और प्रासंगिकता रही है और आज भी निरन्तर जटिल होती स्थितियों-परिस्थितियों में इसका महत्व बना हुआ है। प्रायः स्वार्थी राजनेताओं द्वारा इस सिद्धांत को उदासीन या तटस्थ कह कर सम्बोधित किया जाता रहा है, किन्तु गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत को किसी भी अर्थ में उदासीनता का पर्याय नहीं कहा जा सकता है। वह एक ऐतिहासिक-आवश्यकता से युक्त सिद्धांत रहा है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वयं गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा था: “गुट-निरपेक्ष राज्य प्रत्येक विषय के गुणों एवं दोषों को ध्यान में रखकर अपना दृष्टिकोण निर्धारित करेंगे। विश्वशांति की स्थापना में सहायक बनने के लिए सभी राष्ट्र सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएंगे।” इन शब्दों में पं नेहरू ने न केवल इस सिद्धांत के राष्ट्रीय महत्व को रेखांकित किया अपितु इसके वैश्विक महत्व को भी स्पष्ट कर दिया है। गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के इतिहास पर एक दष्टि डालने मात्र से इसका महत्व उजागर हो जाता है। साथ ही दुनिया के अनेक देशों दारा इस गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को महत्व दिये जाने का भी पता चलता है। वर्ष 1983 तक सात गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन संपन्न हो चुके हैं। प्रथम गुट-निरपेक्ष सम्मेलन में मात्र 25 राष्ट्रों ने भाग लिया था, जबकि दूसरे शिखर सम्मेलन में यह संख्या बढ़कर 42 हो गयी। तीसरे शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले राष्ट्रों की संख्या 53 हो गयी थी और चौथे शिखर सम्मेलन में यह संख्या और भी अधिक बढ़कर 64 पर पहुंच गयी। पांचवे शिखर सम्मेलन में 76 देशों ने भाग लिया था। सन् 1983 में जो सातवां गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में हुआ था उसमें सम्मिलित होने वाले राष्ट्रों की कुल संख्या 100 थी। इस प्रकार बढ़ती सदस्य संख्या से यह सहज ही समझा जा सकता है कि विश्व स्तर पर इस सिद्धान्त को व्यापक रूप से स्वीकारा गया है।
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का इतिहास गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत की महत्ता को स्वत: ही प्रमाणित कर देता है, किन्तु अगर आप इस सिद्धान्त की पृष्ठभूमि में सक्रिय रही ऐतिहासिक परिस्थितियों का भी अवलोकन करें, तो आप इस सिद्धांत के ऐतिहासिक महत्व को समग्र रूप से समझ सकेंगे।
शीत युद्ध के परिणामस्वरूप उत्पन्न ऐतिहासिक स्थितियों में गुट-निरपेक्षता के सिद्धांत का अविर्भाव हुआ। विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र अपनी-अपनी घेरेबन्दी में व्यस्त थे। वे निरन्तर ऐसे घातक और मारक हथियारों के निर्माण में लगे हुए थे जो उन्हें विश्व के अन्य देशों की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित कर सकें। इन स्थितियों ने विश्व में एक तीसरे विश्व-युद्ध की अवश्यभावी स्थिति उत्पन्न कर दी थी। ऐसी विकट और अमानवीय स्थिति में संपूर्ण मानवजाति के नष्ट हो जाने तक का खतरा पैदा हो गया था। ऐसे में मानवीय आदर्शों और मूल्यों के रक्षार्थ एक ऐसी स्थिति अत्यंत आवश्यक हो गयी थी, जो विश्व में शांति और प्रेम का संदेश दे सके। जवाहर लाल नेहरू द्वारा रखा गया गुट-निरपेक्षता का सिद्धांत एक ऐसा ही आदर्श था, जिसने विश्व को एक मानवीय दिशा का संकेत प्रदान किया। अत: हम यह कह सकते हैं कि इस सिद्धांत का महत्व समसामयिक स्थितियों में भी अनिवार्य रूप से बना हुआ है।
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