Essay on Nuclear Non Proliferation Treaty in Hindi
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Essay on Nuclear Non Proliferation Treaty in Hindi
किसी विद्वान पुरूष ने ठीक ही कहा था कि आधुनिक मानव-समाज एक बम के गोले पर बैठा हुआ है, पृथ्वी बारूद का एक ढेर हो चुकी है और यह कभी भी फट सकती है। आदमी खत्म हो जाएगा और किसी को उसके खत्म होने की खबर तक नहीं होगी। पूरे विश्व-समुदाय के लिए शीत-युद्ध का समय एक निर्णायक काल रहा है, जिसने समस्त भू-मंडल की दशा और दिशा ही बदल कर रख दी। विश्व परस्पर दो खेमों में विभाजित और वर्गीकृत हो गए। एक, ऐसे वर्चस्ववादी देशों का खेमा था जो निरन्तर स्वयं को अत्याधुनिक रूप से विनाशकारी हथियारों से सुसज्जित करने में लगा था और पूरे विश्व में एक भयाक्रान्त वातावरण तैयार कर रहा था और दूसरा खेमा ऐसे देशों का था, जो वैश्विक अशांति को खत्म करके सारे विश्व में सौहार्द और शांति की स्थापना की चेष्टा कर रहा था। किन्तु इनकी सदस्यता को कोई ठोस आधार कभी भी प्राप्त नहीं हो सका और समस्त विश्व इस प्रकार से घातक हथियारों की एक खान में बदलने लगा। वर्चस्ववादी देशों के भय से स्वयं को मुक्त करने के लिए, शांति चाहने वाले देशों को भी अपने अनुसंधानों को आधुनिक सैन्य विकास की ओर उन्मुख करना पड़ा। जल्द ही इन दोनों खेमों के पास एक-दूसरे से बेहतर हथियार संगृहित होने लगे, जिससे वह देश स्वयं तो भय की स्थिति से बाहर आ गया, किन्तु इससे एक दूसरा बड़ा भय दुनिया में पूर्णत: व्याप्त हो गया। वह भय था तीसरे विश्व युद्ध की आशंका।
हथियार निर्माण की इस होड़ में ऐसे विनाशकारी हथियार तैयार कर लिए गये, जिनका प्रयोग करने पर इस बात की कोई संभावना शेष नहीं रहेगी कि इस धरा पर कोई मानवीय गतिविधि बच सके। पूरी मानवजाति क्षण-मात्र में एक पतंग के समान नष्ट हो जाएगी।
सृष्टि के समक्ष उपस्थित इस विकराल-स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में किया गया। इसमें एक ऐसी सन्धि का प्रारूप तैयार किया गया जिसके अनुसार विश्व का कोई भी देश भविष्य में किसी प्रकार का परमाणु परीक्षण नहीं करेगा। वह परमाणु शक्ति का उपयोग, परमाणु बम जैसे हथियारों को निर्मित करने में नहीं करेगा। और जिन देशों ने इन परमाणु बम एवं प्रक्षेपास्त्रों का निर्माण पहले से ही कर रखा है, वे आगे इस दिशा में किसी प्रकार का कार्य नहीं करेंगे और पूर्व-निर्मित हथियारों को धीरे-धीरे नष्ट करके समस्त धरा को भय मुक्त करने का प्रयास करेंगे। साथ ही वैश्विक-शांति की दिशा में गतिशीलता को बढ़ावा देंगे। इसी सन्धि को परमाणु-अप्रसार संधि का नाम दिया गया।
जिन पाँच देशों को परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र माना जाता है, उनमें अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन आते हैं। इस प्रकार की सन्धि का प्रस्ताव सर्वप्रथम रखने वाले देशों में अमेरिका और रूस प्रमुख थे। कहा जा सकता है कि इस अप्रसार सन्धि के उद्देश्य को पूरा करने का बहुत कुछ कार्य रूस ने किया है। किन्तु इस मामले में अमेरिकी रूख हमेशा दोगला और पक्षपातपूर्ण रहा है। अमेरिका की मंशा इस सन्धि के माध्यम से यह रही है कि नव-विकसित हो रहें देशों से इस सन्धि पर हस्ताक्षर करवाकर उन्हें परमाणु शक्ति की दृष्टि से नियंत्रित कर दिया जाए, और स्वयं इस प्रकार के नियंत्रणों से मुक्त रहकर, अनियंत्रित रूप से परमाणु-शक्ति का शोधन किया जाए। इसका प्रमाण है कि आधिकारिक रूप से इस सन्धि से संबंद्ध होने के बाद भी अमेरिका ने दो परमाणु परीक्षण किए वैसे चीन भी इस मामले में अमेरिका से पीछे नहीं रहा है।
भारत ने इस सन्धि पर फिलहाल हस्ताक्षर नहीं किया है। भारत ने वैश्विक मंच पर सदा विश्व शांति की प्रस्तावना को अत्यंत बलपूर्वक रखा और प्रेषित किया है। किन्तु इस प्रसंग में विश्व के वर्चस्ववादी देशों ने भारत के रूख को हास्यास्पद बनाने का ही प्रयास किया है।
भारत ने सदा तथाकथित परमाणु अप्रसार संधि के अपने अन्तर्विरोधों को उजागर करने की चेष्टा की है। उसने हमेशा इस बात को बलपूर्वक रखा है कि इस संधि पर वह तभी हस्ताक्षर करेगा जब इस संधि के अन्तर्विरोधों को समाप्त कर दिया जाएगा और उसमें वांछित सुधार कर दिए जाएगें।
सन् 1974 और 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण करके अपनी मजबूत परमाणु स्थिति को कर दिया था। इसी के बाद से भारत पर इस सन्धि का अनुपालन करने का दबाव बढ़ाया जाने लगा था। किन्तु अभी भी भारत अपनी मांग पर बरकरार बना हुआ है, और सामरिक स्थितियों को देखते हुए यह भारत का एक सही और राष्ट्र हित में किया गया कदम कहा जा सकता है।
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