Essay on Onam Festival in Hindi ओणम पर निबंध

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Onam Festival in Hindi

रूपरेखा : केरल राज्य का प्रमुख पर्व, ओणम से संबंधित पौराणिक कथा, पौराणिक कथा का केरलीय स्वरूप, ओणम के प्रमुख आकर्षण, ओणम का वर्तमान रूप।

भारत पर्वो का देश है। यहाँ विभिन्न ऋतुओं में अनेक धार्मिक और सामाजिक पर्व मनाए जाते हैं। देश के विभिन्न राज्यों के कुछ अपने विशेष पर्व हैं। ओणम एक ऐसा ही पर्व है जो केरल राज्य में उल्लास तथा उत्साह के साथ श्रावण मास में मनाया जाता है। केरल के नव वर्ष का आरंभ भी इसी पर्व से होता है।

प्रायः प्रत्येक धार्मिक पर्व के मूल में कोई-न-कोई पौराणिक कथा रहती है। ओणम से राजा बलि की कथा जुड़ी हुई है। ‘श्रीमद्भागवद्’ के अनुसार प्राचीनकाल में बलि एक पराक्रमी और दानशील सम्राट थे। उनकी दानशीलता की चर्चा चारों ओर फैल गई थी, जिससे देवता घबरा गए। देवताओं ने विष्णु भगवान से सहायता माँगी। विष्णु भगवान ने देवताओं की सहायता के लिए वामन (बौना) ब्राह्मण का रूप धारण किया और बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी। बलि ने सहर्ष स्वीकृति दे दी।

अगले ही क्षण वामन ने विराट रूप धारण कर लिया। उन्होंने पहले पग में पूरी धरती और दूसरे पग में पूरा आकाश नाप लिया। तीसरे पग को रखने के लिए वामन ने और स्थान माँगा, तब राजा बलि ने अपनी पीठ को ही वामन के लिए प्रस्तुत कर दिया। भगवान विष्णु बलि की दानशीलता से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि से वर माँगने के लिए कहा। बलि ने भगवान विष्णु से हमेशा दर्शन देते रहने का वर माँगा। भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का राज्य दे दिया। यह कथा संपूर्ण भारत में विख्यात है।

केरल प्रदेश में यह पौराणिक कथा कुछ विशेष रूप में मिलती है। इसके अनुसार, पाताल पहुँचने पर राजा बलि ने विष्णु से प्रार्थना की कि उन्हें वर्ष में एक दिन अपनी प्रजा से मिलने का अवसर दें। विष्णु ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। केरलवासियों का विश्वास है कि ओणम के दिन ही राजा बलि अपनी प्रजा की खुशहाली देखने के लिए पूरे केरल प्रदेश में घूमते हैं। केरल निवासी अपने राजा बलि का हर्ष और उल्लास से स्वागत करने के लिए ही ओणम पर्व का आयोजन करते हैं।

केरल प्रदेश में ओणम का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। खेतों की हरियाली इस पर्व के उल्लास और उत्साह को अभिव्यक्त करती है। श्रावण मास में पूरे दस दिन तक ओणम का उत्सव चलता है। भादों मास के श्रवण नक्षत्र के दिन छोटा ओणम भी मनाया जाता है। ओणम के उत्सव का आरंभ घर के आँगन में रंगोली सजाने से किया जाता है। लड़कियाँ कलात्मक ढंग से रंगोली सजाती हैं। रंगोली के आकार, फूलों की संख्या और फूलों के रंगों में प्रतिदिन वृद्धि होती जाती है। बड़ी रंगोली को केरल प्रदेश की भाषा मलयालम में ‘पक्कम’ कहते हैं।

ओणम के अवसर पर लोग नए वस्त्र पहनते हैं और एक दूसरे को भेंट देते हैं। गाँवों में ओणम के दिन पीत वस्त्रधारी बाल-गोपालों की छटा निराली होती है।

ओणम स्नेह तथा सम्मान का पर्व है। इस पर्व में भेट देने के समान ही प्रीति-भोज का आयोजन भी महत्त्वपूर्ण है। केरलवासी ओणम के दिन षटरस व्यंजनों का भोज तैयार करते हैं।

इनमें पायसम (खीर), केले की नमकीन वस्तुएँ, अचार, पापड़, गाढ़ी कढ़ी, उसना चावल आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ऐसी धारणा है कि राजा बलि इस भोज को देखकर प्रसन्न होते हैं। और प्रजा की दशा से संतुष्ट होकर पाताल लोक लौट जाते हैं।

ओणम हँसी-खुशी का पर्व है, खुशहाली का पर्व है। ओणम के दिन नौका-प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। नदियों-सरोवरों पर नौका-दौड़ का आयोजन बहुत आकर्षक लगता है। नाविक नौका-गीत गाते हुए नियत ताल पर डाँड़ चलाते हैं। उनका उत्साह और नौका-संचालनकौशल देखने योग्य होता है। इस अवसर पर खेल-तमाशों, झूलों पर पेंग भरती नारियों तथा लोकनृत्यों की छवि देखते ही बनती है। ऐसा लगता है जैसे केरलवासियों की सांस्कृतिक परंपरा जीवंत हो उठी हो।

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