Pani Kera Budbuda as Manas ki Jaat
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Pani Kera Budbuda as Manas ki Jaat
संसार की प्रत्येक वस्तु, यहाँ तक कि उन वस्तुओं को बनाने और उपयोग करने वाला सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य भी हमेशा रहने वाला नहीं। देखने में जो कुछ भी सुन्दर और स्थायी लगता है, मन को आकर्षित करता है, अच्छे-बुरे कर्म करके उसे पा लेने की मन को प्रेरणा दिया करता है, वह सब नाशवान है। अत: उनके चक्कर में पड़ कर, भटक कर मनुष्य को अनमोल जीवन को नष्ट नहीं करना चाहिए। संसार के प्रत्येक कोने में जन्म लेने वाले ज्ञानी पुरुषों, सन्त जनों ने यही बात अपने-अपने ढंग से बार-बार कही है।
जैसे पानी में बुलबुले बनते हैं, देखने में बड़े ही सुन्दर और आकर्षक लगते हैं। दिल उन्हें समेट कर रख लेने को करता है, लेकिन इससे पहले कि व्यक्ति उनकी तरफ हाथ बढ़ाए, वे फूट कर बिखरते और पानी बन जाते हैं। ठीक उसी प्रकार पंच भौतिक तत्त्वों से बना हुआ यह शरीर भी बिखर कर वापिस उन्हीं में पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश में समाकर उन्हीं का रूप हो जाता है। अतः शरीर को सदाबहार एवं सब कुछ मान कर इसके पालन और रक्षा के लिए दुष्कर्मों में लीन नहीं होना चाहिए। उचित मानवीय कर्मों का निर्वाह करते हुए, ज्ञान-साधना और प्रेम भक्ति द्वारा सब प्रकार के सांसारिक बन्धनों से छुटकारे का प्रयत्न करना चाहिए।
जीवन पानी का बुलबुला और संसार के तारों से भरे प्रभात की तरह अस्थिर अवश्य है, पर इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि ऐसा मानकर आदमी हाथ पर हाथ धर कर, वैरागी बन कर बैठा रहे। इस का सीधा अर्थ यह है कि मनुष्य के करने योग्य सभी उचित कर्म करते हुए व्यक्ति को आत्मोद्धार का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
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