दशहरा पर कविता Poem on Dussehra in Hindi विजयादशमी पर कविता
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Poem on Dussehra in Hindi
1. – Poem on Dussehra in Hindi
रावण शिव का परम भक्त था, बहुत बड़ा था ज्ञानी,
दस शीश बीस भुजाओं वाला, था राजा अभिमानी..!!
नहीं किसी की वह सुनता था, करता था मनमानी,
औरों को पीड़ा देने की, आदत रही पुरानी…!!
एक बार धारण कर उसने, तन पर साधु निशानी,
छल से सीता को हरने की, हरकत की बचकानी…!!
पर नारी का हरण न अच्छा, कह कह हारी रानी,
भाई ने भी समझाया तो, लात पड़ी थी खानी…!!
रामचन्द्र से युद्ध हुआ तो, याद आ गई नानी,
शिव को याद किया विपदा में, अपनी व्यथा बखानी…!!
जान बूझ कर बुरे काम की, जिसने मन में ठानी,
शिव ने भी सोचा ऐसे पर, अब ना दया दिखानी…!!
नष्ट हुआ सारा ही कुनबा, लंका पड़ी गवानी
नष्ट हुआ सारा ही कुनबा, लंका पड़ी गँवानी,
मरा राम के हाथों रावण, होती खत्म कहानी…!!