Biography of Poet Bihari Lal in Hindi महाकवि बिहारी का जीवन परिचय
|Read full biography of Poet Bihari Lal in Hindi language. Know more about Bihari Lal in Hindi. महाकवि बिहारी का जीवन परिचय।
Poet Bihari Lal in Hindi
गागर में सागर भरने वाले महाकवि बिहारी
बिहारी रीतिकाल के श्रेष्ठ रसज्ञ कवि हैं। श्रृंगार उनकी काव्य-साधना का मूल आधार और प्रधान प्रतिपाद्य रहा है। बिहारी लाल ने रीतिकालीन रूचि, स्वभाव और बोध को दोहे जैसे अति संक्षिप्त काव्य-रूप के माध्यम से अत्यंत भव्यता से अभिव्यक्त किया है। उनका प्रतिपाद्य विषयं जितना विस्तृत, समृद्ध और व्यापक रहा है उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम काव्यरूप उतना ही लघु। बिहारी की इसी विचित्रता को विद्वानों ने ‘गागर में सागर’ कहकर रेखांकित किया है। और सचमुच बिहारी की काव्य-साधना सागर के समान असीमित तथ्य को गागर सदृश एक अत्यंत लघु उपादान में भरने की ही साधना रही है।
बिहारी का सृजन काल भारतीय समाज का वह युग रहा है, जिसे जहांगीर और शाहजहां के युग के नाम से जाना जाता है। यह युग मुगल शासन के चरम-विकाश का युग था। उस दौरान किसी प्रकार की राजनैतिक आकांक्षाएं शेष नहीं रह गयी थीं। इस प्रकार की स्थिति में मानव-हृदय का भोग-विलास की दिशा में प्रवृत होना स्वाभाविक ही था। समस्त रीतिकालीन काव्य वस्तुत: इसी ऐतिहासिक पिठिका के अंतर्गत रचा गया साहित्य है। कवि बिहारी ने भी अपने युग-धर्म का निर्वाह किया। उन्होंने रीतिकालीन भावबोध से युक्त अनेक दोहों की सुंदर रचना की और ‘बिहारी-सतसई’ के रूप में आज उनके दोहों की अर्थव्यंसमता और साहित्य का रसास्वादन पाठक समाज निरंतर करता रहा है।
बिहारी का जन्म ग्वालियर के पास बसुवा गोंविदपुर नामक गांव में सन् 1660 के लगभग हुआ था। बिहारी जयपुर के राजा जयसिंह के आश्रित कवि थे। इस प्रसंग में एक अत्यंत कौतुहलपूर्ण प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जब बिहारी जयपुर पहुंचे तो राजा जयसिंह अपनी छोटी रानी के रूप-माधुर्य में इतने आसक्त हो गये थे कि राजनैतिक क्रियाकलापों तक में भी उनकी रूचि नहीं रह गई। इससे राज्य के संकटग्रस्त हो जाने की समस्या खड़ी हो गयी थी। इस नाजुक स्थिति में बिहारी ने एक स्वरचित दोहा लिखकर राजमहल के भीतर राजा जयसिंह के पास भिजवाया, कहते हैं इस पर महाराज जयसिंह बाहर निकले। इसी के बाद से बिहारी का मान-सम्मान बहुत बढ़ गया।
बिहारी का संपूर्ण काव्य, शास्त्र के सुदृढ़ धरातल पर अवलंबित है। रस, वक्रता, अलंकार, शब्द-शक्ति, वर्णागत सौंदर्य, नायक-नायिका भेद आदि उनके संपूर्ण काव्य में गहरे समाए हुए हैं। इसीलिए किसी कवि-हृदय पाठक ने इन दोहों के प्रति अपनी आसक्ति कुछ इस प्रकार व्यक्त की:
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।।
देखत में छोटे लगें, बैधै सकल शरीर।।
बिहारी ने स्वतंत्र रूप से किसी लक्षण-ग्रंथ की रचना नहीं की। फिर भी उनका काव्य सूक्ष्म रूप से स्वयं में शास्त्र को पिरोए हुए हैं। कवि बिहारी ने स्वयं एक दोहे में इसे व्यक्त किया है:
तंत्रीनाद कबित्त रस, सरस राग रति रंग।
अनबूडे बुडे, तिरे जे बूड़े सब अंग।।
बिहारी रीतिकाल के एकमात्र ऐसे बहुज्ञ कवि हैं जिन्हें ज्ञान के अनेकानेक अनुशासनों की व्यापक जानकारी थी। उनकी दार्शनिक बहुज्ञता निम्नांकित दोहे में दृष्टव्य है:
मैं समुझयौ निरधार, यह जगु कांचौ वांच सौ।
एकै रूप अपार, प्रतिबिंबित मरिवयतु जगत्।।
इसी प्रकार बिहारी का राजनैतिक ज्ञान भी कुछ कम नहीं था। दृष्टव्य है:
दुसह दुराज प्रजानु कौ। क्यों न बढ़े दुख द्वंद।
अधिक अंधेरौ जग करत, मिलि पावस कवि चंद्र।।
बिहारी ने अपने ज्योतिष ज्ञान की अभिव्यक्ति भी कुछ इस प्रकार से की है:
पत्रा ही तिथि पाइए, वा घर के चहुं पास।
नित प्रति पून्योई रहै, आनन ओप उजास।।
बिहारी की काव्य कला का वास्तविक उद्घाटन श्रृंगारिक दोहों में हुआ है। बिहारी ने श्रृंगार से संबंधित नाना स्थिति, परिस्थिति, प्रसंग और भावछवियों की अत्यंत कलात्मक और रमणीय अभिव्यक्ति इन दोहों में की है। जैसे:
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ।
साँह करै, भौंहनि हंसे, दैन कहे, नटि जाइ।।
इसी के साथ विरह की यह मार्मिक स्थिति:
नए बिरह बढ़ती बिधा, खरी बिकल जिय बाल।
बिलखी देखि परोसिन्यौं, हरषि हंसी तिहि काल।।
नायिका का रूप-माधुर्य भी उल्लेखनीय है –
नासा मोरि, नचाइ दृग, करी कला की सोंह।
कांटे सी कस कै हिए, गड़ी कंटीली भौंहि।।
उपर्युक्त दोहे बिहारी की इस विशिष्टता को उजागर कर देते हैं कि वे सच्चे अर्थों में हिंदी के ऐसे कवि हैं जिन्होंने साहित्य में गागर में सागर भरने का काम किया है।
Essay on My Favorite Poet in Hindi
Suryakant Tripathi Nirala in Hindi
Thank you for reading. Don’t forget to give us your feedback.
अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे।