Pratibha Patil in Hindi Essay and Biography प्रतिभा पाटिल
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Pratibha Patil in Hindi
भारत एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। गणराज्य होने का अर्थ यह है कि यहाँ राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होता है और उसका चुनाव किया जाता है। डॉ० राजेंद्रप्रसाद हमारे देश के पहले राष्ट्रपति थे। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। 2007 में देश की राष्ट्रपति बनने से पहले वे राजस्थान की पहली महिला राज्यपाल थीं। वे राज्यसभा की सभापति भी रहीं।
प्रतिभा पाटिल का जन्म महाराष्ट्र के नदगाँव में 19 दिसंबर, 1934 को हुआ। उनके पिता का नाम नारायण राव था। उन्होंने जलगाँव के एम०जे० कॉलेज से स्नातकोत्तर करने के बाद मुंबई से कानून की डिग्री प्राप्त की। अपने कॉलेज के दिनों में टेनिस की बेहद अच्छी खिलाड़ी थीं और इस दौरान अंतरमहाविद्यालय प्रतियोगिताओं में उन्होंने बहुत-से पुरस्कार जीते। 1962 में वे एम जे कॉलेज की ‘कॉलेज कवीन’ चुनी गईं। इसी वर्ष उन्होंने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जलगाँव से विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतीं। 7 जुलाई, 1965 को उनका विवाह शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय देवीसिंह शेखावत से हुआ। प्रतिभा पाटिल एक ओर अपना घर-गृहस्थी सँभालती रहीं तो दूसरी ओर राजनीति में भी सक्रिय रहीं। 1967 में वे वसंतराव नाइक मंत्रालय में शिक्षा विभाग में उपमंत्री बनीं। इसके बाद के चुनावों में वे कांग्रेस की सरकारों में पर्यटन, समाज कल्याण आदि मंत्रालयों में मंत्री रहीं। वे काफी दमदार तरीके से राजनीतिक पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी थीं।
1985 तक वे जलगाँव या एदलाबाद से लगातार विधानसभा के लिए चुनी जाती रहीं। वर्ष 1985 में वे राज्यसभा की सदस्य बनीं। 1978 में वे महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष की नेता बनीं। 1991 में उन्होंने पहली बार सक्रिय राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया। उस साल वे अमरावती से लोकसभा सीट जीतीं। नवंबर, 2004 में उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। इसके साथ ही राजस्थान ऐसा राज्य बन गया, जहाँ तीन सबसे महत्त्वपूर्ण पदों पर महिलाएँ थीं। उनके राज्यपाल होने के साथ वहाँ वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री और सुमित्रा सिंह विधानसभा अध्यक्ष थीं। 14 जून, 2007 का दिन उनके राजनीतिक करियर के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था। इस दिन कांग्रेस अध्यक्ष ने उनका नाम देश के राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया और एनडीए के प्रबल दावेदार भैरोंसिंह शेखावत को हराकर वे देश की राष्ट्रपति चुन ली गईं।
Essay on Pratibha Patil in Hindi 600 Words
भारतीय लोकतंत्र का एक नया अध्याय शुरू हो चुका है। अमेरिका जब इस सवाल से जूझ रहा है कि उसके देश में महिला राष्ट्रपति होनी चाहिए या नहीं, भारत इस द्वंद पर विजय पा चुका है। प्रतिभा पाटिल भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले चुकी हैं। प्रतिभा पाटिल के पक्ष में एक और बात यह है कि वे किसी राजनीतिक परिवार में मिली विरासत के सहारे इस ऊँचाई तक नहीं पहुंची, वरन अपनी स्वयं की प्रतिभा के बल पर पहुंची हैं। वे खिलाड़ी भी रह चुकी हैं और सुंदरी भी, बावजूद इसके उनकी छवि ऐसी है, जिसमें देश की आम औरतें अपना रूप देख सकती हैं।
72 वर्षीय प्रतिभा पाटिल का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को उनके पिता नारायण राव ने उन्हें राजनीति में आने की प्रेरणा दी । नारायण राव एक सफल वकील थे। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतिभा ने वकालत का कार्य शुरू किया और काफी सफल भी रहीं। प्रतिभा पाटिल, 1962 में पहला विधानसभा चुनाव जीतीं। इसके बाद वे कोई भी चुनाव नहीं हारीं। 1965 में प्रतिभा पाटिल का विवाह देवी सिंह शेखावत के साथ हुआ। 1965 से 1990 के बीच महाराष्ट्र विधानसभा में विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया। 2005 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया।
प्रतिभा पाटिल का पूरा परिवार सामाजिक कार्यों में जुटा है। राष्ट्रपति बनने से पूर्व प्रतिभा पाटिल लड़कियों को शिक्षित करने का मिशन चलाया हुआ था, जिसमें उनके पति देवी सिंह शेखावत और उनके पुत्र राजेंद्र सिंह पूरी तरह से सहयोग दे रहे थे।
प्रतिभा पाटिल को एक पुत्र व एक पुत्री हैं। पुत्र राजेंद्र सिंह जलगांव में शैक्षणिक संस्थाओं को चला रहे हैं जिसे उनके माता-पिता ने शुरू किया है। पुत्री ज्योति राठौड़ पुणे में इंजिनियर हैं। वे अपने पति के साथ पुणे में रहती हैं।
प्रतिभा पाटिल ने आदिवासी इलाके नंदुरवार ओर धुले में काफी काम किया है। उनके इस कार्य से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी बहुत प्रभावित थे। वे महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी कार्य करना चाहती हैं। राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने के तुरंत बाद, उन्होने एक समाचार-पत्र से भेटवार्ता में कहा था-“बालिका भ्रूण हत्या और बाल-विवाह निश्चित रूप से एक गंभीर सामाजिक बुराई है। हमेशा से मेरा जोर महिला सशक्तिकरण पर रहा है। लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक इन मसलों का निराकरण शैशवकाल में ही नहीं किया जाता। जब लडकियां पैदा ही नहीं होगी तो महिला सशक्तिकरण का क्या मतलब है। मैं सोचती हूं कि मैं इनके बारे में समाज को और भी जागरूक बनाने की कोशिश करूंगी ताकि इन बुराइयों का निराकरण कम-से-कम समय में हो सके।”
देश के सर्वोच्च पद पर एक महिला का होना, भारत के लिए गर्व की बात है। महिलाओं के लिए तो यह खुशी का समय है। ऐसे समय पर समाज का सदियों से जमा यह पूर्वाग्रह टूटता है कि औरतें बड़े पदों के योग्य नहीं होती, दूसरे वे देशभर की तमाम युवतियों और बालिकाओं के लिए आदर्श बन जाती हैं। जन्म से मृत्यु तक पराधीन बनाई गई देश की आधी आबादी को कहीं-न-कहीं यह आत्मविश्वास मिलता है कि अगर वे भी चाहें तो किसी भी ऊंचाई को हासिल कर सकती हैं, यह एहसास कि महिला होना किसी भी तरह की तरक्की में बाधक नहीं, बल्कि समाज के अच्छे भविष्य की उम्मीद बंधाता है।
यह एक अत्यंत गौरव और ऐतिहासिक क्षण है जब देश की आजादी के 60वें साल में एक महिला देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं।
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