Essay on Radio in Hindi रेडियो पर निबंध
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Essay on Radio in Hindi
एफएम रेडियो की भाषा
एक समय था, जब लोग रेडियो की भाषा से भाषा सीखते थे। लेकिन आज के दौर में एफएम रेडियो द्वारा द्विअर्थी भाषा शैली का प्रयोग किया जा रहा है, इस भाषा शैली से अपसंस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है।
एक दौर ऐसा था कि लोग रेडियो को भूलने लगे थे, रेडियो का बाजार धीमा पड़ गया था। लोग सीडी, कैसेट आदि को ही पसंद करते थे। लेकिन आज के दौर में रेडियो ने अपनी – वापस पा ली है। इसका सारा श्रेय एफएम रेडियो को जाता है, जिसने इस जगत में क्रन्तिकारी परिवर्तन ला दिये हैं। आज जिसे देखो वही एफएम रेडियो सुनता नजर आयेगा। घर, बाहर, दुकान- जिधर भी नजर जाती है, एफएम रेडियो ही बजता नजर आता है। यहां तक कि लोग अपनी गाड़ियों में भी एफएम ही सुनते हैं। एफएम रेडियो ने कैसेट, सीडी जगत को काफी प्रभावित किया है।
एफएम रेडियो की लोकप्रियता में अत्यधिक वृद्धि हुई है, लेकिन इसी के साथ इसकी भाषा शैली के स्तर में काफी गिरावट भी आयी है। खासतौर पर जो निजी एफएम हैं, वे दिव्अर्थी शब्दों का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। भाषा में घोल मेल की स्थितियां बहुत बढ़ गयी हैं। हालांकि आकाशवाणी के एफएम स्टेशनों ने इसे काफी नियंत्रित कर रखा है। लेकिन अन्य जगह स्थितियां काफी अलग है। निजी एफएम के लोग भाषा का इस्तेमाल सिर्फ मनोरंजन के लिए करते हैं। वे इस बात को नजर अंदाज करते हैं कि भाषा के माध्यम से आप अपने श्रोताओं को संस्कारित भी करते हैं। आकाशवाणी एफएम का अपना कोड हैं। किसी पर कटाक्ष नहीं करना और गरिमापूर्ण प्रस्तुतीकरण इसके मध्य में रहा है। जहां तक निजी एफएम रेडियो का सवाल है, उनका मकसद बाजार को आकर्षित करना है। इसलिए वे मनोरंजक कार्यक्रम से बाहर आना ही नहीं चाहते ओर बाजार में अपने प्रोडक्ट्स का बेचने के लिए तरह-तरह के स्लोगन्स उछालते हैं, जैसे ‘इट्स हॉट’ एवं ‘सीटी बजाओ’ आदि। कार्यक्रम के नाम से ही मानसिकता का पता चलता है।
एक निजी एफएम के रेडियो जॉकी के अनुसार, भाषा की शुद्धता की बजाय हमें यह देखना चाहिए कि भाषा आत्मीय हो, गतिशील हो, ऊर्जावान हो, ताकि लोगों के जेहन में आसानी से आ जाए। एफएम की जिस भाषा शैली की बात हम कर रहे हैं, वह एक खिचड़ी भाषा है। इससे आतंकित होने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे सहज स्वीकार करने की जरूरत है। यह महज बदलाव का संकेत है। इस भाषा की न तो कोई शब्दावली है न कोई व्याकरण। यह भाषा किसी तरह की सीमा और बंधन को नहीं मानती। शायद यही वजह है कि युवा वर्ग में यह भाषा खासी लोकप्रिय है और इसे आसानी से अपना लिया गया है। इस भाषा शैली को अपनाने के साथ आत्मविश्लेषण करने की भी आवश्यकता है। अगर लोगों की देश की किसी एक भाषा पर पकड़ होती, फिर इस भाषा शैली को अपनाते, तो परिस्थिति कुछ और ही होती। कदाचित हम कहीं न कहीं अपने अंदर संतोष कर लेते कि चलो, कम से कम एक भाषा पर तो पकड़ मजबूत है। कितु यहां तो कितने युवाओं को न तो हिंदी, न तो अंगेजी और न ही अपनी प्रादेशिक भाषा का ज्ञान है। ज्ञान है तो सिर्फ खिचड़ी भाषा का। क्या सही में इस शैली की बाजार में मांग है, या फिर सिर्फ बाजार के नाम पर थोपी हुई ‘खिचड़ी’ भाषा है।
भाषा एक औजार है, जिसके जरिये रेडियो अपने श्रोताओं को बांधे रखता है। इसलिए इसमें शुद्ध बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना चाहिए। प्रस्तुतीकरण में एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जिस मनोरंजक भाषा शैली का रेडियो जॉकी द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है, उसमें हल्कापन नहीं हो, लेकिन श्रोताओं को ऐसा भी न लगे कि रेडियो पर बोलने वाला ज्ञान बघार रहा है। किसी भी चीज की अपनी सीमा होती है और मनोरंजन की भी एक सीमा है। भाषा की एक गरिमा तो होनी ही चाहिए। एफएम रेडियो की जो व्यावहारिक शर्त है, वह यह है कि जो रेडियो सुन रहा है उससे रेडियो जॉकी का रिश्ता आमने-सामने का होता है, जिससे संवाद जारी रखने के लिए आपके पास सिर्फ शब्द ही एक माध्यम होता है। रेडियो जॉकी की हमेशा यही कोशिश होनी चाहिए कि श्रोता को लगे कि वह रेडियो पर बोलने वाले से नहीं, वरन अपने दोस्त से बात कर रहा है।
शुद्ध भाषा वह है, जो लोगों के दिलोदिमाग पर असर पैदा करे। आसानी से समझ में आए, मानवीय लगे और जिसमें फूहड़ता न हो। लेकिन भाषा गतिमान हो जो श्रोताओं को उबाऊपन से बचाए और उनमें ऊर्जा पैदा करे। भाषा कहीं न कहीं हमारे संस्कार को भी दर्शाती है, इस लिहाज से फूहड़पन से बचना चाहिए। रेडियो पर बोलने वाला कभी-कभी ऐसी भाषा का भी प्रयोग करता है, जो गरिमापूर्ण नहीं होती है और लोगों पर अच्छा प्रभाव नहीं डालती। कहीं न कहीं रेडियो जॉकी के ऊपर भी सामाजिक दायित्व होता है, जिसका ख्याल इस क्षेत्र से जुड़े लोगो को रखना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि रेडियो का कार्यक्रम पूरा परिवार एक साथ बैठकर सुन सकता है कि नहीं, यह एक अहम बात है। ऐसे में फूहड़ शब्दों का इस्तेमाल रेडिया पर बोलने वाले को बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
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