Ramcharitmanas in Hindi रामचरित मानस का भाव-सौन्दर्य

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Essay on Ramcharitmanas in Hindi 400 Words

रामचरित मानस का भाव-सौन्दर्य

महात्मा तुलसीदास ने अनेक भव्य और महत्वपूर्ण काव्य ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें प्रमुख हैं – रामचरितमानस, रामलला नहछू, वैराग्य संदीपनी, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाज्ञा प्रश्नावली, दोहावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली और विनय पत्रिका आदि। इन्हीं काव्य ग्रंथों को प्राय: तुलसीदास के प्रमाणिक ग्रंथों में रखा जाता है। इसी के साथ काव्य रूप की दृष्टि से भी तुलसीदास की रचनाओं में पर्याप्त वैविध्य दिखाई पड़ता है। उन्होंने प्रबंध, गीतकाव्य, मुक्तक काव्य आदि अनेक रूपों में काव्य रचना की है।

किन्तु जो महत्व ‘रामचरितमानस’ को प्राप्त है वह अन्य किसी ग्रंथ को नहीं। वस्तुतः तुलसीदास की प्रसिद्धि और महानता का आधार रामचरितमानस है। प्रो. महेन्द्र रामजादा ने इस संदर्भ में लिखा है –

”गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सर्वोच्च कवि हैं। रामायण अथवा रामचरित पर आधारित ग्रंथों में तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ रामभक्ति परम्परा के ग्रन्थों में सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। मध्यकाल के कवियों में तुलसीदास को हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत की पौराणिक कथाओं में रामकथा को जो महत्व प्राप्त हुआ है, वह अन्य किसी पौराणिक कथा को प्राप्त नहीं हुआ। आदि काव्यकार वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भवभूति, राजशेखर तथा जयदेव आदि ने रामकथा को लेकर राम के लोकोत्तर चरित्र को अपने ग्रंथो में चित्रित किया है। किन्तु तुलसीदास के ‘मानस’ की रामकथा पूर्ववर्ती रामकथाओं से भिन्न है। तुलसीदास ने अपनी राम-कथा में अनेक मौलिक उद्भावनाएं करके अपनी प्रतिभा का सुन्दर परिचय दिया है। तुलसीदास ने राम के चरित्र में नर लीलाओं का समावेश करते हुए लोकोत्तर-गरिमा से उसे मोहित किया है।”

वस्तुत: तुलसीदास को हम एक ऐसे विशिष्ट कवि के रूप में पाते हैं जिसने अपने समय और समाज को बेहद करीब से देखा और परखा था। तत्कालीन समाज जिस तीव्रता से पतनोन्मख स्थिति की ओर बढ़ रहा था, उस तीव्रता से सामाजिक और पारिवारिक संबंधो में शिथिलता और तुच्छता आती जा रही थी। मर्यादा और नैतिक मूल्यों का ह्रास व्यापक रूप से उदघाटित हो रहा था। उसे देखते हुए हम तुलसीदास के रामचरितमानस के वास्तविक महत्व को सहज ही समझ सकते हैं।

‘मानस’ का भाव सौन्दर्य वस्तुत: हमें तब दिखलायी पड़ता है, जब हम देखते हैं कि तुलसीदास नाना प्रंसगों और सौंदर्यों का उपयोग करते हुए सामाजिक, पारिवारिक संबंधों और मान्यताओं को पुन: खड़ा करने की महत्वपूर्ण चेष्टा करते हैं। इनके राम वस्तुत: नैतिक और मानवीय मूल्यों और आदर्शों के प्रतिबिंब हैं। यही मानस का सबसे बड़ा भाव-सौन्दर्य है।

तुलसी ने नाना भांति के भावों का सुन्दर चित्रण किया है। उसमें से जुगुप्सा का एक सुन्दर उदाहरण दृष्टव्य है:

“जब तै कुमति कुमत जिय प्याऊ। खण्ड खण्ड होइ हृदय न गथऊ।”

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