Essay on Raskhan in Hindi रसखान पर निबंध

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Raskhan in Hindi

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रसखान पर निबंध

कृष्ण-भक्ति शाखा की अमूल्य निधिः रसखान

रसखान ने अपने बारे में सीधे-तौर पर कुछ भी नहीं कहा है। किन्तु उनका एक ऐसा पद प्राप्त होता है, जिसमें उनके जीवन के संबंध में कतिपय संकेत प्राप्त होते हैं:

देखि गदर हित साहबी, दिल्ली नगर मसान।
छिनहि बादसा वंश की, इसक छोरि रसखान॥
प्रेम निकेतन श्रीबलहि, आई गोवर्धन धाम।
लक्ष्यों सरन चित चाहिक, जुगल सरूप ललाम॥

इस पद की व्याख्या डॉ नगेन्द्र ने ऐतिहासिक आधारों पर कुछ इस प्रकार की है: “इन पंक्तियों में उल्लखित ‘गदर’ और दिल्ली के श्मशान बन जाने का समय विद्वानों ने सन् 1555 अनुमानित किया है; क्योंकि इसी वर्ष मुगल-सम्राट हुमायूँ ने दिल्ली के सूरवंशीय पठान शासकों से अपना खोया हुआ शासनाधिकार पुन: हस्तगत किया था। इस अवसर पर भयंकर नर-संहार और विध्वंस होना स्वाभाविक था और ऐसे में कवि-प्रकृति के कोमल हृदय वाले रसखान का उस गदर के ताण्डव रूप को देखकर विरक्त हो जाना भी अस्वाभाविक नहीं। कवि ने जिस बादशाह वंश की ठसक का त्याग किया वह वही पठान सूर-वंश प्रतीत होता है, जिसके शासन का उदय शेरशाह सूरी के साथ सन् 1528 में हुआ और अन्त इब्राहीम खाँ तथा अहमद वाँ के पारस्परिक कलह के कारण सन् 1555 में हुआ। इस गदर के समय रसखान की आयु यदि बीस-बाइस वर्ष मान ली जाए तो उनका जन्म सन् 1533 के आस-पास हुआ प्रतीत होता है।” यह बात स्वयं-सिद्ध है कि रसखान का जीवन परिचय इतिहास में उपलब्ध नहीं होता, किन्तु उनके काव्य में अभिव्यक्त कतिपय ऐतिहासक स्थितियों के आधार पर उनके जीवन काल का अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है। इस संदर्भ में उपर्युक्त पद में व्यक्त ऐतिहासिक घटनाएँ हमारा सजग मार्ग दर्शन करती हैं।

रसखान एक ऐसे कवि हैं, जो मुस्लिम धर्म के अनुयायी होने के बावजूद, हिन्दूधर्म के एक अति प्रसिद्ध देवता, श्रीकृष्ण की आराधना अपने काव्य के माध्यम से करते हैं। इस बात को एक गौण बात कहकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता। अपितु इस बात से हमें न केवल मध्यकाल की एक विशिष्ट स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है बल्कि इससे हमें कृष्ण-भक्ति की मानवतावादी सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति का भी बोध होता है। वस्तुतः समूचे भक्तिआन्दोलन की ही यह एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है कि यह आन्दोलन मूलतः आध्यात्मिक होने के बाद भी कभी धार्मिक संकीर्णता का शिकार नहीं रहा है। वस्तुतः अन्य भक्त-कवियों के साथ-साथ रसखान भी आध्यात्मिक-मानववाद के कवि हैं और यह उनकी काव्य मेधा की एक अति उल्लेखनीय विशेषता कही जा सकती है।

रसखान ने अपने जीवन का लक्ष्य कृष्ण-भक्ति को बनाया। उनके काव्य में व्यापक रूप से कृष्ण-भक्ति की भावना प्राप्त होती है। कृष्ण के बालरूप का वर्णन करते हुए रसखान ने एक पद में लिखा है:

धूरि भरे अति सोभित स्याम जू वैसी बनी सिर सुन्दर चोटी
खेलत खात फिरै अँगना पड़ा पैंजनि बाजति पीरी कछोरी
वा छवि का रसखानि विलोकत वारते काम कलानिधि कोरी
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी

डॉ. नगेन्द्र ने इस संदर्भ में लिखा है – “उन्होंने तो अनन्त-अलौकिक रस के आगार श्रीकृष्ण के लीला-गान के रसास्वादन में ही स्वयं को कृतकृत्य समझा। ‘त्यों रसखानि की वही रसखानि जु है रसखानि सो है रसखानी।’ प्रेम तत्व के निरूपण में रसखान को अद्भुत सफलता प्राप्त हुई। उनका प्रेम वर्णन बड़ा सूक्ष्म, व्यापक एवं विशद है।” यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भारतीय काव्य धारा को आकार देने और उसकी सांस्कृतिक चेतना को अभिव्यक्त करने में रसखान का एक विशिष्ट स्थान रहा है।

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